Arundhati Roy: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय के खिलाफ कश्मीर पर उनकी टिप्पणियों को लेकर UAPA के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है. जिसके बाद 200 से अधिक भारतीयों ने सरकार को पत्र लिख रॉय के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

 


रिपोर्ट के मुताबिक, 200 से अधिक भारतीय शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने सरकार को एक खुला पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने भारत सरकार से बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय के खिलाफ देश के कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के फैसले को वापस लेने का आग्रह किया गया है. पत्र लिखने वाले लोगों में इतिहासकार रोमिला थापर और पॉलिटिकल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव भी शामिल हैं.


 


सरकार को लिखे पत्र में कहा गया है, "हम इस कार्रवाई की निंदा करते हैं और सरकार और देश में लोकतांत्रिक ताकतों से अपील करते हैं कि वे यह सुनिश्चित करें कि हमारे देश में किसी भी विषय पर स्वतंत्र रूप से और निडर होकर विचार व्यक्त करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन ना हो."


पत्र लिखने वालों में किसान संगठन भी शामिल


पत्र लिखने वाले लोगों में शामिल इतिहास के प्रोफेसर अजय दांडेकर ने कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल का यह निर्णय अनुचित है. हम एक संवैधानिक लोकतंत्र हैं. भारत का संविधान रॉय के विचारों की स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखता है.


सरकार को पत्र लिखने वाले लोगों में किसान संघों का एक समूह संयुक्त किसान मोर्चा भी शामिल है. संयुक्त किसान मोर्चा ने भी सरकार के इस फैसले की निंदा की है. इसके अलावा दिल्ली और बेंगलुरु में कई नागरिक अधिकार समूहों, कार्यकर्ताओं और छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन हुए हैं.


अन्य लोगों ने भी रॉय के समर्थन में आवाज उठाई, जिसमें किसान संघों का एक समूह संयुक्त किसान मोर्चा भी शामिल है, जिसने फैसले की निंदा की. दिल्ली और बेंगलुरु में नागरिक अधिकार समूहों, कार्यकर्ताओं और छात्रों द्वारा कुछ विरोध प्रदर्शन हुए हैं.


सरकार को लिखे पत्र पर दस्तखत करने वाले पुणे नगर पालिका सफाई संघ की महासचिव मुक्ता मनोहर का कहना है कि क्या हम एक लोकतांत्रिक देश हैं या नहीं? हमने सरकार को यह पत्र इसलिए लिखा है क्योंकि हमें सरकार से असहमत होने के अपने संवैधानिक अधिकार को बरकरार रखना है. हम किसी व्यक्तिगत सनक के कारण सरकार को रॉय जैसे आलोचकों से बदला लेने की अनुमति नहीं दे सकते.


कश्मीर विरोधी बयान देने का आरोप


अरुंधति रॉय 1997 में अपने पहले उपन्यास द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स के लिए बुकर पुरस्कार जीता था. रॉय पर आरोप है कि उन्होंने 2010 में एक सेमिनार में कश्मीर को लेकर कुछ विवाद टिप्पणी की थी. राजभवन के अधिकारियों के अनुसार, 28 अक्तूबर 2010 को कश्मीर के एक सोशल एक्टिविस्ट सुशील पंडित की शिकायत के आधार पर नई दिल्ली में मेट्रोपॉलियन मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के बाद अरुंधति रॉय और शेख शौकत हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. उपराज्यपाल ने शेख शौकत हुसैन पर भी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है.