Explainer: बिखरा वोटबैंक, हताश संगठन, क्या बीएसपी में नई जान फूंक पाएंगे आकाश, सामने हैं ये चुनौतियां
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Akash Anand Profile: बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से पार्टी का नेशनल को-आर्डिनेटर बना दिया है. लेकिन क्या पार्टी में नंबर- 2 बनने के बाद वे बसपा में नई जान फूंक पाएंगे.
Who is Akash Anand: बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को महज 2 महीने के अंदर ही पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर पद पर बहाल कर दिया है. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने और केस दर्ज होने के बाद उन्हें इस पद से हटाया गया था. इसके साथ ही पार्टी सुप्रीमो बनने की दिशा में वे एक कदम और आगे बढ़ गए हैं. लेकिन क्या आने वाला वक्त उनके लिए वाकई बेहतरीन रहने वाला है. बिखरा वोटबैंक, हताश संगठन समेत ऐसी कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिसने आकाश आनंद को जूझना होगा. अगर वे इन चुनौतियों को कामयाबी से पार कर लेते हैं तो यकीनन उन्हें बड़ा लीडर बनने से कोई नहीं रोक पाएगा लेकिन अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो 4 दशकों की मेहनत से खड़े हुए बहुजन मूवमेंट की विरासत को ढहने में देर भी नहीं लगेगी.
कौन हैं आकाश आनंद?
आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं. वे अपने मां-बाप के साथ नोएडा के सबसे पॉश सेक्टर सेक्टर 44 में रहते हैं. आकाश आनंद ने अपनी स्कूली पढ़ाई नोएडा और गुरुग्राम के महंगे प्राइवेट स्कूलों में की थी. इसके बाद उनके मां-बाप ने उन्हें एमबीए करने के लिए लंदन भेज दिया. वहां पर 2013 से 2016 के बीच उन्होंने लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ प्लाईमाउथ से पढ़ाई की. वापस आने के बाद उन्होंने अपने पिता का बिजनेस संभालना शुरू किया. साथ ही अपने परिवार की जमी- जमाई पार्टी बीएसपी में भी सक्रिय हो गए.
2019 में बनाया स्टार प्रचारक
मायावती ने भी अपने इस लाडले भतीजे पर खूब प्यार लुटाया और धीरे- धीरे उन्हें पार्टी संचालन में पारंगत किया. वर्ष 2017 के यूपी असेंबली चुनाव में जब बीएसपी को लगातार दूसरी बार करारी हार मिली तो उन्होंने आकाश आनंद को सामने लाने का फैसला किया. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी की ओर से उन्हें स्टार प्रचारक घोषित कर दिया. यह मायावती की भतीजे को धीरे- धीरे पार्टी का मुखिया बनाने की रणनीति थी, जिसे वे खामोशी से अंजाम दे रही थीं.
बिना शोर किए भतीजे को आगे बढ़ाया
असल में वे कई बार यह ऐलान कर चुकी थी कि उनके बाद उनके परिवार से पार्टी का कोई मुखिया नहीं बनेगा और बहुजन मूवमेंट आगे कैसे चलाना है, यह समाज के लोग तय करेंगे. ऐसे में आकाश आनंद को एकदम से नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाने से पार्टी में टूट हो सकती थी और कॉडर बिखर सकता था. यही वजह रही की कि मायावती ने ज्यादा शोर-शराबा किए बिना आकाश आनंद को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ किया.
पिछले साल बना दिया अपना उत्तराधिकारी
मायावती ने पिछले साल मौका देखकर आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर घोषित कर दिया. यह सीधे- सीधे उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान था. यह पद मिलने के बाद आकाश आनंद फुल फॉर्म में आ गए और लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन, रणनीति बनाने और सभाएं करने के काम में जुट गए. हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने पर उनके खिलाफ केस दर्ज हो गया, जिसके बाद मायावती ने उनसे नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद वापस ले लिया था.
आकाश आनंद के लिए बड़ी चुनौतियां
अब आकाश से इस पद पर वापस आ गए हैं और मायावती के बाद पार्टी के नंबर- 2 सर्वेसर्वा हो गए हैं. हालांकि यह पोस्ट मिलने के बाद भी उनकी आगे की राह आसान रहेगा, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. पिछले 12 सालों में जब से बसपा यूपी की सत्ता से बाहर हुई है, उसके तमाम बड़े नेता छिटक दूर जा चुके हैं. उनमें से कई नेताओं को खुद मायावती ने अपनी हठधर्मिता के चलते हटा दिया तो कईयों ने खुद ही अपना सम्मान बचाने के लिए पार्टी से नाता तोड़ लिया. इससे पार्टी को खासा नुकसान पहुंचा.
दूसरी बड़ी बात ये है कि बीएसपी का कोर वोट बैंक रहे दलित और पिछड़े तबके उससे काफी हद तक छिटक चुके हैं. उनमें से कई तबके मजबूती के साथ बीजेपी के साथ जुड़ गए हैं तो कई तबके अखिलेश की सपा के साथ जा चुके हैं. एक जमाने में मुसलमान भी बसपा का कोर वोट बैंक हुआ करता था, लेकिन अब बीजेपी के खिलाफ बसपा को कमजोर देख वे भी अखिलेश से गठबंधन कर चुके हैं. बसपा के लिए राहत की एकमात्र बात ये है कि जाटव समाज का वोटर काफी हद तक अब भी मायावती के साथ है, लेकिन केवल उसके भरोसे कोई भी चुनाव मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है.
चंद्रशेखर से कैसे निपटेंगे आकाश
आकाश आनंद के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यूपी में उभर रहे दूसरे जाटव नेता चंद्रशेखर रावण हैं, जो पहले भीम आर्मी बनाकर सहारनपुर और आसपास के जिलों में सक्रिय थे. चंद्रशेखर ने पहले बसपा से जुड़ने की कोशिश की थी लेकिन जब मायावती ने कोई भाव नहीं दिया तो उन्होंने खुद की पार्टी आजाद समाज पार्टी बना ली. इस पार्टी के बैनर तले वे इस बार यूपी की नगीना सुरक्षित सीट से चुनाव में उतरे और जीत गए. मजे की बात ये है कि चंद्रशेखर को रोकने के लिए खुद आकाश आनंद ने वहां पर जनसभा की थी और दलित समाज के लोगों को इशारों- इशारों में चंद्रशेखर से दूर रहने को कहा था.
पार्टी को फिर से खड़ा करने का चैलेंज
आकाश की इन कोशिशों और आग उगलने वाले बयानों के बावजूद चंद्रशेखर वहां पर बढ़िया तरीके से जीतने में कामयाब रहे और बसपा तीसरे नंबर पर सिमट कर रह गई. ऐसे में आगे चलकर अगर जाटव समाज पर चंद्रशेखर का सिक्का चल निकलता है तो यूपी की राजनीति में उन्हें जमने से कोई नहीं रोक सके. उनका यही उत्थान आकाश आनंद के लिए बड़ा खतरा है, जिसे मायावती और आनंद कुमार समेत परिवार के तमाम लोग महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अब देखने लायक होगी कि बसपा के बिखरे कुनबे को इकट्ठा करने और चंद्रशेखर की रणनीति से निपटने के लिए आकाश आनंद आने वाले वक्त में कौन सा कदम उठाएंगे, जो उन्हें यूपी की राजनीति में स्थापित कर सके.