भारत में कोरोना की दूसरी लहर के पीछे कोविड-19 के 'डेल्टा' वैरिएंट को सबसे बड़ा कारण माना गया है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, डेल्टा के कारण ही दूसरी लहर में संक्रमण इतना तेजी से फैला और गंभीर परिणाम देखने को मिले. लेकिन आईसीएमआर, पुणे की एनआईवी और भारत बायोटेक के संयुक्त अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है कि स्वदेशी कोवैक्सीन कोरोना के डेल्टा और बीटा वैरिएंट के खिलाफ ज्यादा असरदार है. अध्ययन के मुताबिक, कोवैक्सीन इन दोनों वैरिएंट के खिलाफ ज्यादा तेजी से शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण करती है.


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कैसे किया गया अध्ययन?
आईसीएमआर, एनआईवी और भारत बायोटेक द्वारा संयुक्त अध्ययन कोविड से ठीक हुए 20 लोग और कोवैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके 17 लोगों के सैंपल पर आधारित है. इस अध्ययन में कोवैक्सीन लगवा चुके लोगों के न्यूट्रेलाइजेशन पोटैंशियल (वायरस के बेअसर होने की संभावना) का आंकलन किया गया. जिसमें पाया गया कि कोवैक्सीन डेल्टा और बीटा वैरिएंट के खिलाफ असरदार तरीके से एंटीबॉडी का निर्माण करती है. इस शोध को biorxiv नामक वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है, जो कि कोरोना व कोविड-19 वैक्सीन पर होने वाले अध्ययनों को प्रकाशित करती है.


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कैसे पड़ा डेल्टा और बीटा नाम?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ दिन पहले कोरोना वायरस के वैरिएंट के नामों को आसान बनाने के लिए ग्रीक भाषा के अक्षरों के जरिए नाम दिए हैं. डब्ल्यूएचओ ने डेल्टा को वैरिएंट ऑफ कंसर्न (VOC) भी घोषित किया था. डेल्टा वैरिएंट (बी.1.617.2) सबसे पहले भारत में और बीटा वैरिएंट (बी.1.351) सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में देखने को मिला था.