Azadi Ka Amrit Mahotsav: 1857 के संग्राम में अंग्रेजों को चटाई थी धूल, बाबू कुंवर सिंह ने यूं तोड़ा था अंग्रेजों का गुरूर
Babu Kunwar Singh history: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के हीरो रहे बिहार के बाबू वीर कुंवर सिंह का व्यक्तित्व बड़ा ही बेजोड़ था. वो 80 साल की उम्र में भी लड़ने की ताकत रखते थे. उन्होंने अंग्रेजों को जमकर धूल चटाई. उनकी वीरता का बखान भोजपुरी अंचल के होली गीतों में भी मिलता है.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. हर घर में तिरंगा लहरा रहा है. 15 अगस्त 1947 देश के आजाद होने का ऐतिहासिक दिन इसके पीछे हैं लाखों लोगों की कुर्बानियां. ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों का शौर्य, शूरवीरता और पराक्रम जिससे हमें गुलामी के बंधन से आजादी मिली. आपको बताते चलें कि अगस्त 1947 की आजादी की पटकथा तो देश के रणबांकुरों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही तैयार कर दी थी. ज़ी न्यूज़ (Zee News) की ये स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट ऐसे ही एक वीर सेनानी की विजयगाथा पर है.
बाबू कुंवर सिंह की वीरगाथा
बाबू कुंवर सिंह वो महावीर थे जिन्होंने हजारों अमर बलिदानियों की तरह अंग्रेजों को पीछे हटने और भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. 1857 का पहला स्वतंत्रता आंदोलन ये वो वक्त था जब देश के लगभग हर कोने से अग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी और आगाज हो चुका था अंग्रेजी राज के खिलाफ महाविद्रोह का. और कुछ ही दिनों में विद्रोह की आग दिल्ली लखनऊ, कानपुर, झांसी, ग्वालियर और प्रयाग के साथ साथ बिहार में फैलनी शुरू हो गई थी.
खुले युद्ध का ऐलान
अपने खिलाफ फैलते विद्रोह को शांत करने के लिए पटना के तत्कालीन कमिश्नर टेलर ने 18 जून 1857 को बिहार के जमींदारों और राजाओं की एक बैठक बुलाई. लेकिन अंग्रेजों के आमंत्रण को सिरे से ठुकराते हुए उनके खिलाफ युद्द का ऐलान करने वाले बिहार के जगदीशपुर के सपूत बाबू वीर कुंवर सिंह 1857 की स्वतंत्रता क्रांति के पहले महानायक बने.
वीर कुंवर सिंह की खासियत
बाबू वीर कुंवर सिंह के इस किले के अंदर एक जगह ऐसी थी जहां से वो अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए अपनी सेना के साथ रणनीति तैयार करते थे. इसी हिस्से में वो रहते भी थे. प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक किले की ये जगह एक ऐसे गुप्त स्थान था जिसके बारें में उनकी सेना के अलावा किसी को जानकारी नही थी. वीर कुंवर सिहं देश के लिए चर्चा का और अंग्रेजी हुकुमत के लिए चिंता का विषय बन गए थे. बिहार के आरा में अंग्रेजों ने अपना बेस बना लिया था और वहीं से उन्होंने वीर कुंवर सिंह को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. इस बात की खबर जैसे ही वीर कुंवर तक पहुंची उन्होंने जगदीशपुर में अपनी सेना का संगठन किया और 1857 के महासमर में पूरे दल बल के साथ कूद पड़े. कुंवर सेना की चर्चा अब देशभर में होने लगी थी. इस सेना में राजपूत, पठान, किसान, कुम्हार, बागी सिपाही यानी हर वर्ग के लोग थे. जो अंग्रेजों से लोहा लेते और उन्हे हरा कर आगे बढ़ जाते थे.
अंग्रेजों को आरा में चटाई धूल
27 जुलाई 1857 को कुंवर की सेना ने आरा शहर पर धावा बोला और अंग्रेजों को हराकर वहां की जेल में बंद आंदोलनकारियों को आजाद करवाया. और इस युद्द के बाद बाबू साहेब और उनकी सेना ने अलग अलग लड़ाइयों में एक के बाद बाद अंग्रेजों को हराया 30 जुलाई 1857 के बाद से लेकर 17 मार्च 1858 तक अलग-अलग हमलों से कुंवर साहब नें अंग्रेजी सेना और शासन का जबरदस्त दमन शुरू किया. पूरे देश में कुंवर सिंह की वीरता उनकी विजय और उनके वीर ध्वज को लेकर बात होने लगी थी.
महान बलिदानी की अमर गाथा
कहा जाता है कि अंग्रेजों से लड़ते समय उनके दाहिने हांथ में जब गोली लगी तो उस हाथ को स्वयं ही काटकर उन्होंने गंगा जी में समर्पित कर दिया. इसके पीछे ये भाव था कि जिस अंग को अंग्रेजों की गोली ने छू दिया, वो अब मेरा नही हो सकता. ऐसे क्रांतिकारी और वीर सेनानी के विजयपथ पर आगे बढ़ते रहने का नतीजा है कि आज देश आजाद है और हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं.
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