शफीकुर्रहमान बर्क को क्यों कहा जाता था अखिलेश यादव का `भीष्म`, हमेशा सुर्खियों में रहते थे सबसे बुजुर्ग सांसद
हमेशा सुर्खियों में रहने वाले देश के सबसे बुजुर्ग सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क का इंतकाल हो गया. संसद में वंदे मातरम का विरोध करने, तालिबान और फिलिस्तीन का समर्थन करने और मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होने में वर्क विवादों की परवाह भी नहीं करते थे.
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और संभल लोकसभा सीट से सांसद डॉक्टर शफीकुर्रहमान बर्क ने 94 साल की उम्र में मुरादाबाद के प्राइवेट अस्पताल में आखिरी सांस ली. उनका तबीयत लंबे समय से नासाज चल रही थी. देश के सबसे बुजुर्ग सांसद बर्क को सपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में भी संभल से उम्मीदवार बनाया था. दुनिया से रुख्सत हुए शफीकुर्रहमान बर्क को अखिलेश यादव का 'भीष्म' कहा जाता था. आइए, जानते हैं कि इसकी क्या वजह थी?
समाजवादी पार्टी बनाते समय मुलायम सिंह यादव का साथ देने वाले दिग्गज अल्पसंख्यक नेता
लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले शफीकुर्रहमान बर्क का इंतकाल अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका है. दरअसल, समाजवादी पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए 16 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही संभल सीट से शफीकुर्रहमान बर्क के नाम की घोषणा भी कर दी थी. समाजवादी पार्टी बनाते समय मुलायम सिंह यादव का साथ देने वाले दिग्गज अल्पसंख्यक नेता को मोदी लहर में भी कोई हरा नहीं पाया था. इसलिए उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में शफीकुर्रहमान बर्क को अखिलेश यादव का 'भीष्म' कहा जाता था.
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में उन्होंने अपने प्रभाव और अपनी जिद का इस्तेमाल कर अपने पोते जियाउर्रहमान बर्क के लिए अखिलेश यादव से सपा का टिकट लिया था. बर्क मे कुंदारकी सीट से अपने पोते को जिताकर विधायक भी बना दिया था.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने शफीकुर्रहमान बर्क के इंतकाल पर जताया दुख
शफीकुर्रहमान बर्क के इंतकाल पर समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर दुख जाहिर किया. अखिलेश यादव ने लिखा कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और कई बार के सांसद जनाब शफीकुर्रहमान बर्क साहब का इंतकाल हो गया है जिससे अत्यंत दु:ख पहुंचा है. अखिलेश ने शफीकुर्रहमान की आत्मा की शांति की कामना की और उनके परिवार के प्रति संवेदना भी व्यक्त की.
93 साल में भी संसद आने पर पीएम मोदी ने की थी तारीफ, वंदे मातरम के विरोध पर विवाद
डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क उम्र के इस आखिरी पड़ाव में भी राजनीति में सक्रिय थे. उनकी इस क्वालिटी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तारीफ की है. नई संसद में बर्क की मौजदूगी को उन्होंने सीखने लायक बताया था. पीएम मोदी ने कहा था कि 93 साल की उम्र में भी डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क सदन में मौजूद हैं. सदन के प्रति ऐसी निष्ठा होनी चाहिए. यह बाकी लोगों के लिए सीखने लायक है. हालांकि, संसद में शफीकुर्रहमान बर्क के वंदे मातरम का विरोध करने को लेकर काफी बवाल भी मचा था.
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक रह चुके शफीकुर्रहमान बर्क ने तालिबान और फिलिस्तीन का खुलकर समर्थन भी किया था. तब इसको लेकर भी काफी सियासी हंगामा हुआ था. इसके अलावा भी वह वक्त- बेवक्त अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में शामिल रहते थे. साथ ही मामले के तूल पकड़ने पर वह बयानों से पलट जाने को लेकर भी चर्चा में रहते थे. एक बार टीवी क्विज शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में भी उनसे जुड़ा सवाल पूछा जा चुका है. शो के होस्ट अमिताभ बच्चन ने एक बार हॉट सीट पर बैठे प्रतिभागी से पूछा था कि देश में सबसे ज्यादा उम्र के सांसद कौन हैं. उनका क्या नाम है?
चौधरी चरण सिंह के साथ सियासी करियर की शुरुआत, मुस्लिम नेता के रूप में पहचान
शफीकुर्रहमान बर्क ने किसानों के नेता भारत रत्न चौधरी चरण सिंह के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. बाद में वह मुलायम सिंह यादव, जनेश्वर मिश्रा, मोहन सिंह और आजम खां समेत बाकी नेताओं के साथ हो लिए. बर्क के बारे में कहा जाता है कि उन्हें किसी राजनीति दल से कोई खास लगाव नहीं था. इसलिए उन्होंने सपा और बसपा दोनों से चुनाव लड़ा. उनकी राजनीति का एजेंडा मुस्लिम मुद्दों पर आधारित था. बर्क का कार्य क्षेत्र मुरादाबाद और संभल भी मुस्लिम आबादी के कारण ही मशहूर रहा है. मुस्लिम नेता के रूप में ही उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी.
10 बार विधानसभा चुनाव लड़े 4 बार जीते, 5 बार सांसद भी रहे शफीकुर्रहमान बर्क
उत्तर प्रदेश के संभल में 11 जुलाई 1930 को शफीकुर्रहमान बर्क का जन्म हुआ था. संभल से ही उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई के बाद उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से बीए किया. साल 1967 में चुनावी राजनीति में आने और शुरुआती दो चुनाव हारने के बाद साल 1974 में बीकेडी के टिकट पहली बार विधायक बने. इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी, 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल से भी विधायक चुने गए. साल 1996 में सपा के टिकट पर उन्होंने पहली बार मुरादाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2004 तक वो लगातार सपा के टिकट पर सांसद रहे.
पार्टी और सीट बदलने से भी नहीं गुरेज, राजनीति में अंत तक एक्टिव रहे सबसे बुजुर्ग सांसद
इसके बाद सपा से अलग होकर शफीकुर्रहमान बर्क बसपा में शामिल हो गए. उन्होंने पार्टी के साथ ही अपनी सीट भी बदली और साल 2009 में संभल से चुनाव लड़कर जीत हासिल की. 2014 के चुनाव में हारने के बाद 2019 में सपा और बसपा के गठबंधन में वो एक बार फिर से सांसद बने. इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में वापस आ गए. अपने राजनीतिक सफर में शफीकुर्रहमान बर्क ने 10 बार विधानसभा चुनाव लड़ा और चार बार उन्हें जीत मिली. एक बार यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. तीन बार मुरादाबाद और दो बार संभल लोकसभा सीट से यानी 5 बार लोकसभा सांसद भी रहे. हाल ही में संपन्न हुई 17वीं लोकसभा में शफीकुर्रहमान बर्क सबसे बुजुर्ग सांसद थे.