नई दिल्ली: देश को कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ एक और दवाई मिल गई है. और इसे एंटीबॉडी कॉकटेल कहा जा रहा है. महत्वपूर्ण बात ये है कि इस दवाई के इस्तेमाल से अधिकतर मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आती. यानी अब आप कह सकते हैं कि कोरोना वायरस के खिलाफ भारतीय अस्पतालों के बेड़े में एक और दवाई शामिल हो गई है, जो वायरस पर एक मिसाइल की तरह ही प्रहार करती है. इसलिए अब हम आपको इस दवाई से जुड़ी वो सारी बातें बताएंगे, जो आपके काम की हैं. सबसे पहले आपको इस दवाई के बारे में बताते हैं?


कैसे काम करती है ये दवा?


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कोरोना वायरस (Coronavirus)के खिलाफ इस एंटीबॉडी कॉकटेल को Switzerland की Pharmaceutical Company Roche (रोश) ने विकसित किया है. ये एंटीबॉडी कॉकटेल Casirivimab (कसिरीविमैब) और Imdevimab (इम्देविमैब) को मिला कर बनाया गया है. पिछले वर्ष जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना से संक्रमित हुए थे, तब इलाज के दौरान उन्हें यही एंटीबॉडी कॉकटेल दिया गया था. कम्पनी का दावा है कि ये एंटीबॉडी कॉकटेल कोरोना के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ काम करता है. इस दवाई की खूबी है कि ये मानव कोशिकाओं में वायरस की एंट्री रोकने का काम करती हैं.  


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इसकी कीमत क्या है?


भारत में ये दवाई Pharma कम्पनी Cipla द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी. 1200 Milligrams की हर डोज में 600 Milligram (कसिरीविमैब) है और 600 Milligram (इम्देविमैब) है. प्रति डोज की कीमत भारत में 59 हजार 750 रुपये होगी. यानी एक डोज के लिए लगभग 60 हजार रुपये खर्च करने होंगे और इसकी दो डोज के एक पैकेट की अधिकतम कीमत 1 लाख 19 हजार 500 रुपये होगी. कम्पनी के मुताबिक एक पैकेट कोरोना के दो मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त हैं. आप चाहें तो इस जानकारी को नोट भी कर सकते हैं, एक मरीज को ये दवा देने का खर्च आएगा लगभग 60 हजार रुपये. हालांकि कई बड़ी संस्थाओं ने इस दवाई की कीमत कम करने की भी मांग की है.


किन मरीजों को दी जा सकती है दवा?


एंटीबॉडी कॉकटेल 12 साल या उससे ज्यादा उम्र के मरीज, जिनका वजन कम से कम 40 किलोग्राम हो उनके इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. हालांकि अगर मरीज को ऑक्सीजन से जुड़ी कोई समस्या है तो ऐसी स्थिति में इस एंटीबॉडी कॉकटेल का इस्तेमाल नहीं होगा. भारत में इस दवाई की पहली खेप उपलब्ध हो गई है और इसकी दूसरी खेप 15 जून तक आ जाएगी. जून तक इसके एक लाख पैकेट भारत में उपलब्ध हो जाएंगे, जिससे कोरोना के 2 लाख मरीजों का इलाज हो सकेगा. डॉक्टरों का मानना है कि इसके इस्तेमाल से 70 प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ेगी.


80 प्रतिशत तक कम हो सकती है मृत्यु दर


दावा किया जा रहा है कि इसकी मदद से मृत्यु दर को 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. इसका Efficacy Rate 70 प्रतिशत है. Efficacy Rate का मतलब होता है कि ट्रायल के दौरान इस दवाई ने कितने लोगों पर असर दिखाया. इस हिसाब से देखें तो 100 में से कोरोना के 70 मरीजों को ये दावा स्वस्थ करने का दावा करती है. हालांकि Efficacy Rate ट्रायल के नतीजों पर आधारित होता है, इसलिए इसे अंतिम नहीं मान सकते. इसके लिए हमें Success Rate का इंतजार करना होगा, जो तभी पता चलेगा जब ये कोरोना मरीजों पर इस्तेमाल होगी.


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