Banda Singh Chaudhary Review: वो हौसला जो बंदा सिंह को बना देता है खास, एक बार तो देखना बनता है
अगर आपको इतिहास में घटी घटनाओं के बारे में जानने में दिलचस्पी रखते हैं तो ये `बंदा सिंह चौधरी` फिल्म आपको एक बार जरूर देखना चाहिए. इस फिल्म में अरशद वारसी और मेहर विज है. अगर आप इस फिल्म को देखने का सोच रहे हैं तो एक बार रिव्यू जरूर पढ़ लें.
फिल्म: बंदा सिंह चौधरी
रेटिंग्स: 3 स्टार्स
निर्देशक: अभिषेक सक्सेना
स्टार कास्ट: अरशद वारसी, मेहर विज, कियारा खन्ना, शताफ फिगर, शिल्पी मारवाह, जीवेशु अहलूवालिया और अलीशा चोपड़ा
फिल्म अवधि: 114 मिनट
कहां देखें: थिएटर्स
Banda Singh Chaudhary Review: कई फिल्में ऐसी होती हैं जो आपको अंदर तक झकझोर कर रख देती हैं. वैसे तो बॉलीवुड में फिल्मों के जरिए कई बार ऐसे मुद्दे उठाए हैं जो लोगों के आसपास घटी घटनाओं से जुड़े हैं. इन्हीं आसपास की घटनाओं से जुड़ी एक फिल्म 'बंदा सिंह चौधरी' है. 'बंदा सिंह चौधरी',1970 के आखिर और 1980 के शुरुआती वक्त की कहानी दिखाती है. ये कहानी पंजाब की है जो उस वक्त घटी थी. एक वक्त था जब पंजाब में उन लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा था जो सिख नहीं थे, या फिर मूल रूप से पंजाब के नहीं थे. इस कहानी को स्क्रीन पर उतारा गया है. तो चलिए आपको इस फिल्म के बारे में बताते हैं.
हौसले की कहानी
बंदा सिंह चौधरी (अरशद वारसी) को पंजाबी लड़की लल्ली (मेहर विज) से प्यार हो जाता है. दोनों की शादी होती है. इन दोनों की प्यारी सी बेटी नेमत होती है. ये दोनों शादीशुदा जिंदगी में खुशहाल रह रहे होते हैं. तभी अचानक कुछ लोग उन लोगों को मारना और धमकाना शुरू कर देता है जो पंजाब के नहीं हैं. उन्हें पंजाब छोड़ने पर मजबूर किया जाता है. परिवार इस तरह की धमकियों से परेशान हो जाता है. लेकिन बंदा सिंह हार नहीं मानता और खुद अपने परिवार की रक्षा करने के लिए उनकी ढाल बन जाता है.
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पहली बार ऐसे रोल में दिखे अरशद
वैसे तो आपने अरशद वारसी को हमेशा चुलबुले अंदाज में देखा होगा. लेकिन बंदा सिंह चौधरी के किरदार में अरशद संजीदा रोल में दिखे. उनकी एक्टिंग जबरदस्त लगीं और ये रोल उन्होंने स्क्रीन पर बेहतरीन तरीके से निभाया. अरशद वारसी के साथ इस फिल्म में मेहर विज लीड रोल में हैं. इन्होंने भी पंजाबी कुड़ी का किरदार परफेक्टली प्ले किया. इसके अलावा मूवी में कियारा खन्ना, शताफ फिगर, शिल्पी मारवाह, जीवेशु अहलूवालिया और अलीशा चोपड़ा भी हैं.
सलीके से दिखाया 80 का दशक
इस फिल्म की कहानी 80 के दशक की है. लिहाजा फिल्म में इस दशक को ठीक तरह से स्क्रीन पर प्रजेंट किया है. टेक्नीकली ये फिल्म काफी ठीक है. कैमरा, म्यूजिक, बैकग्राउंड स्कोर सभी कुछ ठीक है. अब बात आती है कि फिल्म देखें या नहीं. ये एक साफ सुथरी फिल्म है जिसे आप परिवार के साथ आराम से बैठकर देख सकते हैं. साथ ही इसमें इतिहास के उन पन्नों पर रोशनी डाली गई है. इसके साथ ही बंदा सिंह का हौसला आपको एक सीख भी देता है कि जिंदगी में कुछ भी हो जाए हार नहीं माननी चाहिए. ऐसे में इस फिल्म को एक बार तो देखना बनता है.
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