नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में अनुच्छेद 370 (Article 370) हटने के बाद से सुरक्षा हालात में काफी सुधार हुआ है. जहां पिछले साल की तुलना में आतंकी घटनाओं में काफी कमी आई है, वहीं आए दिन होने वाली पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी कमी देखी जा रही है.


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सुरक्षा एजेंसियों की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल जनवरी से लेकर जून महीने तक सिर्फ 40 पत्थरबाजी की घटना सामने आई है जबकि साल 2019 सुरक्षा बलों के खिलाफ कुल 666 बार पत्थरबाजी हुई जबकि 2018 में 851 के करीब ऐसे मामले सामने आये थे. हालांकि जानकारों के मुताबिक हिंसा में आये दिन कमी के पीछे सुरक्षा बलों की बेहतर रणनीति के साथ साथ कोविड का संक्रमण भी एक वजह हो सकता है.


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ज़ी मीडिया (Zee Media) के पास मौजूद सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीरी युवाओं के आतंकी गुटों में शामिल होने के मामलों में भी काफी कमी देखी गई है. इस साल जनवरी से लेकर जून महीने तक कुल 68 युवाओं ने आतंकी संगठन से जुड़ने की रिपोर्ट सामने आई है जबकि पिछले साल ये संख्या 120 के करीब थी.


सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जनवरी से लेकर 27 जुलाई तक कुल 141 आतंकियो का सफाया किया जा चुका है जिसमें सबसे ज्यादा 57 हिजबुल के आतंकी हैं वहीं पिछले साल अब तक 151 आतंकियों को मारा गया था जिसमें 46 हिजबुल के आतंकी थे.


चिंता की बात ये है कि दक्षिणी कश्मीर अभी भी आतंकियों का गढ़ बना हुआ है. इस साल जो 141 आतंकी मारे गये हैं उनमें से सबसे ज्यादा शोपियां में 36 आतंकी उसके बाद पुलवामा में 37 और कुलगाम में 21 आतंकी मारे जा चुके हैं जबकि पिछले साल पुलवामा में 43,शोपियां में 39 और अनंतनाग में कुल 15 आतंकी मारे गये थे


इस एक साल में सुरक्षाबलों को मिली कामयाबी में हिज़्बुल मुजाहिद्दीन का कमांडर रिया नाइकू, लश्कर का कमांडर हैदर, जैश का कमांडर कारी यासिर और अंसार गजवात-उल-हिन्द का बुरहान कोका भी मारा गया. इसके अलावा 22 आतंकी और करीब उनके 300 मददगार गिरफ्तार किए गए.


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इस एक साल में 22 आतंकी ठिकानों का पता लगाया गया और करीब 190 हथियार पकड़े गए जिसमें अधिकतर AK-47 शामिल हैं. 


इतना ही नहीं स्थानीय युवाओं के आतंकी संगठनों में शामिल होने में भी 40% की कमी आयी है, इस साल केवल 68 युवाओं को बरगला कर आतंक की राह पर भेजा गया. वहीं आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देने वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को भी इसी साल करार झटका लगा जब उसके नेता सैयद अली शाह गिलानी ने खुद को हुर्रियत कांफ्रेंस से अलग किया.