मुंबई: बात 1980 के दशक के शुरुआत की है जब बॉलीवुड का सफल चेहरा बन चुके आकषर्क विनोद खन्ना ने अचानक ही यह ऐलान कर अपने प्रशंसकों को चौंका दिया कि वह फिल्मी दुनिया की चकाचौंध छोड़कर आध्यात्मिक गुरू ओशो रजनीश के बताये रास्ते पर चलेंगे.


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वरिष्ठ फिल्म पत्रकार दिलीप ठाकुर ने बताया, आध्यात्म की तरफ रूझान ऐसे वक्त में हुआ जब अभिनेता और तब उनकी पत्नी गीतांजली के बीच मतभेद उभरे. विनोद खन्ना ने तब मुंबई का ग्लैमर छोड़ पुणे में कोरेगांव पार्क (जहां रजनीश का आश्रम स्थित था) में रहने का फैसला किया. ठाकुर कहते है, उन्होंने फिल्म उद्योग छोड़ दिया, हालांकि कुछ वर्षों बाद मुकुल आनंद की ‘इंसाफ’ से वापसी की. लेकिन जब उन्होंने अपने करियर के सबसे सफल दौर में बॉलीवुड छोड़ने के फैसले का ऐलान किया तो उनके प्रशंसकों को काफी निराशा हुई. आज कैंसर से अपनी जिंदगी की जंग हारने वाले विनोद खन्ना के फिल्मी सफर को याद करते हुये उन्होंने कहा कि इंसाफ बहुत बड़ी हिट साबित हुई क्योंकि उनका अपना एक समर्पित दर्शक वर्ग था.


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ठाकुर ने कहा, उनका फिल्मी करियर फलफूल रहा था लेकिन उन्होंने आध्यात्म की राह पर चलने का फैसला किया. ठाकुर याद करते हुए कहते हैं कि 1982 में खन्ना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई जिसमें उनकी पत्नी गीतांजली और बेटे अक्षय और राहुल भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि वह आध्यात्मिक गुरू का शिष्य बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री को छोड़ रहे हैं. इस दौरान उन्होंने अपना नाम स्वामी विनोद भारती रख लिया. उन्होंने रजनीश के साथ कई जगहों का दौरा भी किया। बाद में खन्ना ने बेहद साफगोई से फिल्म जगत में वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वापसी का जिक्र किया.


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