Karpuri Thakur Bharta Ratna:  सियासत में हर एक फैसले को नफा-नुकसान के जरिए से देखा जाता है. सत्ता के लिए लड़ाई में राजनीतिक दल एक दूसरे पर बयानों के जरिए, संकेतों के जरिए, अपनी नीतियों के जरिए निशाना साधते रहते हैं. लेकिन अंतिम फैसला तो जनता को ही करना होता है. जिस सियासी दल का फैसला लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हुआ वो सत्ता पर विराजमान हो गया. आप सोच रहे होंगे पिछले एक दो दिन में ऐसा क्या हुआ कि हम इसका जिक्र कर रहे हैं. 22 जनवरी की तारीख आपको याद ही होगी. उस खास दिन अयोध्या में राम लला अपने बालरूप में भव्य मंदिर में विराजमान हुए. उसके ठीक एक दिन बाद मोदी सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया. सामाजिक न्याय का झंडा बुलंद करने वाले शख्सियत कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला किया. यह फैसला 23 जनवरी 2024 को लिया गया. लेकिन एक और फैसला साल 1999 में भी लिया गया था. तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाले महान समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण को भारत रत्न देने का फैसला किया था. लेकिन यहां हम बात बिहार के संदर्भ में करेंगे.


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बिहार की राजनीति पर असर

आप सोच रहे होंगे जय प्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले से बिहार की राजनीति कैसे प्रभावित होगी. क्या मोदी सरकार ने लालू प्रसाद यादव- नीतीश कुमार की राजनीतिक थाती पर प्रहार किया है. दरअसल लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों अपने आपको सामाजिक आंदोलन का बड़ा चेहरा बताते रहे हैं. इन दोनो चेहरों को जय प्रकाश नारायण के आंदोलन की उपज माना जाता है. बिहार की सियासत में इन दोनों से अपने आपको इस तरह से पेश भी किया कि सही मायनों में जय प्रकाश बाबू की सोच को वो आगे बढ़ा रहे हैं. यह बहस का विषय हो सकता है कि व्यवहारिक तौर पर वो कितना कदम उनके रास्ते पर चले.


मोदी सरकार के इस फैसले को लालू- नीतीश की जाति वाली राजनीति के काट के तौर पर भी देखा जा रहा है. बीजेपी के नेता कहते भी रहे हैं कि यह बात तो सच है कि लालू- नीतीश पिछड़े वर्ग की बात करते रहे हैं. लेकिन क्या उन्होंने अति पिछड़ों के बारे में सोचा. आप सरकारी नौकरियों का हाल देखिए. उनके खिलाफ ज्यादती को देखिए. बिहार में क्या हो रहा है. सच तो यह है कि हम यानी बीजेपी सिर्फ पिछड़ों की बात नहीं बल्कि सभी पिछड़ों की बात करते हैं. सच तो यह है कि जब बिहार के सम्मान की बात आती है तो फैसला हम लेते हैं. चाहे बाबू जय प्रकाश नारायण रहे हों या सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करने वाले कर्पूरी ठाकुर. उससे भी बड़ी बात यह है कि हम सर्व समाज की बात करते हैं. हमारे लिए सिर्फ सिर्फ और एक ही जाति गरीबी है. और उसी गरीबी की बात कर्पूरी ठाकुर भी करते थे.


जरा इतिहास पर भी डालें नजर

अगर लालू यादव और नीतीश की सियासत की बात करें तो कमंडल-मंडल की राजनीति को कैसे भूल सकते हैं. आपको याद होगा कि 1980 के दशक के मध्य से भारत की सियासत खुद के लिए ना सिर्फ अलग जमीन तलाश रही बल्कि आने वाली राजनीति के लिए दिशा भी तय कर रही थी. राजीव गांधी के खिलाफ भ्रष्टाचार का नारा बुलंद कर वी पी सिंह सत्ता में आए. मैजिक नंबर से उनकी पार्टी जनता दल दूर थी. लेकिन कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल था कि दो अलग अलग विचार के दल यानी वाम और बीजेपी ने वी पी सिंह को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया था. हालांकि उनकी अपनी शर्त थी. यानी कि यह बात तो तय थी कि वी पी सिंह की सरकार लंबे समय तक सत्ता में नहीं रहने वाली है. वो शर्त मंडल और कमंडल की थी. सियासत में कहा भी जाता है कि जरूरत के मुताबिक राजनीतिक समीकरण के खांचे में अपने को फिट करने की कोशिश करते रहो. लेकिन साथ में अपने लिए जमीन भी तलाशो. जमीन तलाशने के क्रम में ही कमंडल के जरिए बीजेपी ने आगे बढ़ने का रास्ता तय किया तो मंडल के जरिए वी पी सिंह ने ट्रंप कार्ड खेल दिया और नतीजा हम सबको पता है.


वी पी सिंह की सरकार गिर चुकी थी. लेकिन राज्यों की सत्ता में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जैसे चेहरों को मौका मिल चुका था. अगर बात बिहार की करें तो सामाजिक न्याय के आंदोलन का फायदा सबसे अधिक लालू प्रसाद यादव को मिला. उधर केंद्र की सरकार में भी बदलाव हो चुका था. पी वी नरसिम्हा राव कांग्रेस सरकार की अगुवाई कर रहे थे. उनके बाद आया राम गया राम के मुहावरे पर चलने वाली सरकारें दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुईं. इन सबके बीच एक मांग जो शुरू से की जाती रही कि इमरजेंसी के खिलाफ अलख जगाने वाले बाबू जय प्रकाश नारायण को भारत रत्न मिलना चाहिए. लेकिन इस हकीकत को कैसे नजरंदाज किया जा सकता है कि समाजवाद की बात करने वाले खुद को समाजवादी कहने वाले अपनी ही सरकार में उन्हें भारत रत्न नहीं दे सके. हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की जब सरकार बनी तो उन्होंने वो फैसला किया जो असाधारण था. जय प्रकाश नारायण को भारत रत्न से सम्मानित किया.


लालू- नीतीश के लिए सियासी झटका

अब 25 साल बाद बीजेपी की सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर यह संदेश दिया कि सही मायनों में समाजवाद के हिमायती वो हैं. यह बात अलग है कि मोदी सरकार के फैसले की व्याख्या बिहार के सियासी दल खासतौर से आरजेडी और जेडीयू अपने अंदाज में कर रहे हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को शुक्रिया तो कहा है. लेकिन सियासी तौर पर उनके लिए बड़ा झटका कहा जा सकता है.बिहार की राजनीति में लालू यादव और नीतीश कुमार वैसे तो खुद को दलित, पिछड़ों, वंचित और शोषितों की आवाज बताते हैं. लेकिन यह सच भी है कि लालू यादव ने खुद को खास खांचे तक सीमित रखा. वहीं नीतीश कुमार आते तो पिछड़े समाज से हैं लेकिन उनकी भी पहचान कुर्मी समाज तक रही है. हालांकि जातिगत जनगणना की वो आवाज बुलंद करते रहे और जब उन्हें इस मामले में कामयाबी मिली तो कहने लगे कि बिहार के वंचितों की बात जब आती है तो बीजेपी विरोध करने लगती है. लेकिन हमने कर के दिखाया है. महागठबंधन की सरकार ने इसे ऐतिहासिक कामयाबी भी करार दिया था. हालांकि बीजेपी का यह कहना रहा कि लालू यादव- नीतीश कुमार भले ही खुद को वंचित समाज का उद्धार करने का दावा करते हों. आखिर सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले कर्पूरी ठाकुर के लिए क्या किया.