Madhya Pradesh News: भाजपा ने चौंकाने वाले ट्रेंड्स को बरकरार रखा है. जी हां, जब से एक OBC चेहरे मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा हुई है, भोपाल की सियासी हलचल लखनऊ-पटना तक महसूस की जा रही है. अब तक जातियों पर राजनीति करती आ रहीं कुछ पार्टियों के लिए इस घटनाक्रम को पचाना मुश्किल हो रहा होगा. खासतौर से यूपी और बिहार में पिछले तीन दशक से इसी के इर्द-गिर्द सियासत घूमती रही है. अब क्या होगा? क्षेत्रीय दलों के सामने यह बड़ा सवाल है. एक चाय-पकौड़ा बेचने वाले के बेटे (Mohan Yadav Tea Seller Son) मोहन यादव पर भरोसा कर बीजेपी ने पार्टी के दिग्गज बनने की कोशिश करने वाले नेताओं को भी बड़ा संदेश दिया है. भाजपा आलाकमान का यह फैसला इस बात की भी तसदीक करता है कि भगवा दल कैसे रणनीति के तहत नेताओं की नई फसल तैयार करता चल रहा है. वह किसी दबाव में नहीं है. फिलहाल पूरा फोकस ओबीसी समाज पर दिखाई देता है.


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उधर, एमपी में करीब दो दशक से सत्ता पर काबिज शिवराज सिंह चौहान की स्टेट पॉलिटिक्स पर भी फुल स्टॉप लग गया है. वह अटल-आडवाणी युग के कद्दावर नेता रहे हैं और अब भाजपा में मोदी-शाह का दौर चल रहा है. यह चुनाव प्रचार के समय ही लगभग तय हो गया था कि इस बार उन्हें सीएम की कुर्सी नहीं मिलने वाली है. अगर विपक्षी दलों को चुनौती देनी है तो हाल के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा की रणनीति को 'रिप्ले' करके देखना जरूरी है. एक तरफ एंटी-इनकंबेसी को ध्वस्त किया गया, मोदी के चेहरे पर 'मोदी गारंटी' को प्रमोट किया गया और अब एक फैसले से ही जातीय समीकरण भी साध लिया गया है. यहां किसी नेता के कद को नहीं बल्कि पार्टी हित को तवज्जो दी गई है. भाजपा के इस फैसले का असर 2024 में दिख सकता है.  


दलित और ब्राह्मण भी खुश


  1. दलित नेता जगदीश देवड़ा और विंध्य क्षेत्र के ब्राह्मण नेता राजेंद्र शुक्ला के तौर पर एमपी को दो डेप्युटी सीएम दिया गया है.

  2. नरेंद्र सिंह तोमर केंद्र में कृषि मंत्री थे, पद छोड़कर एमपी में विधायक का चुनाव लड़े और अब उनका मान रखते हुए विधानसभा स्पीकर बनाया जाएगा. 


मोहन यादव तो काफी पीछे बैठे थे...


इस चौंकाने वाले फैसले के बारे में तो मोहन यादव को भी अंदाजा नहीं था. उज्जैन (दक्षिण) से तीन बार के विधायक मोहन पिछली सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे हैं. घोषणा के समय वह पर्यवेक्षक और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, चौहान- तोमर, विजयवर्गीय वाली लाइन से दो कतार पीछे बैठे थे. यह पल कुछ-कुछ लॉटरी लगने जैसा कह सकते हैं. बताते हैं कि जब केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने उनके नाम की घोषणा की तो यादव को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ, वह कुछ सेकेंड तक शब्दों को लेकर आश्वस्त होते रहे कि क्या वह सही सुन रहे हैं. 


तीन राज्यों पर असर


मोहन यादव आरएसएस से जुड़े रहे हैं. उनका एबीवीपी बैकग्राउंड है और मालवा क्षेत्र से आते हैं. ऐसे समय में जब कांग्रेस समेत लगभग सभी पार्टियां जातियों के हिसाब से वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटी हैं, भाजपा ने यादव को सर्वोच्च पद देकर पूरे ओबीसी समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश की है. वैसे शिवराज सिंह चौहान खुद ओबीसी हैं लेकिन उनकी जगह लेने वाले मोहन यादव पर भाजपा ने सिर्फ एमपी नहीं पूरे देश को ध्यान में रखकर दांव खेला है. राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में भी यादवों की अच्छी खासी आबादी है. अब तक यादव वोटबैंक सपा और आरजेडी के साथ रहा है. अब भाजपा ने संदेश दिया है कि वह यादव को शीर्ष पद देकर उनके समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. अब सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और आरजेडी के तेजस्वी यादव को भाजपा के इस दांव की काट ढूंढनी होगी वरना 2024 में उनके वोट बैंक पर चोट तय है. 


यादव वोट बैंक का गणित


  • UP में करीब 12 प्रतिशत Yadav वोटर हैं. अब तक यह सपा का कोर वोटर रहा है. लोकसभा चुनाव में सपा का समीकरण गड़बड़ा सकता है. 

  • Bihar में Yadav वोटरों की आबादी करीब 15 प्रतिशत है, वहां आरजेडी और लालू प्रसाद यादव की पूरी सियासत के लिए खतरा पैदा हो गया है. 

  • Haryana में भी 10 प्रतिशत के करीब यादव वोटर हैं. एमपी का असर यहां के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है.