Indore News: शौक भी बड़ी चीज है. किसी को खाने का शौक होता है तो किसी को नाचने-गाने का. कुछ लोगों के हैरतअंगेज शौक भी होते हैं. लेकिन आज हम जिस शौक के बारे में बताने जा रहे हैं.. वो आपको हैरानी में डाल देगा. मामला मध्यप्रदेश के इंदौर का है. यहां के रहने वाले राजेश शर्मा टाइपराइटर्स के शौकीन हैं. उन्होंने दुनिया भर से 550 से ज्यादा दुर्लभ टाइपराइटर जुटाए हैं. और तो और अपने घर में ही इन टाइपराइटर्स का म्यूजियम बना दिया है.


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अलग-अलग तरह के करीब 570 टाइपराइटर


इनफॉर्मेशन टेकनोलॉजी और एआई के मौजूदा दौर में टाइपराइटर पर काम करना पुराने जमाने की बात हो चुकी है. लेकिन इंदौर के राजेश शर्मा (68) के लिए अतीत की यह मशीन उनकी सबसे कीमती मिल्कियत की तरह है. ऐड एजेंसी चलाने वाले शर्मा ने अपने घर में टाइपराइटर का म्यूजियम-सा बना रखा है. जिसमें अलग-अलग तरह के करीब 570 टाइपराइटर हैं. इनमें हिन्दी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं के साथ ही अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रूसी, जापानी, अरबी और अन्य विदेशी भाषाओं के की-बोर्ड वाले टाइपराइटर भी शामिल हैं.



12 साल में जुटाए 570 टाइपराइटर


शर्मा ने बताया, ‘मैंने पिछले 12 साल में देश-विदेश के लगभग 570 टाइपराइटर जमा किए हैं. इनमें से कई टाइपराइटर मैंने कबाड़ियों से खरीदे हैं. मेरे बारे में जानने के बाद देश-विदेश के लोगों ने मुझे 125 टाइपराइटर मुझे बिना किसी पुराने परिचय के उपहार में भेजे हैं.’ शर्मा ने बताया कि टाइपराइटर से उनका 'पुश्तैनी रिश्ता' है. क्योंकि उनके पिता इंदौर की जिला अदालत परिसर के पास टाइपिंग का काम करते थे. और वह इस मशीन की आवाज सुनते हुए बड़े हुए.



25 किलोग्राम वजनी टाइपराइटर


उन्होंने बताया, ‘मेरे संग्रह में जो सबसे पुराना टाइपराइटर है, वह वर्ष 1905 में अमेरिका में बना था. यह 25 किलोग्राम वजनी टाइपराइटर मुझे मेरे पिता ने दिया था. लिहाजा इस टाइपराइटर से मेरी भावनात्मक यादें जुड़ी हैं.’ शर्मा ने कहा कि वह टाइपराइटर के अपने संग्रह को किसी बड़े स्थान पर व्यवस्थित स्वरूप देना चाहते हैं. ताकि आने वाली पीढ़ियां इस मशीन की ऐतिहासिक विरासत से वाकिफ रहें. उन्होंने बताया, 'मैं इन दिनों कोशिश कर रहा हूं कि हिन्दी के कुछ नामचीन साहित्यकारों के इस्तेमाल टाइपराइटर मेरे संग्रह में शामिल हो जाएं.' 


(एजेंसी इनपुट के साथ)