सोशल मीडिया आज के समय में सबसे बड़ा कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म बन गया है. आज हम घर पर बैठे-बैठे मीलों दूर मौजूद किसी इंसान को देख सकते हैं, उससे बात कर सकते हैं और उसकी मदद भी कर सकते हैं. मगर यह सिक्के का एक पहलू है, क्योंकि अत्यधिक सोशल मीडिया का इस्तेमाल आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है. यह आपके दिमाग पर असर डालकर आपको तनाव, अवसाद, चिंताग्रस्त व आक्रामक भी बना रहा है. ये कहना गलत नहीं होगा कि आजकल सोशल मीडिया के हाथ में हमारी खुशियों का रिमोट है. अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा, तो जानें कैसे...


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रियल नहीं, वर्चुअल वर्ल्ड
सोशल मीडिया एक वर्चुअल वर्ल्ड है. अगर आप सोशल मीडिया के मुताबिक किसी की छवि, व्यक्तित्व या मान-सम्मान का आंकलन कर रहे हैं, तो काफी संभावना है कि आपका आंकलन गलत होगा. क्योंकि, वर्चुअल वर्ल्ड पर जो दिखता है, अक्सर वह रियल नहीं होता. सोशल मीडिया पर खुश दिखने वाला व्यक्ति वास्तविकता में काफी दुखी हो सकता है. लेकिन हमारे दिमाग के लिए सोशल मीडिया इसलिए खतरनाक है, क्योंकि हम पर भी ट्रेंड के हिसाब से दिखने का दबाव बढ़ता जाता है.


आत्मसम्मान में कमी
सोशल मीडिया पर मिल रहे प्यार या नफरत को लोग बहुत गंभीरता से ले लेते हैं. अगर आपको मिल रहे प्यार में कमी दिखती है, तो आपको चिंता होने लगती है कि आखिर मुझमें क्या कमी आने लगी है. इसके विपरीत अगर आपको नफरत मिलती रहती है, तो आप सोचने लगते हैं कि आप काफी गलत इंसान हैं. मगर ऐसा सही नहीं होता. सोशल मीडिया पर इंसान आपको ऊपरी तौर पर आंकलन करके एक राय कायम कर लेता है, जो कि अधिकतर मामलों में गलत होती है.


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खर्चीला
आजकल कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ऐसे हैं, जिनपर आपके फोटो या वीडियो को देखकर चाहने वाले मिलते हैं. ऐसे में लोग कई महंगे गैजेट्स, मोबाइल फोन या कैमरा खरीद लेते हैं, ताकि इन प्लेटफॉर्म पर वह भी दूसरे लोगों के जैसे बेहतर दिख सकें और लोकप्रियता हासिल कर सकें. सोशल मीडिया पर दूसरों से मुकाबला करना आपकी जेब के लिए खर्चीला हो सकता है. जिसके कारण हम आर्थिक कमी की वजह से खुशी को सकते हैं.


रियल वर्ल्ड से बातचीत गायब
आजकल लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगे रहते हैं, हम कई मीलों दूर बैठे इंसान से बात करते हैं. लेकिन भूल जाते हैं कि घर में किसी के साथ ढंग से बैठे हुए कितना समय हो चुका है. इस कारण हम असली खुशी और साथ से वंचित रह जाते हैं. वहीं सोशल मीडिया पर दर्शाए गए भाव या विचार असली जिंदगी में मौजूद लोगों से दूरी बन जाने का कारण भी बन रहे हैं.


दूसरों से जलन
सोशल मीडिया पर दूसरों से मुकाबला ना कर पाने पर हम बेवजह उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं. यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है. हमें दूसरों के बारे में छोड़कर खुद के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत है. हम जो भी हैं, जैसे भी हैं, काफी बेहतर हैं.


यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है.