Kidney Swap: पिछले साल 15 दिसंबर को मुंबई के केईएम अस्पताल के ओटी में चार लोग लाए गए. इनमें से दो किडनी के मरीज थे और दो डोनर. किडनी के दोनों मरीजों का ट्रांसप्लांट होना था. अब इसमें कुछ अलग क्या है. दरअसल किडनी ट्रांसप्लांट का केस डोनर की वजह हो गया. धर्म की दीवार तोड़ दो परिवारों ने एक दूसरे के मरीज को किडनी डोनेट करने का फैसला किया था. केईएम अस्पताल के नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ तुकाराम जमाले ने कहा कि वैसे तो अलग अलग धर्मों के लोगों ने पहले भी किडनी डोनेट किया है. लेकिन जब इस तरह के मामले सामने आते हैं तो अलग तरह की फीलिंग होती है. यहां हम बताएंगे कि पूरी कहानी क्या है.


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मुंबई के रहने वाले हैं रफीक शाह- राहुल यादव

करीब एक साल पहले कल्यान के रहने वाले रफीक शाह और घाटकोपर के आयुर्वेदिर डॉक्टर राहुल यादव केईएम अस्पताल के डॉयलिसिस सेंटर में मिले थे. डॉयलिसिस शब्द से ही साफ है कि दोनों कि किडनी खराब थी. दोनों अपने किडनी को बदलवाना भी चाहते थे. लेकिन समस्या डोनर की थी. धीरे धीरे रफीक शाह और राहुल यादव में भावनात्मक लगाव बढ़ा. एक दूसरे ने अपनी दिक्कत बताई. दोनों के परिवार को जानकारी हुई और जो फैसला किया उसकी चर्चा हो रही है.


ब्लड ग्रुप सेम ना होने से आई दिक्कत

रफीक शाह की पत्नी खुशनुमा किडनी डोनेट करना तो चाहती थीं. लेकिन समस्या ब्लड ग्रुप की आई. रफीक शाह की ब्लड ग्रुप जहां बी पॉजिटिव था वहीं पत्नी का ब्लड ग्रुप एक पॉजिटिव था. कुछ ऐसी ही समस्या से राहुल यादव भी गुजर रहे थे. राहुल यादव का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था वहीं उनकी मां का बी पॉजिटिव था. ऐसी सूरत में दोनों परिवार अपने मरीज को किडनी डोनेट नहीं कर सकते थे. ऐसे में सिर्फ एक ही उम्मीद बची कि दोनों परिवार किडनी की अदला बदली करें. केईएम अस्पताल के मुताबिक हमारे यहां मरीजों और डोनर का रिकार्ड रखा जाता है और उस रिकॉर्ड से पता चला की रफीक शाह और राहुल यादव दोनों की किडनी बदली जा सकती है हालांकि दोनों परिवारों के बीच सहमति जरूरी थी. हमने दोनों परिवारों को किडनी डोनेट करने के लिए राजी किया.


2006 में हुई थी किडनी की पहली स्वैपिंग
दोनों परिवारों की सहमति के बाद एक ही साथ चार ऑपरेशन को अंजाम दिया गया. देश का पहला स्वैप ट्रांसप्लांट 2006 में मुंबई में किया गया था और दोनों परिवारों का नाता हिंदु-मुस्लिम समाज से था. उसके बाद से जयपुर, चंडीगढ़ और बेंगलुरु में इंटरफेथ यानी अलग अलग धर्मों से जुड़े परिवारों ने किडनी डोनेट किया है. राहुल यादव के पिता(ऑटो ड्राइवर) बताते हैं कि उनका बेटा सात साल का था जब किडनी की समस्या डिटेक्ट हुई. उनका बेटा सभी मुश्किलों का सामना करते हुए पढ़ाई कर डॉक्टर बना. तीन साल पहले तक दवाइयो से इलाज चलता रहा. हालांकि बाद में हमारे सामने डायलिसिस और ट्रांसप्लांट के सिवाए कोई और रास्ता नहीं था. सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों परिवार कभी भी एक दूसरे के घर नहीं गए लेकिन इस अमुल्य उपहार के मिलने के बाद प्यार और सम्मान और गहरा हुआ है.