हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों (PM2.5) और बड़े कणों (PM10) के कारण डिप्रेशन, एंग्जाइटी और अन्य दिमागी बीमारी का खतरा बढ़ गया है. हवा में मौजूद कणों और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध की पुष्टि करते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)  यह जानकारी दी.


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NGT ने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख के आधार पर इस मामले का संज्ञान लिया था, जिसके बाद आईसीएमआर (नई दिल्ली) के उप महानिदेशक ने मानसिक स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के संबंध में जवाब प्रस्तुत किया है. एनजीटी ने कहा था कि वायु प्रदूषण के कैमिकल और फिजिकल तत्वों का शरीर के विभिन्न अंगों पर उनके बुरे प्रभावों पर गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है, खासकर मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर.


13 दिसंबर की रिपोर्ट में आईसीएमआर ने यह भी कहा है कि वायु प्रदूषण और कमजोर मानसिक स्वास्थ्य के बीच सीधे लिंक को साबित करने के लिए और गहन शोध की जरूरत है, क्योंकि अभी तक इस विषय पर पर्याप्त साहित्य उपलब्ध नहीं है और अध्ययन के तरीकों में भी कुछ चुनौतियां हैं. इसके संक्षेप में, एनजीटी ने वायु प्रदूषण के अलग-अलग तत्वों पर अधिक शोध का आग्रह किया है, जबकि आईसीएमआर ने भविष्य में और अधिक अध्ययन की जरूरत बताई है ताकि वायु प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य के बीच के संबंध को पूरी तरह से समझा जा सके.


आईसीएमआर की रिपोर्ट
आईसीएमआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक PM2.5 के संपर्क में आने से डिप्रेशन का खतरा 1.102 गुना बढ़ सकता है. इसके अलावा, PM2.5 के संपर्क में आने से एग्जाइंटी का खतरा भी बढ़ सकता है. आईसीएमआर ने हवा प्रदूषण के अन्य घटकों को भी देखा, जैसे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हुए पाया गया.


गर्भवती महिलाओं को भी खतरा
अध्ययन यह भी बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं पर हवा प्रदूषण का खास असर पड़ता है. दूसरे ट्राइमेस्टर में प्रदूषण के संपर्क में आने से डिप्रेशन का खतरा बढ़ सकता है और तीसरे ट्राइमेस्टर में डिप्रेशन के लक्षणों के बढ़ने की आशंका रहती है.