Brahmastra Film Review: जब भी आप कोई प्रयोग करते हैं तो ऐसा ही होता है या तो मूवी बहुत पसंद आएगी या फिर झटके से खारिज कर दी जाएगी. बहिष्कार ब्रिगेड और कोरोना व ओटीटी के शौक के चलते थिएटर्स से दर्शकों का मोहभंग, ये दोनों ही बड़ी वजह हैं कि ब्रह्मास्त्र (Brahmastra) के लिए ये रिस्क और भी बढ़ गया है. मूवी देखकर बस एक बात शर्तिया कही जा सकती है कि ये उन बच्चों और किशोरों को तो पक्का पसंद आने वाली है, जो एवेंजर्स या हैरी पॉटर जैसी मूवीज के शौकीन हैं.


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इस फिल्म से कुछ-कुछ मिलती है ब्रह्मास्त्र की कहानी


अगर आपने 2006 में आई विवेक ओबेरॉय और सनी देओल की मूवी नक्शा देखी हो तो आपको कहानी कुछ-कुछ उसी लाइन पर लगेगी. नक्शा में दोनों हीरो महाभारत कालीन योद्धा कर्ण के कवच और कुंडल ढूढने निकलते हैं, वहीं ब्रह्मास्त्र में शिवा (रणबीर कपूर) का पिता देव ब्रह्मास्त्र के पीछे पड़ा है. हालांकि वह खुद किसी मूर्ति में कैद है, लेकिन उसकी शिष्या अंधेरे की रानी जुनून (मौनी रॉय) तीन टुकड़ों में बंटे ब्रह्मास्त्र के टुकड़े ढूंढ रही है.


ब्रह्मास्त्र में हैं कई बड़े सितारे


ब्रह्मास्त्र को बचाने के काम में जुटी है साइंटिस्ट्स की सीक्रेट सोसाइटी ब्रह्मांश, जिसके मुखिया हैं रघु गुरुदेव यानी अमिताभ बच्चन. जिनमें से 2 टुकड़े हैं साइंटिस्ट मोहन भार्गव (शाहरुख खान) और आर्टिस्ट अनीश (नागार्जुन) के पास और तीसरा उसके पास है, जिसको पता ही नहीं, एक आम डीजे शिवा (रणबीर कपूर). अनाथ शिवा को ये पता है कि अग्नि उसे जलाती नहीं, उसे जुनून का मोहन भार्गव पर अत्याचार भी दिखता है, तो वो अपनी प्रेमिका ईशा (आलिया भट्ट) के साथ अनीश को बचाने वाराणसी निकलता है. फिर उसे बचाकर तीनों उनके गुरुजी के ब्रह्मांश आश्रम से निकलते हैं. फिर कैसे शाहरुख और नागार्जुन दोनों को मौनी रॉय मौत की नींद सुलाती है, कैसे शिवा की अग्नि अस्त्र की ताकत वापस आती है. कैसे शिवा के मां-बाप का रिश्ता ब्रह्मास्त्र से निकलता है, और कैसे तीनों टुकड़े आपस में मिलने के बावजूद ब्रह्मास्त्र धरती का विनाश नहीं करता, ये मूवी में दिखाया गया है.


ब्रह्मास्त्र की खासियत है स्पेशल इफेक्ट्स


चूंकि मूवी तीन हिस्सों में है, सो एक ही हिस्से के आधार पर मूवी की कहानी को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता. लेकिन बाहुबली के मुकाबले ये कमजोर है, इतना तय है, म्यूजिक और गानों पर लाख मेहनत के बावजूद वो बाहुबली के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं. इसकी खासियत भी स्पेशल इफेक्ट्स हैं, लेकिन वो अवेंजर फिल्मों की तरह के ज्यादा लगते हैं ना कि बाहुबली जैसे. इमोशन के स्तर पर भी मूवी बाहुबली के मुकाबले कमतर है, हालांकि कोशिश पूरी हुई है कि रणबीर, आलिया की मोहब्बत को काफी इमोशनल रखा जाए, लेकिन दर्शकों को ये पचता नहीं कि एक मुलाकात में कोई इतना इमोशनल हो जाए.


दर्शकों को ये भी शायद ही हजम हो कि मौनी रॉय जैसी विलेन के आगे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, नागार्जुन, रणबीर कपूर सब फेल हो जाएं. हालांकि डायरेक्टर अपनी एक मंशा में तो कामयाब होता दिख रहा है, विदेशी अवेंजर वाली मूवीज के आगे हिंदी की मूवीज के स्पेशल इफेक्ट्स का मजाक उड़ाने वाले बच्चे इसको पसंद करेंगे. शायद तभी अयान ने विलेंस के नाम जुनून, जोश आदि रखे हैं. जबकि ऐसे नाम आपको कम से कम हिंदू माइथोलॉजी या हिंदू इतिहास में नहीं मिलेंगे.


बावजूद इसके मूवी 10 साल से बन रही है, इतने सारे सितारे जोड़े गए हैं, एक अनुमान है कि 400 करोड़ की लागत आई है, सो हर एक फ्रेम में आपको मेहनत तो दिखेगी. सभी बड़े सितारों ने जमकर मेहनत की है, मौनी रॉय और सौरव गुर्जर जैसे लोगों को भी उनके बीच अपना हुनर दिखाने का मौका मिला है.


भले ही मूवी ने एडवांस बुकिंग में 14 करोड़ कमा लिए हों, लेकिन उसके लिए लागत निकालना आसान काम वो भी थिएटर से दूरी के दौर में, लेकिन ये भी सही है कि इस मूवी पर बहुतों का दांव व उम्मीदें लगी हैं. शादी के फौरन बाद आलिया रणबीर की जोड़िकाना किसी दौर में बड़ा फायदेमंद होता, लेकिन लोगों को फूड शो में बीफ को लेकर दिया बयान कतई रास नहीं आया है. ऐसे में लगता हैं कि इस मूवी को बस बच्चे ही बचा सकते हैं. 


कास्ट: रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, अमिताभ बच्चन, मौनी रॉय, डिंपल कपाड़िया, नागार्जुन और शाहरुख खान


निर्देशक: अयान मुखर्जी


स्टार रेटिंग: 3.5


कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में


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