Akhand Bharat Painting in new parliament: कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश के नए संसद भवन का उद्घाटन किया तो उस आयोजन की भव्य तस्वीरें आपने अखबार, सोशल मीडिया या TV पर जरूर देखी होंगी. उसी दौरान एक तस्वीर ने सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरीं, और वो तस्वीर थी नए संसद भवन के अंदर मौजूद अखंड भारत की पेंटिंग की जिसमें सदियों पुराने ऐतिहासिक भारत को दर्शाया गया है और इसमें भारत के महत्वपूर्ण साम्राज्यों और शहरों को दिखाया गया है. पेंटिंग में उस वक्त के तक्षशिला और सिंधु को भी भारत के हिस्से के तौर पर देखा जा सकता है, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान (Pakistan) में मौजूद हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पेंटिंग को लेकर विवाद


इसी तरह बांग्लादेश (Bangladesh) और नेपाल (Nepal) को भी अखंड भारत के नक्शे में स्थान दिया गया है. हमारे प्राचीन ग्रंथों और साहित्य में भी अखंड भारत के इस रूप का कई बार जिक्र आया है. लेकिन कई लोगों को ये पेंटिंग अखर गई. कहा जा रहा है कि इस पेटिंग को लेकर पाकिस्तान सहम गया है वहीं दूसरी ओर भारत से लेकर नेपाल तक में अखंड भारत के इस स्वरूप पर सवाल उठाए गए हैं.


नेपाल और भारत 


भारत और नेपाल के बीच अनोखा सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ता है. आज नेपाल वर्ल्ड मैप पर भले ही एक अलग देश के तौर पर नज़र आता हो, लेकिन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर पर ये छोटा सा देश भारतीय उपमहाद्वीप का ही हिस्सा है. नेपाल और भारत एक दूसरे के साथ 1860 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. लेकिन दोनों मुल्क जो सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत एक दूसरे के साथ साझा करते हैं, वो इस सीमा रेखा से कहीं ज़्यादा प्राचीन है और कहीं ज़्यादा बड़ी है.


रोटी और बेटी का रिश्ता


दोनों देशों के बीच ये सांस्कृतिक साझेदारी इतनी मज़बूत और इतनी प्रगाढ़ रही है, कि नेपाल और भारत अलग देश होकर भी अलग नहीं लगते. इसीलिए कहा जाता है कि भारत और नेपाल के बीच रोटी और बेटी का रिश्ता है और ये रिश्ता आज का नहीं है. इस अनूठे रिश्ते के प्रत्यक्ष प्रमाण हज़ारों वर्ष पुराने रामायण काल में स्पष्ट रूप से मिलते हैं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता, जनकपुर के राजा जनक की बेटी थीं और इसीलिए उन्हे जानकी भी कहा जाता है. गौरतलब है कि ये जनकपुर आज के नेपाल में स्थित है.


इसीलिए आज जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के साथ मुलाकात की तो सीमा, ऊर्जा, कारोबार समेत कई अहम मुद्दों पर तो समझौते हुए ही इसके साथ दोनों नेताओं ने श्री राम से जुड़े अपने रिश्ते को नई ऊंचाई देने के लिए भी एक बड़ा ऐलान किया. दोनों नेताओं की तरफ़ से ऐलान किया गया कि दोनों देशों के बीच प्रस्तावित रामायण सर्किट के काम में तेजी लाई जाएगी.


राम कथा का अभिन्न हिस्सा


राम अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान जिन इलाक़ों में रहे थे, या वहां से होकर गुज़रे थे, आज उन्हे ही एक सर्किट के तौर पर विकसित करने की तैयारी है और इसे ही रामायण सर्किट का नाम दिया गया है. क्योंकि रामायण की पूरी कथा मुख्य रूप से इन्ही 14 वर्षों का ही सार है. नेपाल इस राम कथा का अभिन्न हिस्सा है, क्योंकि माता सीता के पिता राजा जनक मिथिला के राजा थे, और नेपाल में स्थित जनकपुर इसी मिथिला की राजधानी था. इसीलिए राम नेपाल में ईश्वर के रूप में तो पूज्यनीय हैं हीं, उन्हे वहां जमाई के रूप में भी आदर दिया जाता है और ये नेपाल की सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है.


रिश्तों की गहराई समझने की जरूरत


विश्व प्रसिद्ध रामकथा वाचक रामभद्राचार्य जब पिछले साल चित्रकूट से जनकपुर पहुंचे थे तो नेपाल के जनकपुर की महिलाओं ने उनका गारियों के साथ पारम्परिक अंदाज में स्वागत किया, ठीक उसी तरह जैसे कभी मिथिला में श्री राम की बारात का हुआ था. दरअसल जनकपुर की इन महिलाओं ने कथावाचक रामभद्राचार्य को श्री राम के गुरु वशिष्ठ के रूप में देखा और इसीलिए उन्हे समधी मानकर पारंपरिक गारियां गाकर उनका स्वागत किया. रामायण में भी भगवान राम की बारात का इसी तरह गारियां गाकर स्वागत किए जाने का वर्णन है और हज़ारों साल बाद भी राम और रामकथा भारत और नेपाल के संबंधों का आधार बनी हुई हैं.


गौतम बुद्ध की साझा विरासत


भारत और नेपाल सिर्फ भगवान राम ही नहीं बल्कि गौतम बुद्ध की विरासत और ज्ञान को भी साझा करते हैं. बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था. जबकि बिहार के बोध गया में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और उन्होंने यूपी के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था. दोनों देशों के बीच ये सांस्कृतिक साझेदारी इतनी मज़बूत और इतनी प्रगाढ़ रही है कि नेपाल और भारत अलग देश होकर भी अलग नहीं लगते और अखंड भारत के नक्शे में नेपाल का स्थान इसी सांस्कृतिक साझेदारी का ही प्रतीक है. 


क्योंकि अखंड भारत सीमाओं से घिरा कोई स्थान नहीं है, बल्कि ये एक सांस्कृतिक चेतना का रूप है, जो हज़ारों वर्षों से पूरे उप महाद्वीप को प्रकाशित करती रही है.