Wayanad Landslide: अरब सागर के कारण वायनाड में मची ताबही, लैंडस्लाइड को लेकर वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला दावा
Wayanad Landslide: केरल के वायनाड में भारी बारिश के बाद हुए भीषण लैंडस्लाइड का कनेक्शन अरब सागर से है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि अरब सागर में तापमान बढ़ने की वजह से केरल में ये तबाही मची है.
Wayanad Landslide: केरल के वायनाड में भारी बारिश के बाद हुए भीषण लैंडस्लाइड का कनेक्शन अरब सागर से है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि अरब सागर में तापमान बढ़ने की वजह से केरल में ये तबाही मची है. अरब सागर में बढ़े तापमान के कारण केरल में घने बादल बन रहे हैं. और केरल में कम समय में भारी बारिश हो रही और लैंडस्लाइन का खतरा बढ़ गया है.
वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला दावा
इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का मंगलवार को आह्वान किया. केरल के पर्वतीय वायनाड जिले में मंगलवार तड़के अत्यधिक भारी बारिश के कारण भूस्खलन की कई घटनाएं हुईं, जिसमें 90 से अधिक लोगों की मौत हो गई. वहीं, कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है.
केरल में कम समय में भारी बारिश
कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीयूएसएटी) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान आधुनिक केंद्र के निदेशक एस. अभिलाष ने कहा कि सक्रिय मानसूनी अपतटीय निम्न दाब क्षेत्र के कारण कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कालीकट और मलप्पुरम जिलों में भारी वर्षा हो रही है, जिसके कारण पिछले दो सप्ताह से पूरा कोंकण क्षेत्र प्रभावित हो रहा है. उन्होंने बताया कि दो सप्ताह की वर्षा के बाद मिट्टी भुरभुरी हो गई. अभिलाष ने कहा कि सोमवार को अरब सागर में तट पर एक गहरी ‘मेसोस्केल’ मेघ प्रणाली का निर्माण हुआ और इसके कारण वायनाड, कालीकट, मलप्पुरम और कन्नूर में अत्यंत भारी बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन हुआ.
याद आई केरल की 2019 वाली बाढ़
अभिलाष ने कहा, "बादल बहुत घने थे, ठीक वैसे ही जैसे 2019 में केरल में आई बाढ़ के दौरान नजर आये थे." उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को दक्षिण-पूर्व अरब सागर के ऊपर बहुत घने बादल बनने की जानकारी मिली है. उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये प्रणालियां स्थल क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हैं, जैसे कि 2019 में हुआ था. अभिलाष ने कहा, "हमारे शोध में पता चला कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर में तापमान बढ़ रहा है, जिससे केरल समेत इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल ऊष्मगतिकीय (थर्मोडायनेमिकली) रूप से अस्थिर हो गया है."
भारत के पश्चिमी तट पर अधिक बारिश
वैज्ञानिक ने कहा, "घने बादलों के बनने में सहायक यह वायुमंडलीय अस्थिरता जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है. पहले, इस तरह की वर्षा आमतौर पर उत्तरी कोंकण क्षेत्र, उत्तरी मंगलुरु में हुआ करती थी." वर्ष 2022 में ‘एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों के शोध में कहा गया है कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक ‘‘संवहनीय’’ होती जा रही है. संवहनीय वर्षा तब होती है जब गर्म, नम हवा वायुमंडल में ऊपर उठती है. ऊंचाई बढ़ने पर दबाव कम हो जाता है, जिससे तापमान गिर जाता है.
24 घंटों में 24 सेंटीमीटर से अधिक बारिश
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझीकोड, वायनाड, कन्नूर, मलप्पुरम और एर्नाकुलम जिलों में कई स्वचालित मौसम केंद्रों में 19 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर के बीच वर्षा दर्ज की गई. अभिलाष ने कहा, "क्षेत्र में आईएमडी के अधिकांश स्वचालित मौसम केंद्रों में 24 घंटों में 24 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई. किसानों द्वारा स्थापित कुछ वर्षा मापी केंद्रों पर 30 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई."
अगले दो दिन के लिए भारी बारिश का अलर्ट
मौसम कार्यालय ने कहा कि अगले दो दिन में राज्य के कुछ स्थानों पर बहुत भारी वर्षा होने की संभावना है. इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने मंगलवार को भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का आह्वान किया. केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने कहा कि मौसम एजेंसियां अत्यधिक भारी वर्षा होने का पूर्वानुमान तो कर सकती हैं, लेकिन भूस्खलन के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.
हमें बस इसे एक तंत्र में तब्दील करना है..
राजीवन ने कहा, ''भारी बारिश से हर बार भूस्खलन नहीं होता है. हमें भूस्खलन का पूर्वानुमान करने के लिए एक अलग तंत्र की जरूरत है. यह मुश्किल तो है लेकिन संभव है.'' उन्होंने कहा, “मिट्टी का स्वरूप, मिट्टी की नमी और ढलान समेत भूस्खलन का कारण बनने वाली स्थितियां ज्ञात हैं और इस सारी जानकारी से एक तंत्र तैयार करना जरूरी है. दुर्भाग्य से, हमने अब तक ऐसा नहीं किया है." राजीवन ने कहा, "जब कोई नदी उफान पर होती है, तो हम लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाते हैं. भारी और लगातार बारिश होने पर भी हम यही काम कर सकते हैं. हमारे पास वैज्ञानिक जानकारियां हैं. हमें बस इसे एक तंत्र में तब्दील करना है."
(एजेंसी इनपुट के साथ)