Kantara In Hindi: यह दुर्लभ ही है कि क्षेत्रीय भाषा की कोई फिल्म इतनी लोकप्रिय हो कि हिंदी या दूसरी भाषाओं में उसके डब वर्जन की मांग उठने लगे. दो हफ्ते पहले कन्नड़ में रिलीज हुई कांतारा के साथ यही हुआ है. तीसरे शुक्रवार को यह फिल्म हिंदी में डब होकर आई है और आप कह सकते हैं कि कांतारा एक अनुभव करने वाला सिनेमा है. इसे कह-बोल कर समझाया नहीं जा सकता. दो हफ्ते पहले रिलीज हुई मणिरत्नम की पोन्नियिन सेल्वन 1 रिलीज हुई थी. इस फिल्म की कहानी और किरदार हिंदी पट्टी के दर्शकों के लिए इतने उलझे हुए थे कि इन्हें समझने में ही दिमाग खप जाता है. फिल्म का मजा तो दूर की बात है. मगर कांतारा के साथ ऐसा नहीं है.
क्या करें बॉलीवुड वाले
कांतारा कहानी 1870 से शुरू होती है. एक राजा, एक गांव और एक ग्राम देवता की इस कहानी को इतने स्पष्ट ढंग से हिंदी में समझाया गया कि आप कहीं उलझते नहीं बल्कि शुरुआती दृश्यों के साथ ही इससे जुड़ जाते हैं. बीते तीन-चार साल में हिंदी में दर्शकों का एक वर्ग तैयार हो चुका है, जो साउथ की फिल्मों में बहुत रुचि लेता है. अगर कांतारा जैसी फिल्में इन दर्शकों को सिनेमाघरों में दी जाएं, तो वह हिंदी फिल्मों के ऊपर उन्हें वरीयता देंगे और उन्हें देखने जरूर पहुंचेंगे. कांतारा जैसी फिल्म की हिंदी दर्शकों में प्रतीक्षा बताती है कि बॉलीवुड के मेकर्स को गांवों-कस्बों में प्रचलित कहानियों और वहां मिलने वाले किरदारों को देखकर उनकी संवेदना को समझने-पकड़ने की जरूरत है.


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एक था राजा
कांतारा लोक कथाओं से प्रेरित है. यहां एक राजा के पास सब कुछ है, मगर सुख-शांति नहीं है. वह इसकी तलाश में निकल कर एक गांव में पहुंचता है, जहां पत्थर के रूप में मौजूद ग्राम देवता के दर्शन के साथ ही उसे असीम शांति की अनुभूति होती है. सुख मिलता है. राजा देवता को अपने महल में ले जाना चाहता है, तब देवता एक मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके राजा से सवाल करता है कि मुझे यहां से ले तो जाओगे, बदले में गांव वालों को क्या दोगे. राजा कहता है कि जो आप कहेंगे. तब देवता कहता है तुम जोर से इन जंगलों में आवाज लगाओ और जहां तक तुम्हारी आवाज जाएगी, वहां तक की जमीन इन गांव वालों की. राजा ऐसा ही करता है और जहां तक उसकी आवाज जाती है, वहां तक की जमीन, जंगल-नदियां गांव वालों के हो जाते हैं. मगर सौ साल बीत जाते हैं और राजा के आधुनिक वंशज कहते हैं कि उनके पुरखे ने बेवकूफी करते हुए अपनी जमीन गांव वालों को दी. वे लोग गांव की जमीन वापस चाहते हैं और यहां से एक बेहद रोचक कहानी शुरू होती है.
आस्था और मन के विश्वास
कांतारा की कहानी में विस्तार है और गहराई भी. कहानी प्रकृति और शहरी सभ्यता से दूर रहने वाले प्रकृति-पुत्रों से जुड़ी है. इंसान की आस्था और मन में गहरे उतरे विश्वासों की बात करती है. कोई इन्हें अंधविश्वास कह सकता है, मगर रिषभ शेट्टी की कहानी आपको एक अलग दुनिया में ले जाती है. जो रोमांच और रहस्य से भरा है. फिल्म में एक्शन और रोमांस भी है. फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, देखने वाले की जिज्ञासा बढ़ाती है. रिषभ शेट्ट राइटर-डायरेक्टर के साथ लीड रोल में हैं और उनके एक्शन सीन बेहद विश्वसनीय हैं. तय है कि ऐसे हीरो अगर पर्दे पर आएंगे तो बॉलीवुड के उन एक्शन सितारों पर भारी पड़ेंगे, जो पर्दे पर और पर्दे के बाहर एक जैसे लगते हैं. जो एक्टिंग नहीं दिखाते बल्कि खुद को ब्रांड की तरह बेचते हैं.
ये है एंटरटेनमेंट
कहने को कांतारा की कहानी सरल है. प्रकृति और देवता में मनुष्य के सहज विश्वास की बात करती है. यहां हीरो बॉलीवुड के हीरो जैसा नकली नहीं है और आज की दुनिया के नियम-कायदों को देखते हुए वह गलत पाले में खड़ा नजर आता है. लेकिन अपनी जगह वह सही है. फिल्म दर्शक से भी कुछ सवाल करती है. कन्नड़ सिनेमा के केजीएफ वाले यश के बाद रिषभ शेट्टी हिंदी में एक और जाना-पहचाना नाम और चेहरा बनने को तैयार है. किशोर कुमार जी. को हिंदी के दर्शक वेबसीरीज शी में देख चुके हैं और यहां भी उनका परफॉरमेंस बहुत बढ़िया है. कांतारा को सहज हिंदी में डब किया गया है और इसमें वह एंटरटेनमेंट है, जिसकी हिंदी दर्शक बॉलीवुड फिल्मों में तलाश करते हैं. फिल्म शुरू से अंत तक बांधे रखती है. एक नई दुनिया दिखाती है. एंटरटेन करती है. दर्शक और क्या चाहता है. यहां एक्टरों का अभिनय और एक्शन, मेक-अप, लाइट, कैमरावर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है. वीएफएक्स सधा हुआ है. फिल्म का क्लाइमेक्स ऐसा है कि कांतारा खत्म होने के बाद आप कुछ देर सीट पर ही बैठे रहना चाहते हैं. यह विश्वास करना चाहते कि आपने अभी-अभी जो देखा, वह सचमुच आंखों के आगे से गुजरा है.


निर्देशकः रिषभ शेट्टी
सितारेः रिषभ शेट्टी, किशोर कुमार जी., अच्युत कुमार
रेटिंग ****