निर्देशक: रवि उध्यावर
स्टार कास्ट: सिद्धांत चतुर्वेदी, मालविका मोहनन, राज अर्जुन, राम कपूर, गजराज राव, राघव जुयाल और शिल्पा शुक्ला आदि
स्टार रेटिंग: 3


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इस फिल्म को लेकर एक उत्सुकता थी कि फरहान अख्तर ने डायलॉग लिखे हैं, ‘रजाकार’ के विलेन राज अर्जुन इस मूवी में भी विलेन हैं, हाल ही में आई सुपरहिट ‘किल’ के विलेन राघव जुयाल भी हैं, ‘थंगलान’ वाली मालविका मोहनन मुख्य हीरोइन के रोल में हैं और बड़े अच्छे लगने वाले राम कपूर और गजराव राव जैसे अभिनेता भी हैं. उस पर श्रीदेवी की फिल्म ‘मॉम’ के निर्देशक रवि उध्यावर 7 साल बाद कोई फिल्म निर्देशित करने जा रहे हैं, सबसे खास कहानी थ्रिलर मास्टर श्रीधर राघवन की है. कहानी का पहला हाफ आपको ढेर सारी उम्मीदों को जगा भी देता है, लेकिन आखिर में आपको लगता है कि फिल्म कहीं तो थोड़ी चूक गई है.    


कहानी
कहानी है एक ऐसे लड़के युद्रा या युध्रा की, जिसके दिमाग में शुरू से ही लोचा है, उसकी जिंदगी में भी कम लोचा नहीं है वैसे. बचपन से ही उसका छिपकली-गिरगिट प्रेम और जरूरत से ज्यादा गुस्सा उसका किरदार गढ़ता है. तीन आईपीएस ऑफिसर दोस्त हैं, जिनमें से एक उसके पिता है, जिन्हें एक ड्रग माफिया सिकंदर एक्सीडेंट में मरवा देता है, अब बेटे को दूसरा आईपीएस ऑफिसर राठौड़ (गजराज राव) पालता है और तीसरे रहमान (राम कपूर) से उसकी बेटी की दोस्ती हो जाती है. राठौड़ नौकरी छोड़कर राजनीति में आ जाता है, मंत्री बन जाता है, लेकिन युध्रा की हरकतों से परेशान रहता है. उसे आर्मी में भी भेजा जाता है, लेकिन ट्रेनिंग में भी एक कॉलेज के लड़कों को पीटने के चलते उसका कोर्टमार्शल कर 9 महीने की सजा दे दी जाती है.


तब आईपीएस रहमान उसे पिता के कत्ल के बारे में बताकर उसे विदेश में रह रहे कातिल सिकंदर व भारत में उसके खास आदमी से दुश्मन बन चुके ड्रग माफिया फिरोज (राज अर्जुन) और उसके बेटे शफीक (राघव जुयाल) के बारे में बताता है और उसे पुलिस का अंडरकवर एजेंट बना देता है. आगे की कहानी रहमान, उसकी बेटी निखत (मालविका) और युध्रा पर मंडरा रहे खतरे से निपटकर पिता के हत्यारे से बदला लेने की है. साथ में युध्रा व निखत का प्यार भी पनपता है.


क्यों पसंद आ सकती है
फिल्म युवाओं को पसंद आ सकती है, बाइक रेसिंग, साइकिल चेजिंग, हालिया आई ‘किल’ जैसे कुछ दमदार और हिंसक एक्शन सींस इस फिल्म की जान हैं. राज अर्जुन, राघव जुयाल और मालविका मोहनन एक बार फिर साबित करते हैं कि वो लम्बी रेस के खिलाड़ी हैं. मालविका आकर्षक भी हैं, हिंदी सिनेमा में जगह बना सकती हैं. वहीं राम कपूर फिर से निखरकर आए हैं, वहीं गजराज राव तो हमेशा की तरह बेहतरीन हैं. हां शिल्पा शुक्ला निराश करती हैं, उनके किरदार को ना ज्यादा वक्त मिला ना ही तबज्जो. लेकिन सबसे ज्यादा तबज्जो मिली है, वो हैं सिद्धांत चतुर्वेदी, जिनको लेकर आप एकमत नहीं हो सकते और मन में सवाल उठते हैं कि क्या वो वाकई पूरी फिल्म की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा सकते हैं.   


सिद्धांत चतुर्वेदी ‘गली बॉय’ के बाद ‘फोन बूथ’ और ‘गहराइयां’ में नजर आए, तब भी आम दर्शकों के मन में ये सवाल था कि एक नए चेहरे को रणवीर, कैटरीना और दीपिका के साथ इतनी तबज्जो क्यों मिल रही है. ऐसे में ‘युध्रा’ में तो सारा दारोमदार उन पर ही, एक्शन सींस, चेजिंग सींस, डांस सींस में वो बेहतर लगे भी हैं, लेकिन जितना सही वो गुस्से वाले सींस में लगे हैं, उतना रोमांटिक सींस में नहीं. 


मगर एक दिक्कत भी है...
लेकिन दिक्कत फिल्म के साथ एक दो और हैं, जैसे पहला ही गाना सोंडी लग दी, कतई फेल है और ओपनिंग के लिहाज से तो बिलुकल नहीं था. बाकी दोनों गाने साथिया और हट बाजू.. जावेद अख्तर ने लिखे हैं और थोड़े बेहतर बन पड़े हैं. डायलॉग्स के नाम पर कसाई और बनिया के गल्ले वाला डायलॉग छोड़ दिया जाए तो और कोई याद नहीं रहता, जबकि इन्हें फरहान अख्तर ने लिखा है. श्रीधर राघवन ने अपनी कहानी में हमेशा की तरह कुछ ट्विस्ट और टर्न्स डाले हैं, लेकिन वो इतने आसान थे कि थ्रिलर फिल्मों के शौकीन उन्हें आसानी से पकड़े सकते हैं. हालांकि फिल्म में सिनेमेटोग्राफी और लोकेशंस की दृष्टि से कई सींस अच्छे बन पड़े हैं.


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ऐसे में फिल्म के दूसरे हाफ, खासतौर पर क्लाइमेक्स का कमजोर होना दर्शकों के उत्साह को और भी कम करता है. राज अर्जुन और राघव जुयाल के किरदारों को थोड़ा और वक्त, थोड़ी और ताकत देनी चाहिए थी. लेकिन निर्देशक ने ज्यादा फोकस सिद्धांत के किरदार पर कर दिया, जन्म के पांच मिनट तक ऑक्सीजन ना मिलना, गिरगिट या छिपकली पालना, जरूरत से ज्यादा गुस्सैल होना आदि. कुल मिलाकर अगर आप सिद्धांत और मालविका के नाम पर हॉल्स में घुस गए हैं, तो शायद उतने निराश ना हों. खासतौर पर एक्शन सिनेमा के शौकीनों को ये मूवी पसंद आएगी.


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