What is Offensive Defense Strategy: करीब चार साल की लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार चीन पूर्वी लद्दाख में अपने पैर खींचने को सहमत हो गया है. उसने देपसांग प्लेन और डेमचॉक एरिया में भारतीय सेना की फिर से पेट्रोलिंग पर अपनी सहमति जता दी है. साथ ही एलएसी पर तनाव घटाने के लिए दोनों देशों की सेनाओं के डिस-एंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू करने पर भी राजी हो गया है. इस घटना से दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होने की राह में एक बड़ा रोड़ा हटता दिखाई दे रहा है. लेकिन यह सब अनायास नहीं हुआ और न ही जिनपिंग का दिल भारत को लेकर अचानक पिघला है. असल में ऐसा करना उनके लिए बड़ी मजबूरी बन गया था. भारत की मोदी सरकार की 'Offensive-Defense Strategy' ने  आखिरकार चीन को घुटने टेकने पर मजबूर कर ही दिया. यह स्ट्रेटजी क्या है और इसने कैसे झुकने पर विवश कर दिया, आइए आपको विस्तार से बताते हैं.


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भारत के इस महानायक ने दी रणनीति


भारत की 'आक्रामक बचाव' यानी 'Offensive-Defense Strategy' का जनक मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को माना जाता है. मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले अजित डोभाल एक कार्यक्रम में गए थे. वहां पर उन्हें पाकिस्तानी आतंकवाद और भारत की प्रतिक्रिया पर बोलना था. तब उन्होंने 'Offensive-Defense' के बारे में बात करते हुए कहा था कि भारत अभी तक दुश्मन के हमले के बाद प्रतिक्रिया या बचाव करता है, जिसमें दुश्मन को खास नुकसान नहीं होता और वह दोबारा हमले के लिए प्रेरित होता है. जिस दिन भारत ने अपनी रणनीति बदलकर आक्रामक बचाव कर लिया तो वह न केवल दुश्मन के हमलों का सटीकता से बचाव करेगा बल्कि उसके घर में घुसकर करारा जवाब भी देना शुरू कर देगा. जिसके बाद दुश्मन को हम पर हमला करने से पहले 100 बार सोचने को मजबूर होना पड़ेगा.


मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अजित डोभाल को देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है और 'Offensive-Defense Strategy'भारत की अघोषित विदेश नीति बन गई. पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल, एयर स्ट्राइक और बाद में आर्थिक नाकाबंदी कर उसे घुटनों पर लाने में इस रणनीति का अहम रोल माना गया. अब चीन को झुकाने के लिए भी धैर्य के साथ इसी रणनीति पर काम किया गया, जो अंतत कामयाब सिद्ध हुई.


भारत के बारे में गलत आकलन कर बैठे जिनपिंग


डिफेंस एक्सपर्टों के मुताबिक, शी जिनपिंग ने अप्रैल 2020 में अपनी सेनाएं पूर्वी लद्दाख में यह सोचकर आगे बढ़ाई थीं कि चीन की मजबूत सैन्य ताकत की वजह से भारत चाहकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाएगा. इसके साथ ही दुनिया में महाशक्ति के रूप में उभरने का भारत का सपना भी चकनाचूर हो जाएगा. लेकिन जिनपिंग का यह दांव तब चकनाचूर हो गया, जब चीन की चाल का पता लगने पर मोदी सरकार ने भी महज एक हफ्ते के अंदर 50 हजार से ज्यादा सैनिक और भारी हथियार पूर्वी लद्दाख में पहुंचा दिए. इससे चीन को बड़ा झटका लगा. उसे उम्मीद नहीं थी कि सरहद पर अपने कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से भारत इतनी जल्दी सैनिकों का जमाव कर सकेगा. 


इसके बाद चीन ने अपने माउथपीस कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स के जरिए PLA के वीडियो जारी कर भारतीय सेनाओं को डराना चाहा लेकिन भारत उसके उकसावे में नहीं आया और शांत रहकर सीमा पर अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करता रहा. हालांकि भारतीय सेनाओं ने जवाबी वीडियो जारी कर देशवासियों को आश्वस्त किया कि चीन से निपटने के लिए तैयारियां पूरी हैं.


चीन को निपटाने के लिए फिलीपींस को दे दी ब्रह्मोस मिसाइलें


इसके बाद भारत ने क्वाड, G-7 समेत वैश्विक मंचों पर भी भारत ने चीन को घेरा. जिनपिंग को सबक सिखाने के लिए भारत ने चीन के प्रभुत्व वाले SCO में अपना प्रतिनिधित्व घटा दिया. इससे चीन को झटका लगा. वह रूस और भारत के साथ मिलकर SCO को वैश्विक आर्थिक मंच के रूप में खड़ा करना चाहता है, जिससे अमेरिकी प्रभुत्व वाले G-7 का मुकाबला किया जा सके. भारत ने विभिन्न बयानों के जरिए चीन को संकेत दिया कि सीमा पर हालात सामान्य हुए बिना आर्थिक संबंधों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.


चीन को घेरने के लिए भारत ने उसके पड़ोसी देशों वियतनाम, फिलीपींस इंडोनेशिया, मंगोलिया, जापान, दक्षिण कोरिया से संबंध मजबूत किए. यहां तक कि फिलीपींस को दुनिया की सबसे घातक ब्रह्मोस मिसाइलें भी सप्लाई कीं, जिसे रोकने का चीन के पास कोई तोड़ नहीं है और उनके जरिए फिलीपीन जब चाहे उसके अत्याधुनिक विमानवाहक पोतों को जल समाधि दे सकता है.


हिमालय में राफेल, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की तैनाती


भारत ने फ्रांस, रूस और अमेरिका की मदद से अपनी सेनाओं को मजबूत किया. साथ ही चीन सीमा के पास राफेल विमानों और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की तैनाती कर दी. इसके साथ ही मथुरा बेस्ड 1 स्ट्राइक कोर की तैनाती पाकिस्तान सेंट्रिक से हटाकर चीन सेंट्रिक कर दी. साथ ही 12 हजार जवानों की नई माउंटेन स्ट्राइकर कोर पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में खड़ी कर दी. 


ये दोनों भारत की हमलावर कोर हैं, जिनमें पहाड़ी लड़ाई में ट्रेंड जवान भर्ती किए गए हैं. इन दोनों कोर का काम युद्ध की स्थिति में तेजी से अटैक कर दुश्मन के ज्यादा इलाके पर कब्जा करना है. चीन के साथ संभावित युद्ध की स्थिति को देखते हुए भारत ने हिमालय के ऊंचे- ऊंचे पहाड़ों में अपने तोपखानों को मजबूत किया. साथ ही एलएसी तक जवानों- हथियारों को जल्दी पहुंचाने के लिए सड़कों- पुलों का जाल भी बिछा दिया. 


युद्ध हुआ तो चीन को बर्बाद कर देगा भारत!


चीन की पूरी अर्थव्यवस्था अरब देशों से सप्लाई किए गए तेल के बल पर चलती है, जिसका रूट मलक्का जलडमरू मध्य से होकर गुजरता है. यह भारत के अंडमान- निकोबार द्वीप समूह से महज कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है, जहां भारत की तीनों सेनाओं की एकमात्र थिएटर कमांड काम करती है. भारत ने नए हेलीकॉप्टरों और पनडुब्बियों से इस कमांड को और मजबूत कर चीन को संकेत दिया कि अगर उसने जंग की जुर्रत की तो वह उसके तेल रुट को बाधित करके उसकी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा.


चीन ने अंतरिक्ष में घूम रहे एक सैटेलाइट को अपनी मिसाइल को मार गिराकर भारत को इशारों में धमकी दी तो भारत ने भी ऐसी ही क्षमता का प्रदर्शन कर उसे संकेत दे दिया कि इसका अंजाम के लिए भी तैयार रहे. चीन ने 14000 हजार किमी तक मार करने वाली अपनी खतरनाक मिसाइल डोंगफेंग दिखाई तो भारत ने भी पिछले 5 साल में अग्नि- 5 के कई परीक्षण कर संकेत दे दिया कि हमले की स्थिति में उसकी राजधानी बीजिंग समेत तमाम बड़े शहर उसके निशाने पर हैं.


सटीक विदेश नीति ने चीन को कर दिया 'अकेला'


भारत ने जहां रक्षात्मक तैयारी के मामले में जिनपिंग की धार कुंद की. वहीं मारक विदेश नीति के जरिए जयशंकर ने भी चीन को पंगु करके रख दिया. अपने लगभग हरेक ग्लोबल स्पीच में भारतीय विदेश मंत्री ने बताया कि भारत- चीन के संबंध नहीं है और जब तक पूर्वी लद्दाख में 2020 से पहले वाले हालात नहीं बनते, तब तक रिश्ते सुधरने वाले नहीं है. ऐसा करके भारत ने चीन के सामने एक स्पष्ट लाइन खींच दी थी कि अगर वह आगे बढ़कर हमले की जुर्रत करता है तो उसे अपने मुल्क की बर्बादी के लिए तैयार रहना होगा. वहीं अगर वह भारत से संबंध सामान्य करना चाहता है तो उसे देपसांग प्लेन और डेमचोक एरिया में भारतीय सैनिकों को फिर से पेट्रोलिंग की इजाजत देकर उसके दावे को मानना होगा. 


सूत्रों के मुताबिक भारत ने चीन को काबू में करने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन का भी सहारा लिया. पुतिन के जरिए बार- बार चीन को संदेश भेजकर उसके सरहद पर जमावड़े से हो रहे दोनों देशों के नुकसानों के बारे में बताया गया. यूक्रेन में पश्चिम देशों के साथ अघोषित युद्ध में उलझे पुतिन ने भी जिनपिंग को हालात के बारे में बताकर उन्हें सुर नरम करने के लिए तैयार किया. 


जिनपिंग भी समझ गए होंगे, 'नए भारत की सच्चाई'!


भारत की सटीक 'Offensive-Defense Strategy' और चारों ओर से हुई घेराबंदी के बाद चीन को आखिरकार न- न करने के बावजूद सीमा पर अपने पैर खींचने के लिए मजबूर होना पड़ ही गया. इसके साथ ही यह बात एक बार फिर साबित हो गई कि यह नया भारत है, जो न तो किसी को झुकाता है और न ही किसी से झुकना चाहता है. वह बस बराबरी के संबंध चाहता है. उम्मीद है कि इस प्रकरण के बाद जिनपिंग को भी नए भारत की सच्चाई समझ आ गई होगी.