`5 मिनट में अपने बाल ठीक कर सकती हैं`, अटल जी ने इंदिरा गांधी को क्यों दिया ये चैलेंज?
Zee News Time Machine: क्या आप जानते हैं कि एक बार अटल बिहारी ने इंदिरा गांधी को चैलेंज दे दिया था. उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था.. क्या आप 5 मिनट में अपने बाल ठीक कर सकती हैं.
Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1970 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वही साल था जब भारत 23 साल का हो चुका था. इसी साल राजीव गांधी ने बेटे राहुल गांधी की पहली रोने की आवाज को फोन में रिकॉर्ड किया था.ये वही साल है जब फिल्म मेरा नाम जोकर की वजह से एक्टर राज कपूर सदमे में चले गए थे. इसी साल भोला नाम के एक साइक्लोन ने देश में तबाही मचाई थी. ये वही साल है जब अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को अजीब चैलेंज दे दिया था. आइये आपको बताते हैं साल 1970 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
'इंदिरा जी 5 मिनट में बाल ठीक कीजिए'
देश में जब भी राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले महान व्यक्तियों की बात होती है. तो इसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम जरूर आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार अटल बिहारी ने इंदिरा गांधी को चैलेंज दे दिया था. उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था.. क्या आप 5 मिनट में अपने बाल ठीक कर सकती हैं. दरअसल किस्सा 26 फरवरी 1970 का है. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक किंगशुक नाग की किताब के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सदन में खड़ी हुईं थी और उन्होंने 'भारतीयता' के मुद्दे पर उस वक्त जनसंघ पार्टी यानि बीजेपी को घेर लिया और तंज कसते हुए कहा कि, 'मैं जनसंघ जैसी पार्टी से 5 मिनट में निपट सकती हूं.' उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी सदन में जनसंघ के नेता थे. पार्टी पर इंदिरा गांधी की इस टिप्पणी से उन्होंने इसका करारा जवाब दिया. अटल जी अपनी सीट से खड़े हुए और कहा कि, 'पीएम कहती हैं कि वे जनसंघ से 5 मिनट में निपट सकती हैं, क्या कोई लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री ऐसा बोल सकता है? मैं कहता हूं कि 5 मिनट में आप अपने बालों को ठीक नहीं कर सकती हैं फिर हमसे कैसे निपटेंगी.' इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच राजीनितिक तौर पर खटपट और अनबन अक्सर देखी गई.
कैमरे में कैद राहुल का रोना!
1970 में जब भारत धीरे-धीरे बदलाव के साथ आर्थिक तौर पर मजबूती से आगे बढ़ रहा था. इस साल यूं तो बहुत कुछ हुआ, लेकिन गांधी परिवार में इस साल खुशियों ने दस्तक दी. इन खुशियों की वजह थे खुद राहुल गांधी. साल 1970 में ही राहुल गांधी पैदा हुए. राहुल गांधी के आने से गांधी परिवार में जश्न हुआ था. इस जश्न से जुड़ा एक किस्सा बेहद दिलचस्प है. 17 जून 1970 को सोनिया गांधी को दिल्ली के सफदरगंज स्थित होली फैमिली हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था. सोनिया गांधी की देखभाल के लिए खास डॉक्टर्स की टीम रखी गई थी. खुद राजीव गांधी अस्पताल में मौजूद थे. इसी बीच जब राहुल का जन्म हुआ तो राजीव गांधी ने सबसे पहले वो काम किया जिसे देख सब हैरान रह गए थे. राहुल गांधी के जन्म के बाद राजीव गांधी तुरंत उनसे मिलने गए और राजीव गांधी ने अपना कैमरा निकाला. राहुल के रोने की आवाज को अपने कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया. डॉक्टर्स की टीम भी ये देखकर हैरान थी. लेकिन अपने बच्चे के लिए पिता का ये प्यार देखकर भी लोगों के चेहरे पर एक मुस्कान थी.
जब जज को मिली फांसी
अगर हम आपसे कहें कि सजा सुनाने वाले को ही अगर सजा दी जाए तो क्या आप इस पर यकीन कर पाएंगे. नहीं ना... लेकिन साल 1970 में ठीक ऐसा ही हुआ था. जब एक जज को ही फांसी की सजा सुनाई गई थी. जिला एवं सत्र न्यायाधीश रह चुके उपेंद्र नाथ राजखोवा 1970 तक सेवानिवृत्त हो गए थे. लेकिन उन्होंने अपना सरकारी बंगला खाली नहीं किया था. इसी बीच खबर आई की उनकी पत्नी और 3 बेटियां अचानक गायब हो गई हैं. इस बारे में जब भी उनसे पूछा जाता तो वो टाल जाते. लेकिन जब उनकी पत्नी के भाई ने जांच पड़ताल की और पुलिस ने जज उपेंद्र नाथ से सवाल जवाब करते हुए उन पर दबाव बनाया, तब उन्होंने अपना गुनाह कुबूल किया. उन्होंने बताया कि जिस सरकारी बंगले में मैं रहता था, उसी बंगले में मैंने अपनी पत्नी और 3 बेटियों की हत्या कर दी थी. उनके शवों को वहीं गाड़ दिया था. उपेंद्र नाथ राजखोवा के इस बयान के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया. उनपर पत्नी एंव बेटियों की हत्या का केस चलाया गया. जिसके बाद 14 फरवरी 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई. लेकिन उपेंद्र नाथ ने अपनी पत्नी और बेटियों की हत्या क्यों की? ये राज आज भी राज है.
वीर सावरकर के नाम पर डाक टिकट
इतिहास के पन्नों में एक ऐसा नाम दर्ज है जिसको लेकर लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं. कोई उन्हें विलेन की नजर से देखा है. तो वो किसी के लिए हीरो से कम नहीं रहे और ये कोई और नहीं बल्कि दामोदर दास सावरकर यानी वीडी सावरकर थे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में साल 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया. जिसे जारी करते हुए इंदिरा गांधी ने कहा था कि हम सावरकर के खिलाफ नहीं हैं, वो जीवनभर जिस हिंदुत्ववादी विचार का समर्थन करते रहे, हम उसके खिलाफ हैं. उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान भी किए थे.
'भोला' की तबाही से दहला हिंदुस्तान
कहते हैं प्रकृति जब रौद्र रूप में आती है तो विनाश निश्चित होता है. कुछ ऐसा ही साल 1970 में हुआ. जब साइक्लोन भोला ने हिंदुस्तान में तबाही ही तबाही मचाई. 11 नवंबर, 1970 को द ग्रेट भोला साइक्लोन, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में आया था. हालांकि उस दौरान बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था. द ग्रेट भोला के चलते पूर्वी पाकिस्तान में जबरदस्त बाढ़ आ गई थी. इसके अलावा उस दौरान बांग्लादेश से लगे समुद्र में 35 फीट ऊंची लहरें उठी थीं, जिन्होंने बांग्लादेश के बड़े भू-भाग को अपना निशाना बनाया था. कहा जाता है कि इस तूफान के चलते पूर्वी पाकिस्तान में 3 से 5 लाख लोगों की जानें गई थीं. इसे अबतक का सबसे भयानक तूफान माना जाता है. एक पूरा शहर इससे आई बाढ़ में बह गया था. भारत के पश्चिम बंगाल में इस तूफान ने खूब तबाही मचाई थी. इसी साइक्लोन की वजह से 8 और 9 नवंबर को अंडमान निकोबार द्वीप में खूब बारिश हुई. इसकी वजह से कोलकाता से कुवैत जाने वाला 5500 टन का जहाज एमवीमहाजगमित्रा पानी में डूब गया था. जिसमें सभी सवार 50 लोगों की मौत हुई थी.
ज्योति बसु के लिए जब फैन ने खाई गोली
सीपीएम नेता और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया. जब उन्होंने मौत को बिल्कुल करीब से देखा था. वो साल था 1970 का. पटना के सीपीएम कार्यकर्ता पीके शुक्ला ने खुद इस जानकारी को साझा किया था. दरअसल 31 मार्च 1970 को ज्योति बसु पटना रेलवे स्टेशन पर पहुंचे थे. बड़ी संख्या में सीपीएम कार्यकर्ता उनकी स्वागत के लिए पहुंचे थे. उन कार्यकर्ताओं में एक अली इमाम भी थे जो ज्योति बसु के बड़े प्रशंसक थे. अली इमाम, जैसे ही ज्योति बसु से मिलने के लिए आगे बढ़े, तभी किसी ने ज्योति बसु पर गोली चलाई चला दी. लेकिन ये गोली ज्योति बसु को न लगकर अली इमाम को लग गई और मौके पर ही अली इमाम की मौत हो गई. इस घटना ने ज्योति बसु के होश उड़ा दिए थे.
सदमे में चले गए थे राजकपूर
18 दिसंबर 1970 में रिलीज हुई 'मेरा नाम जोकर' फिल्म के हीरो और निर्माता दोनों ही राज कपूर थे. फिल्म को बनाने में राज कपूर को ना सिर्फ 6 साल का वक्त लगा बल्कि इस फिल्म के लिए उन्होंने अपना घर तक गिरवी रख दिया था. राज कपूर को अपनी इस मेगा क्लासिक फिल्म पर पूरा भरोसा था कि ये फिल्म इतिहास के पन्नों में एक नई कहानी लिखेगी, लेकिन हुआ इसके बिल्कुल विपरीत. फिल्म रिलीज होते ही बुरी तरह से फ्लॉप हो गई. शुरुआती दिनों में फिल्म को काफी नुकसान हुआ. बॉक्स ऑफिस पर अपनी फिल्म का ये हाल देखकर राज कपूर साहब सदमें में चले गए. उन दिनों राजकूपर ने अपने कमरे से निकलना बंद कर दिया था. घर पर आने जाने वाले लोगों पर रोक लगा दी थी. यहां तक कि राजकपूर खुद भी घर से बाहर कहीं नहीं जाते थे. कई महीने राजकपूर ने ऐसे ही डिप्रेशन में गुजार दिए. जिसके बाद परिवार, दोस्त और रिश्तेदारों की वजह से राजकपूर दोबारा से आम जीवन में लौटे. उन्होनें इस सदमें से उबरने के लिए अपने बेटे ऋषि कपूर के साथ फिल्म बॉबी बनाई थी. जो बॉक्सऑफिस पर सुपर डुपर हिट थी
बास्केटबॉल प्लेयर बना 'स्कोर मशीन'
'बास्केटबॉल का जादूगर' और 'एशिया की स्कोरिंग मशीन' जैसे नामों से जाने जाने वाले खुशी राम, एक ऐसे बास्केटबॉल खिलाड़ी थे जिन्होंने अपनी पहचान उस वक्त बनाई, जब युवा लोग खेलों में करियर बनाने से कतराते थे. बास्केटबॉल के इस जादूगर ने अपना सबसे बेहतर खेल साल 1970 में फिलीपिंस में खेला था तब अलग अलग टीमों के साथ खेलते हुए खुशी राम ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान सबसे ज्यादा 196 स्कोर किये थे. भारतीय खिलाड़ी खुशीराम की प्रतिभा को देख कर फिलीपींस बास्केटबॉल के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी, लॉरो मुमर ने कहा कि खुशी राम ने हमें सिखाया है कि बास्केटबॉल कैसे खेला जाता है. हमने पूरे एशिया में इस तरह की मानसिक और शारीरिक दृढ़ता वाला खिलाड़ी नहीं देखा. मैं यही कहूंगा कि भारत हमें खुशी राम दे.. दे और हम पूरी दुनिया को जीत लेंगे. खुशी राम के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें मोस्ट वैल्युएबल प्लेयर भी घोषित किया गया.
बादल फटने से 600 लोगों की मौत
20 जुलाई 1970 की वो रात, जो कभी भी भूलाए नहीं भूली जा सकती. ये वो साल था जब ना जाने कितने मासूमों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. 1970 की रात पहाड़ों पर चमोली और जोशीमठ के बीच बादल फटने से हजारों टन मलबा अलकनंदा नदी में गिरने से जबदस्त बाढ़ आई. ऐसा कहा जाता है कि इस बाढ़ में करीब 600 लोगों की मौत हुई. बाढ़ में इतना मलबा बह कर आया कि उससे 1894 में बनी गहना झील का अस्तित्व तक मिट गया था. चमोली जिले के कई सरकारी भवन तक इस बाढ़ में बह गए थे. इस बाढ़ के दौरान अलकनंदा का जलस्तर 538 मीटर था.
राजीव गांधी ने शुरू किया डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स
देश को आधुनिकता से जोड़ने वाले और घर-घर में कंप्यूटर पहुंचाने वाले राजीव गांधी ने साल 1970 में एक ऐसा काम किया था. जिसके बाद से भारत में डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हुई थी. दरअसल राजीव गांधी चाहते थे कि भारत की जनता कंप्यूटर और विज्ञान से जुड़कर विकास की ओर बढ़े. लेकिन उस वक्त कंप्यूटर विदेशों में ही बनते और वहां पर ही एसेंबल होते थे इसलिए भारत में हर घर में उसे पहुंचाना मुश्किल था. तभी राजीव गांधी ने अपने दोस्त सैम पित्रोदा की मदद से डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत की. जिसके तहत भारत में ही कंप्यूटर को एसेंबल करना शुरू किया गया. इससे ये फायदा हुआ कि हम विदेशों से पूरा कंप्यूटर सेटअप न लेकर केवल उसके पार्ट्स ही मंगवाते थे, इसके साथ ही राजीव गांधी ने कंप्यूटर उपकरणों पर लगने वाले आयात शुल्क को भी कम किया और अपने ही देश में उसे कम कीमत पर एसेंबल भी करना शुरू किया. राजीव गांधी की इसी तकनीक की वजह से देश के हर सरकारी दफ्तर और संस्थानों में कंप्यूटर पहुंचा.
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