मुंबई: हिंदी फि‍ल्‍मों के मशहूर संगीतकार खय्याम का सोमवार रात मुंबई में निधन हो गया. वह 92 साल के थे. उन्‍होंने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर धुनें दीं. इनमें उमराव जान, बाजार, खानदान और कभी कभी का संगीत सबसे ज्‍यादा चर्च‍ित हुआ. आज भी इन फ‍िल्‍मों को खय्याम के संगीत के कारण ही ज्‍यादा जाना जाता है. खय्याम का पूरा नाम मोहम्‍मद जहूर खय्याम हाशमी था.


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3 दिन पहले फेफड़ों में संक्रमण के चलते उनको अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था. जिसके बाद से अब तक उनकी हालत में सुधार नहीं आया है. सोमवार रात उनका निधन हो गया. उनकी पत्‍नी का नाम जगजीत कौर था. वह गायिका थीं, उन्‍होंने बाजार, उमराव जान और शगुन जैसी फि‍ल्‍मों में गाने गाए. 2012 में उनका निधन हो गया था. खय्याम के निधन पर पीएम मोदी ने शोक व्‍यक्‍त किया है.



खय्याम का जन्‍म 18 फरवरी 1927 को अविभाजित पंजाब के नवांशहर जिले के राहोन में हुआ था. पढ़ाई में उनका मन ज्‍यादा लगा नहीं. वह संगीत के दीवाने थे. इसलिए एक‍ दिन घर से संगीत के लिए भाग गए. भागकर दिल्‍ली आ गए. हालांकि जल्‍द ही घरवाले उन्‍हें उनकी पढ़ाई पूरी करवाने के लिए वापस लेकर गए. लेकिन बात  बनी नहीं. बाद में संगीत सीखने के लिए वह लाहौर चले गए. उन्‍होंने वहां पर बाबा चिश्‍ती से संगीत सीखा. बाद में दिल्‍ली आ गए. यहां पर वह पंडित अमरनाथ के शागिर्द बने.


दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद वह मुंबई आ गए. 1948 में उन्‍होंने हीर रांझा फि‍ल्‍म के लिए जोड़ीदार के रूप में संगीत दिया. 1953 में उन्‍हें पहली फि‍ल्‍म मिली फुटपाथ. उसके बाद उनका कारवां चल निकला.


ये फिल्‍में सजाईं अपनी धुनों से
फुटपाथ, फिर सुबह होगी, शोला और शबनम, कभी कभी, त्रिशूल, खानदान, नूरी, बाजार, उमराव जान, रजिया सुल्‍तान, आहिस्‍ता आहिस्‍ता और दर्द जैसी तमाम फिल्‍मों में उन्‍होंने अपना जादुई संगीत दिया.


ये अवॉर्ड मिले
उमराव जान के लिए उन्‍हें नेशनल फिल्‍म अवॉर्ड मिला. इसके अलावा कभी कभी, उमराव जान के लिए उन्‍हें फिल्‍म फेयर अवॉर्ड से नवाजा गया. 2010 में उन्‍हें फिल्‍म फेयर ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा. 2011 में खय्याम को भारत सरकार का तीसरा सर्वोच्‍च सम्‍मान पद्मभूषण दिया गया. 2018 में उन्‍हें पंडित हृदयनाथ मंगेशकर सम्‍मान से नवाजा गया.