बाएं हाथ पर टैटू, पैर पर तिल... 1993 में 7 साल के राजू का अपहरण, 30 साल बाद हुआ `चमत्कार`
Ghaziabad boy reunited with family after 30 years: आपका बेटा सात साल की उम्र में खोज जाए और 30 साल बाद मिले तो आप इसे क्या कहेंगे, हर कोई इसे चमत्कार ही मानेगा, कुछ ऐसा ही हुआ है गाजियाबाद के एक सात साल के राजू के साथ. जानें पूरी कहानी.
Story of missing Raju In 1993: सात साल की उम्र में गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र के शहीदनगर से 1993 में अगवा किया गया एक लड़का जब अपने परिजन से मिला तो वहां मौजूद सभी लोग भावुक हो गए. इस लड़के का नाम है राजू. जिसे सात साल की उम्र में किडनैप कर लिया गया था.
जानें पूरा मामला
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली विभाग से सेवानिवृत्त शहीदनगर निवासी तुलाराम के सात साल के बेटे को 8 सितंबर 1993 को बहन के साथ स्कूल से घर लौटते समय ऑटो गैंग ने अगवा कर लिया था. इस दौरान उनके पास फिरौती के लिए 7.40 लाख रुपये की फिरौती का लेटर आया था. लेकिन किसी ने उसने संपर्क नहीं किया. परिजनों ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट साहिबाबाद थाने में दर्ज कराई थी. चार दिन पहले एक लड़का खोड़ा थाने पहुंचा, जिसके हाथ में एक टैटू बना था और उसके पैर में एक तिल था. वह अपने परिवार वालों को खोज रहा था.
1993 में हुआ गायब
साहिबाबाद के एसीपी रजनीश उपाध्याय ने बताया कि भीम यानी राजू पिछले शनिवार दोपहर नीली स्याही से लिखा एक पत्र लेकर खोड़ा पुलिस स्टेशन आया था. यह पत्र दिल्ली के उस व्यवसायी का था जिसने उसे बचाया था, उसने भीम से जो कुछ भी पृष्ठभूमि की जानकारी बताई थी, उसे एक साथ जोड़कर लिख लिया, उम्मीद थी कि इससे पुलिस को कुछ सुराग मिलेंगे.भीम ने पुलिस को बताया कि वह नोएडा में कहीं से है। उसे गाजियाबाद या शहीद नगर की कोई याद नहीं है उसने तुलाराम और कुछ अन्य नामों का उल्लेख किया और यह भी बताया कि उसे किस साल को वह गायब हुआ था. वह साल था 1993.
साल की उम्र में हुआ किडनैप
जब पुलिस ने पुरानी फाइलें खंगालीं, तो उन्हें साहिबाबाद पुलिस स्टेशन में 8 सितंबर, 1993 को दर्ज अपहरण की एक एफआईआर मिली. तीन दिन बाद, उन्होंने परिवार को शहीद नगर में खोज निकाला. एसीपी ने कहा, “जांच में पता चला कि तुलाराम, जो बिजली विभाग से सेवानिवृत्त थे, उनके नौ वर्षीय बेटे को एक ऑटो गैंग ने स्कूल से घर लौटते समय अपनी एक बहन के साथ अगवा कर लिया था. उन्हें 7.4 लाख रुपये की फिरौती की मांग वाला एक पत्र मिला, लेकिन उसके बाद, अपहरणकर्ताओं ने कोई संपर्क नहीं किया.”
भेड़-बकरी चराकर काटा जीवन
भीम को अगवा करने के बाद, अपहरणकर्ताओं ने राजस्थान ले जाकर एक चरवाहे को बेच दिया. वह पूरे दिन भेड़-बकरियां पालता था और रात में जानवरों के बगल में एक शेड में खाता और सोता था, ताकि वह भाग न सके. ज्यादातर दिनों में उसे खाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा और कुछ कप चाय मिलती थी. 30 साल तक यही उसकी ज़िंदगी रही, पूरी तरह से कैद में और बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं था.
कैसे आया दोबारा गाजियाबाद
एक दिन कुछ लोग भेड़ बकरी खरीदने आए थे. राजू की बढ़ी दाढ़ी बाल और नाखून देखकर तरस आ गया. उन्होंने राजू के परिवार के संबंध में पूछ तो उसने बताया कि दिल्ली नोएडा के करीब है. वो किसी तरह उसको दिल्ली लेकर आए. यहां पर बाल दाढ़ी कटवाई. कपड़े खरीदवाए और कुछ रुपये दे दिए. उसे यहीं छोड़ वापस चले गए. जिसके बाद राजू पुलिस स्टेशन पहुंचा था.
टैटू और तिल के सहारे परिवार ने पहचाना
थाने में पहुंचकर उसने अपनी आपबीती सुनाई. जिसके बाद पुलिसकर्मी ने राजू को उनके परिवार से मिलाने की मुहिम शुरू की. मीडिया और सोशल मीडिया में भी खबरें चलवाईं गईं. खबर पढ़ते ही वो सभी लोग थाने पहुंचने लगे, जिनके बच्चों का अपहरण या गायब 1993 में हुए थे. राजू को भी स्वयं कुछ भी याद नहीं था. इसी बीच साहिबाबाद थाने के शहीदनगर में रहने वाले तुलाराम पत्नी के साथ पहुंचे. उन्होंने बताया कि उनका बेटा भी 1993 में स्कूल से लौटते समय गायब हो गया था. पुलिस साहिबाबाद थाने के रिकार्ड खंगलाए तो तुलाराम की ओर से मामला दर्ज है. इसके बाद शरीर में कुछ निशान बताए, जो राजू के शरीर में मिले. तुलाराम के घर से स्कूल जाने में रास्ते में मंदिर पड़ता है. इस तरह तय हुआ कि वो तुलाराम का बेटा है. जिसका असली नाम भीम सिंह है. राजू नाम जैसलमेर में रखा गया था. पुलिस ने कागजी कार्रवाई करके परिजनों को सौंप दिया है.