पटना/नई दिल्ली: बिहार विधान सभा चुनाव (Bihar election results 2020) के शुरुआती रुझान भले ही आरजेडी (RJD) के लिए शुभ संकेत हैं लेकिन महागठबंधन के लिए नहीं. कांग्रेस (Congress) से महागठबंधन के घटक दलों को निराशा हाथ लगी है. एक बार फिर कांग्रेस महागठबंधन (Mahagathbandhan) की जीत की राह में ‘रोड़ा’ बनती दिख रही है.


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कांग्रेस बनी बोझ!
बिहार चुनाव में इस बार कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी. इतनी सीटों पर लड़ने के बाद भले ही कांग्रेस राज्य विधान सभा चुनाव के प्रमुख राजनीतिक दलों में शुमार हो गई लेकिन रुझानों से कांग्रेस बीमार ही दिख रही है. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने भले ही छलांग लगाई है लेकिन कांग्रेस उम्मीद के मुताबिक पिछड़ती जा रही है. रुझान बता रहे हैं कि अगर आरजेडी मजबूत स्थिति में आ भी गई तो कांग्रेस उसके लिए बोझ साबित हो सकती है.


क्या हैं कारण?
कांग्रेस की इस हालत का कारण सभी राज्यों में कॉमन है. सियासी जनाधार खोते जाने के साथ कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर हो गया है. जमीनी स्तर पर कांग्रेस के कार्यकर्ता नहीं हैं तो बड़े नेता भी गुमनाम हैं. इन कमजोरियों ने कांग्रेस को अपने प्रतिद्वंदी दलों से मुकाबले के लायक ही नहीं छोड़ा है.


कांग्रेस को 70 सीटें क्यों?
आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर शुरुआत से ही सवाल उठ रहे थे. आखिर कुल 243 सीटों में से 70 सीटें महागठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल को क्यों दी गईं? अब यही सवाल तेजस्वी के अरमानों पर पानी फेर सकता है. तेजस्वी को कांग्रेस से जिस ‘चमत्कार’ की उम्मीद थी वह नहीं हुआ.


दायरा हुआ सीमित
यह हार कांग्रेस के सिमटते दायरे व कद को और सीमित कर देगी. चुनाव पूर्व कांग्रेस नेताओं पर टिकट बेचने जैसे आरोपों ने कांग्रेस की छवि को गहरा धक्का दिया. उम्मीदवार चयन में भी कई गड़बड़ियों के आरोप पार्टी पर लगे. मजबूत नेतृत्व के अभाव के साथ-साथ ये कारण भी जनता के मन में काग्रेस के प्रति अविश्वास की बड़ी वजह बने. इन्हीं सब कारणों के चलते आज राष्ट्रीय स्तर की यह पार्टी गठबंधन की जीत में सबसे बड़ा रोड़ा बनती दिख रही है.


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