नोएडा : श्रीश्री रविशंकर द्वारा संचालित संस्था आर्ट ऑफ लिविंग ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण पैनल की रिपोर्ट को ‘अवैज्ञानिक’ और ‘अतार्किक'करार दिया है, जिसमें यह कहा गया कि आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘विश्व सांस्कृतिक महोत्सव’ से यमुना नदी के ताल व तटीय क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचा है।


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आर्ट ऑफ लिविंग के पक्ष के वकील केदार देसाई और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रभाकर राव ने यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि माच्र्। में हुए इस महोत्सव से पर्यावरण को किसी भी प्रकार की ‘कोई क्षति नहीं पहुंची है’। इसके साथ ही उन्होंने फिर से इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की है।


राव ने कहा कि इसके दलदली जमीन होने के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी बल्कि हमें इतना पता था कि यह केवल डूब क्षेत्र है। जहां पर इस महोत्सव का आयोजन हुआ था उस जमीन के दलदली होने को लेकर दिल्ली के आद्र्रभूमि के मानचित्र में कहीं कोई जिक्र नहीं है। राव ने कहा कि समिति ने अपने रिपोर्ट में नुकसान को परिमाणित नहीं किया है। शुरुआत में, इसमें 120 करोड़ का नुकसान का अनुमान लगाया गया था। और अब वे कह रहे हैं कि वे कोई आंकड़ा नहीं बता सकते। उन्होंने कहा कि हमलोग एनजीटी से इस जांच को लेकर एक निष्पक्ष समिति गठित करने का आग्रह करते हैं।


इस मामले में देसाई ने कहा कि हमें न्न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और हम आशा करते हैं कि एनजीटी न्याय करेगी। हमलोगों ने एनजीटी के रिपोर्ट को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है और निष्पक्ष समिति द्वारा फिर से जांच कराने की मांग की है। समिति ने अपने 47 पृष्ठ की रिपोर्ट में बताया है कि बाढ़ से प्रभावित पूरे क्षेत्र का मुख्य समारोह के लिए उपयोग किया गया जिसमें डीएनडी फ्लाईओवर और बारापुला नाला (यमुना नदी के दाहिने तट पर) के बीच वाले क्षेत्र को साधारण क्षति नहीं पहुंची है बल्कि पूरी तरह से वह क्षेत्र तहस-नहस हो गया है। पैनल ने रिपोर्ट में बताया है कि समारोह के होने से वह पूरा क्षेत्र अपने प्राकृतिक वनस्पति प्रवर्धन की क्षमता को खो चुका है।