Enforcement Directorate News:  जांच एजेंसियों यानी सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को विपक्षी दल केंद्र सरकार का हथियार बताते हैं. विपक्ष के नेता करीब करीब हर बयानों में कहते हैं कि इन एजेंसियों के जरिए विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है. खासतौर से पीएमएलए और ईडी की कार्यप्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 200 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं. उन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. सुनवाई के केंद्र में  सेक्शन 50 और सेक्शन 63 हैं. यहां पर हम आपको बताएंगे कि सुप्रीम कोर्ट में किस अंदाज में इस विषय पर चर्चा हो रही है साथ ही इन दोनों सेक्शन से याचिकाकर्ताओं को आपत्ति क्यों है.


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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई


सुप्रीम कोर्ट में इस विषय पर भी सुनवाई हो रही है कि क्या पीएमएलए से संबंधित कठोर प्रोविजंस की समीक्षा के लिए पांच सदस्यों वाली पीठ गठित की जाए या नहीं. सुनवाई के दौरान याचियों ने ईडी को अनियंत्रित घोड़े की तरह बताया. तो केंद्र सरकार की तरफ से दलील पेश करते हुए सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि याचियों के वकीलों का व्यवहार शॉकिंग है. यही नहीं यह भी कहा गया कि कुछ अतिरिक्त लाभ पाने के मकसद से 2022 वाले फैसले के खिलाफ याचिका में अंतिम समय में कुछ संशोधन किए गए. दोनों पक्षों में जब गरमागरमी बढ़ने लगी तो बेंच में शामिल जजों  संजय किशन कौल, संजीव खन्ना और बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि भाई आप लोग अदालत की मर्यादा बनाए रखिए. ऐसा लग रहा है कि अदालत को छोड़ हर किसी को जल्दबाजी है. दोनों पक्ष जरूरत से अधिक उग्र हो रहे हैं.


चर्चा में सेक्शन 50 और 63


सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचियों को पीएमएलए के  सेक्शन 50 (समन को जारी करने) और सेक्शन 63( गलत जानकारी देने पर सजा या जानकारी दे पाने में नाकाम रहने पर) से ही ज्यादा आपत्ति है. खास बात यह है कि याचियों ने अपनी अर्जी में ना सिर्फ संशोधन किया बल्कि उन फैसलों को चुनौती दी है जिसे अदालत पहले ही सही ठहरा चुकी है. उन्होंने अदालत से कहा कि वो सेक्शन 50 और 63 के अतिरिक्त किसी और विषय पर सुनवाई ना करे. उन्होंने कहा कि पीएमएल के तहत जो लोग आरोपी बनाए गए हैं वो लंबित मामलों का हवाला देकर अंतरिम राहत पाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि कुछ मामलों में ना तो शिकायत और ना ही एफआईआर दर्ज की गई है.


सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि हमने सभी याचिकाओं की जांच की है जिसमें सेक्शन 50 और 63 को छोड़ किसी और प्रोविजंस पर आपत्ति नहीं उठाई गई है. उसके बाद याचिका में संशोधन की अर्जी लगाई गई.इसकी वजह से पूरा मामला बदल गया है. लेकिन केंद्र की दलील पर विरोधी पक्ष के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनौती देते हुये कहा कि याचिका में कोई नई बात नहीं जोड़ी गई है. सिब्बल ने कहा कि एक्ट में जिन डॉरकोनियन प्रोविजंस को शामिल किया गया है वो रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है. सच तो यह है कि जिस किसी शख्स के खिलाफ शिकायत या एफआईआर दर्ज की जा रही है उसे वजह तक नहीं बताया जा रहा है. ईडी उस अनियंत्रित घोड़े की तरह है जो कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है. 2022 के फैसले में कई तरह की खामियां है. पूछताछ और जांच के बीच में फर्क होना चाहिए. लेकिन अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इसमें कोई फर्क नहीं है. हालांकि सिब्बल को टोकते हुए एसजी ने कहा कि 22 दिन की सुनवाई के बाद 2022 के फैसले को सुनाया गया था. खास बात यह है कि जो लोग आज  इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं वो लोग उस समय भी इस केस के हिस्सा थे. यह तो पूरी तरह की रूल ऑफ लॉ के दुरुपयोग का मामला है.


क्या था 2022 का फैसला


बता दें कि 27 जुलाई 2022 को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने पीएमएलए के कठोर प्रोविजंस को न्यायसंगत बताया था. उस प्रोविजंस में खास बात यह है कि ईडी के अधिकारी पीएमएलए के तहत बिना शिकायत भी किसी शख्स के ठिकाने पर रेड, जब्ती और गिरफ्तारी कर सकते हैं. यही नहीं जांच एजेंसी के सामने आरोपी के बयान को अदालत में मान्य माना जाएगा यानी कि जांच एजेंसी बयान को ही सबूत के तौर पर पेश कर सकती है. यही नहीं बेगुनाही साबित करने का भार भी आरोपी पर ही होगा. जुलाई 2022 में अदालत ने फैसले में दो बड़ी बात कही थी. आरोपी को जमानत मिल सकती है बशर्ते अदालत को यह समझ में आ जाए कि वो दोषी नहीं है. यही नहीं वो जमात के दौरान अपराध नहीं करेगा. 545 पेज वाले फैसले की खास बात यह है कि अगर किसी शख्स ने कोई प्रॉपर्टी खरीदी जिसके बारे में उसे नहीं पता है कि वो अवैध तरीके से बनाई गई हो उस केस में वो पीएमएलए के दायरे में आएगा.