Gahadavala King Jayachand: दिल्ली की गद्दी पर मुहम्मद गोरी(muhammad ghori) की नजर पहले से थी. उसे लगता था कि अगर दिल्ली की सत्ता पर वो काबिज हुआ तो वो अफगानिस्तान में उसकी ताकत और बढ़ जाएगी. इस आकांक्षा के साथ उसने भारत की तरफ कूच किया. दिल्ली आने के क्रम में उसे अलग अलग विरोधी ताकतों का सामना करना पड़ा हालांकि वो सभी मुश्किलों पर पार लिया. दिल्ली के करीब तराइन के मैदान से उसने दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय को संदेशा भिजवाया कि गद्दी उसके हाथों में सौंप दें लेकिन पृथ्वीराज चौहान (prithvi raj chouhan)ने उसकी धमकी के आगे झुकने के बजाए लड़ाई करना पसंद किया और तराइन( battle of tarain) की लड़ाई में जबरदस्त मात दी. 


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तराइन की दूसरी लड़ाई


तराइन की लड़ाई के बाद पृथ्वीराज की जीत से उन राजाओं के सामने चुनौती आ खड़ी हुई जो उसे अपना प्राकृतिक दुश्मन मानते थे. उनमें से एक गाहड़वाल राजा जयचंद था. जयचंद को यह लगने लगा कि पृथ्वीराज दिल्ली का विस्तार पूरब की तरफ करेगा और उसका असर यह होगा कि कन्नौज पर खतरा बढ़ जाएगा. ऐसी आशंका को भांप जयचंद ने मुहम्मद गोरी से हाथ मिलाना उचित समझा और उसे उकसाया कि एक बार फिर वो पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ाई करे. इस तर्क के अतिरिक्त एक और तर्क दिया जाता है कि जयचंद अपनी बेटी संयोगिता के अपहरण के बाद पृथ्वीराज चौहान से चिढ़ा हुआ था और वो बदले की आग में जल रहा था.



खैर वजह जो हो एक बार फिर तराइन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी आमने सामने थे. इस युद्ध में उसका दास कुतुबद्दीन ऐबक भी साथ दे रहा था, तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई लेकिन यह हार जयचंद के लिए फायदेमंद नहीं रही.


1191 से 1194 के बीच क्या हुआ


  • 1191 में तराइन की पहली लड़ाई

  • पहली लड़ाई का नतीजा-पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पक्ष में

  • 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई

  • दूसरी लड़ाई का नतीजा मुहम्मद गोरी के पक्ष में

  • 1193-94 में चंदावर की लड़ाई

  • नतीजा मुहम्मद गोरी के पक्ष में


चंदावर की लड़ाई


तराइन की दूसरी लड़ाई में मिली जीत के बाद मुहम्मद गोरी को यह समझ में आया कि दिल्ली की गद्दी पर आसानी से काबिज हुआ जा सकता है बशर्ते दिल्ली के आसपास के राजाओं को अधीन किया जाए. इन सबके बीच कन्नौज का राजा जयचंद जो मुहम्मद गोरी की आंख और कान बना हुआ था वो दुश्मन नंबर एक बन बैठा. तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद गोरी की सेना चंदावर(यूपी में फिरोजाबाद के करीब) में डेरा डाल दी. जयचंद(battle of chandawar,) को लड़ाई के लिए ललकारा. जयचंद भी युद्ध मैदान से पीछे नहीं हटा लेकिन उसे शेष राजपूत राजाओं से मदद नहीं मिली और नतीजा हार में बदल गया.