क्या किसी युद्ध या लड़ाई से पर्यावरण पर बेहतर असर पड़ सकता है, इस सवाल पर आप भी कहेंगे भाई ये क्या बात हुई. जब मिसाइल, गोले, टैंक चल रहे होंगे तो उसकी वजह से पर्यावरण कैसे सुधर सकता है. जी हां आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं. लेकिन यहां पर चार ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र करेंगे जिसकी वजह कार्बन के उत्सर्जन में कमी आ गई थी. शोधकर्ता भी हैरान थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा. शोधकर्ताओं ने 1200 से लेकर 2000 के बीच यानी आठ सौ साल के मौसमी चक्र का अध्ययन कर हैरान करने वाली जानकारी दी. 


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दुनिया के सभी मुल्कों पर बदलते हुए मौसम का असर पड़ रहा है. जाड़े के समय में गर्मी, बारिश के सीजन में सूखा, गर्मी के समय कहीं बर्फबारी. इस तरह की खबरें हैरान तो करती हैं. लेकिन इनका सच से करीबी नाता है. क्लाइमेट चेंज के विषय पर दुनिया के देश इकट्ठा होते हैं. एक साथ मिलकर चर्चा करते हैं. लेकिन कोई भी देश खुद को जिम्मेदार नहीं बताता है. इन सबके बीच हम एक ऐसे शख्स की बात करेंगे जो खून का प्यासा था, करोड़ों लोगों की हत्या का जिम्मेदार था. लेकिन एक बड़ा काम भी कर गया, उस शख्स का नाम चंगेज खां है. अब सवाल है कि उसने किया क्या था.


करीब 800 साल के बदलाव पर अध्ययन


क्लाइमेट चेंज पर शोध कर रहे है वैज्ञानिकों ने 1200 से लेकर 1680 के दौरान मंगोल आक्रमण, ब्लैक डेथ, अमेरिका पर जीत और मिंग साम्राज्य पतन को अपने अध्ययन में शामिल किया था. आंकड़ों के जरिए बताया कि 1200 से 1470 एडी, और 1560 से 1680 के बीच तापमान में कमी आई थी. लेकिन उसमें भी 1200 से 1470 का साल खास है. शोधकर्ता बताते हैं कि जब हम 1200 से 1470 की बात करते हैं तो मंगोल शासक चंगेज खां का जिक्र करना जरूरी हो जाता है.


चंगेज ने 34 लाख का किया था कत्लेआम


शोधकर्ताओं ने 1200 से लेकर 2000 यानी 800 साल के वेदर पैटर्न पर रिसर्च किया है. उन्होंने बताया कि चंगेज खान जब अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था तो उसने लाखों की संख्या में लोगों को मार डाला था. साम्राज्य विस्तार में उसका सामना परोक्ष- प्रत्यक्ष करीब 11 करोड़ लोगों से हुआ था जिसमें उसकी सेना ने 34 लाख लोगों का कत्ल कर दिया था. उसके खून खराबे को जायज नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन इतनी अधिक संख्या में लोगों के मारे जाने की वजह से 1,42000 वर्ग किमी दायरे में वनों का विकास हुआ. इसकी वजह से 684 मिलियन टन कार्बन में कमी आई. वैश्विक स्तर पर यह कमी .183 पीपीएम थी.


कार्बन उत्सर्जन में आई कमी


अगर मंगोल आक्रमण की तुलना ब्लैक डेथ से करें तो ब्लैक डेथ मामले में कार्बन की कमी .026 पीपीएम थी. जबकि अमेरिका फतह करने और मिंग वंश की समाप्ति में होने वाली जनहानि से .013 और .048 पीपीएम की कमी आई.  लेकिन इसकी वजह से आइस कोर पर बहुत असर नहीं पड़ा. दरअसल पेड़ों को पूरी तरह से फलने फूलने में सैकड़ों साल लग जाते हैं. जबकि लोगों की संख्या फिर बढ़ जाती है और वनों का विनाश शुरू हो जाता है. इसके अलावा लोगों के कत्ल के जो मामले सामने आए जो खास जगह तक सीमित थे. जबकि कार्बन के उत्सर्जन के लिए दुनिया के अलग अलग हिस्से भी जिम्मेदार होते हैं. हालांकि इन सबके बीच मंगोल आक्रमणों की वजह से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई.