जब सिखों ने लड़ी श्रीरामजन्मभूमि की लड़ाई, आगे अंग्रेजों ने हिंदुओं के खिलाफ चली गहरी चाल
ये कहानी संघर्ष और साहस की है. रामजन्मभूमि पर 500 साल बाद फिर से मंदिर बन रहा है लेकिन एक समय हिंदू ही नहीं सिखों ने भी इसके लिए भीषण लड़ाई लड़ी थी. बाद में अंग्रेजी राज आया तो मुस्लिम समुदाय भी राजी हुआ लेकिन अंग्रेजों ने षड्यंत्र रच दिया.
Ayodhya Ram Temple Story: एक बार गुरु नानकदेव जी भी अयोध्या आए थे. उन्होंने श्रीरामजन्मभूमि के दर्शन कर इसे मुक्त कराने की बात कही थी. गुरु तेगबहादुर और उनकी निहंग सेना ने मुगल शासक औरंगजेब से इसे आजाद भी करा लिया था, पर ज्यादा समय तक ऐसा नहीं रहा. औरंगजेब ने फिर अटैक कर दिया था. छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ गुरु रामदास के एक शिष्य बाबा वैष्णवदास के साधुओं की फौज बलशाली थी. इन साधुओं ने भी मुगलों से लोहा लिया था लेकिन हमले नहीं थमे. सिख गुरुओं ने मुगलों से कई बार लड़ाई लड़ी. आखिरकार 1664 में अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि पर औरगंजब का कब्जा हो गया. उसने राम मंदिर को तोड़ दिया और वहां गड्ढा करा दिया जिससे हिंदू पूजा न कर सकें.
जब सिखों ने लिखा 'राम-राम'
अक्टूबर 2023 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया था कि वह सिख समुदाय ही था जिसने अयोध्या में सबसे पहले राम मंदिर आंदोलन शुरू किया था. लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि सिखों के इस योगदान को देश कभी भूल नहीं सकता है. राजनाथ ने कहा, 'मैं सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार एक महत्वपूर्ण तथ्य साझा करना चाहता हूं. एक एफआईआर के मुताबिक गुरु गोविंद सिंह के नारे लगाते सिखों के एक समूह ने परिसर पर कब्जा कर लिया था और उन्होंने दीवारों पर राम-राम लिख दिया था.'
तब नमाज के साथ पूजा का अधिकार मिला
बाद में अंग्रेजों का शासन आया। एक समय नवाबों ने नमाज के साथ पूजा का अधिकार दे दिया. अंग्रेजी हुकूमत ने चाल चली. 1856 में जन्मभूमि वाली जगह की घेरेबंदी करा दी और भगवान राम की पूजा ढांचे से बाहर करनी पड़ी. कहा जाता है कि अंग्रेज षड्यंत्र न करते तो शायद 1857 में ही श्रीरामजन्मभूमि हिंदुओं को मिल जाती.
उस समय हिंदू-मुसलमान एक साथ अंग्रेजों से लड़ रहे थे. हिंदू-मुस्लिम शासकों ने मिलकर बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित कर दिया. अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में अयोध्या के तत्कालीन नरेश, हनुमानगढ़ी के महंत उद्धव दास, क्रांतिकारी रामचरण दास और क्रांतिकारी अमीर अली जुटे हुए थे. एक दस्तावेज में उल्लेख मिलता है कि अमीर अली की अपील पर मुस्लिम समाज विवादित स्थल पर दावा छोड़ने को राजी हो गया. बहादुर शाह जफर ने इसे हिंदुओं को सौंपने का आदेश भी दे दिया था. हालांकि अंग्रेजों ने साजिश के तहत अमीर अली और रामचरण दास को फांसी दे दी. इसके बाद यह मुद्दा उलझता ही चला गया.
अंग्रेजों ने फिर चली चाल
बांटो और राज करो, की नीति पर चलते हुए अंग्रेजों ने ढांचे से बाहर पूजा करने और अंदर नमाज का आदेश दे दिया। इस फैसले के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. बताते हैं निहंगों और हिंदू राजाओं की फौज ने ढांचे पर कब्जा कर लिया था. सिख ढांचे के सामने से हट ही नहीं रहे थे. नमाज रोकनी पड़ी. दस्तावेजों में इस बात का जिक्र मिलता है कि इस मामले में 25 सिख सैनिकों पर केस दर्ज हुआ था. आगे चलकर 22 दिसंबर 1948 की रात ढांचे के अंदर रामलला की मूर्ति मिलने पर दर्ज केस के आधार पर ही अदालत ने माना कि 1858 के काफी पहले से उस जगह पर कभी नमाज नहीं पढ़ी गई. हिंदुओं के पक्ष में फैसले का आधार सिखों पर वो केस भी बना. ऐसे समय में जब अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनने वाला है, सिखों का योगदान भी देश याद कर रहा है. (फोटो- lexica AI)