Budhani Manjhiyain Death: साल 2012 में आई अनुराग कश्यप की फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' की खूब तारीफ हुई. इसी फिल्म में जिक्र हुआ जिला 'धनबाद' का, जो अब झारखंड का हिस्सा है. अब फिल्म से हटकर एक बार फिर धनबाद चर्चा का विषय बन गया है. आपको बता दें कि धनबाद के खोरबोना गांव के लोग आदिवासी महिला 'बुधनी मंझिआईन' की स्मारक बनाने की मांग कर रहे हैं. बीते शुक्रवार की 17 तारीख को बुधनी मंझिआई का निधन हो गया. उनकी उम्र करीब 80 साल थी. अब आपके मन में सवाल होगा कि कौन हैं ये 'बुधनी मंझिआईन'?


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'पंडित नेहरू की आदिवासी पत्नी'?


स्थानीय लोग बुधनी मंझिआईन को 'पंडित नेहरू की आदिवासी पत्नी' भी कहते हैं. बुधनी मंझिआईन का परिचय और उनका नेहरू जी से रिश्ता जानने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा. बात साल 1959 की है जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पंचेत बांध का उद्घाटन करने पहुंचे हुए थे, जो वर्तमान में धनबाद के पास है. इस दौरान नेहरू जी के आवभगत में सभी सरकारी अफसर लगे हुए थे. प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए वहां माला रखी गई थी जिसे 15 साल की एक आदिवासी लड़की ने पंडित जी को पहनाया. यह लड़की कोई और नहीं बल्कि बुधनी मंझिआईन ही थीं.


अखबारों में छपी तस्वीरें, मासूम को मिली सजा!


पंचेत बांध के उद्घाटन की खबर तत्कालीन अखबारों के पन्नों पर आई. इसमें बुधनी मंझिआई और नेहरू जी को साथ दिखाया गया. बांध उद्घाटन के बाद से ही बुधनी की जिंदगी ने गजब की करवट ली. इसके बाद संथाली समाज की बैठक हुई और बुधनी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. संथाली समाज की मान्यता के अनुसार जब कोई लड़की किसी लड़के को माला पहनाती है तो उसे वर के रूप में देखा जाता है. यहीं से उस समाज ने बुधनी मंझिआईन को 'पंडित नेहरू की आदिवासी पत्नी' के रूप में देखा लेकिन असली पेच तब फंसा जब नेहरू जी की जाति का जिक्र संथालियों में हुआ. आदिवासी मान्यता के अनुसार बिरादरी के बाहर शादी करने के लिए बुधनी को समाज बहिष्कृत भी कर दिया गया.


समाज ने दी सजा, दिखाया बाहर का रास्ता


समय का पहिया घुमा और आज उसी गांव के लोग यह मांग उठा रहे हैं कि बुधनी मंझिआई का स्मारक बनाया जाए. यह दिलचस्प बात है कि इसी गांव के लोगों ने बुधनी मंझिआई को समाज से बाहर भी निकाला था. हालांकि अपने ऊपर लगे आरोपों पर बुधनी मंझिआईन ने सफाई दी थी कि उन्होंने नेहरू जी को माला नहीं पहनाई थी. बल्कि नेहरू ने सम्मान करते हुए अपनी माला मुझे पहना दी थी लेकिन आदिवासी लड़की की सफाई किसी काम नहीं आई और उसकी सजा को संथाली समाज ने बरकरार रखा.


स्मारक बनाने की मांग


बुधनी ने आगे चलकर डीवीसी के पावर हाउस में नौकरी की लेकिन साल 1962 में नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इसके बाद उनकी मुलाकात सुधीर दत्त से हुई जिनसे बुधनी एक बेटी भी हुई. बुधनी मंझिआई के निधन के बाद संथाली आदिवासी समाज के लोग उनके स्मारक बनाने की मांग कर रहे हैं.