पटना: बिहार के कद्दावर नेता व मनरेगा को जमीनी पटल पर उतारने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuwansh Prasad Singh) का आज दिल्ली एम्स में निधन हो गया है. आरजेडी के दिग्गज नेताओं में शुमार, लालू यादव (Lalu Yadav) के सुख-दुख के साथी और सामाजिक न्याय के असली पैरोकार रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने अंतिम समय में पार्टी से इस्तीफा दिया.


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38 शब्दों की अपनी लेखनी में उन्होंने लालू यादव से 32 वर्षों के साथ का बड़ा भावुक वर्णन किया. दिल्ली एम्स में भर्ती रघुवंश बाबू की लालू के नाम की चिट्ठी बाहर आई थी जिसमें उन्होंने लिखा था- जननायक कर्पूरी ठाकुर के बाद 32 वर्षों से आपके पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं.


पार्टी कार्यकर्ताओं, और नेताओं और आमजनों ने मुझे बड़ा स्नेह दिया. मुझे क्षमा करें. सादर रघुवंश सिंह.'''


लालू यादव ने भी पत्र का बड़े भावुक अंदाज में जवाब दिया. लिखा- ''आप हमारे सुख-दुख के साथी रहे. ऐसे में पहले आप स्वस्थ हो जाएं. फिर बात करेंगे. आप कहीं नहीं जा रहे, समझ लीजिए. आपका अपना लालू.'' लेकिन रघुवंश बाबू चले गए. दुनिया को अलविदा कह गए. लालू यादव को अलविदा कह गए.


हम आपको रघुवंश प्रसाद सिंह से जुड़े कुछ तथ्यों से रूबरू कराते हैं.


मनरेगा के उद्धारक
बिहार के इस दिग्गज नेता वैसे तो राजपूत समाज से आते थे, लेकिन इन्हें सामाजिक न्याय का एक जीता जागता उद्हारण माना जाता था. मंडल कमिशन लागू कर जहां वीपी सिंह ने नाम कमाया था, वही मनरेगा जैसी योजना को जमीनी पटल पर उतारने वाले तात्कालीक केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपनी एक अलग पहचान बनाई. यूपीए सरकार में मनरेगा की फाइल जब सरकारी दफ्तर में धूल फांक रही थी, तब रघुवंश बाबू ने इस महत्वाकांक्षी योजना को कानूनी रूप से अमलीजामा पहनाया और इसे लागू करा कर पिछड़ों के लिए एक नया मार्ग खोला.


राजनीति के ब्रह्म बाबा
मूल रूप से वैशाली जिले के रहने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह को उनके क्षेत्र व बिहार के लोग 'ब्रह्म बाबा' के नाम से भी जानते हैं. राजनीतिक रसूख तो जो था सो था, लेकिन रघुवंश बाबू का सामाजिक रसूख भी कही से भी कम न था. समाज के उन चंद लोगों में शुमार थे जिन्होंने न सिर्फ अपनी निजी जिंदगी बल्कि राजनीतिक जीवन को भी सिद्धांतों के साथ जिया.


लालू मानते थे पीपल-बरगद



रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह ये दोनों आरजेडी के उस दौर के नेता हैं जब आरजेडी का अस्तित्व भी नहीं था. हर वक्त किसी भी सूरत-ए-हाल में लालू यादव का साथ देने वाले ये दोनों नेता उनकी परछाई माने जाते थे. एक बार तो खुद लालू ने कहा दोनों बरगद और पीपल के पेड़ हैं. किसी भी आंधी में नहीं झुकेंगे.


वैशाली लोकसभा सीट से करारी हार
राजनीति एक ऐसी चीज है जिसमें बड़े से बड़ा सूरमा भी एक बवंडर का शिकार हो ही जाता है. ऐसा ही कुछ रघुवंश बाबू के साथ भी हुआ. 2019 का लोकसभा चुनाव जिसमें एनडीए ने दूसरी बार मोदी लहर के बीच चुनावी मैदान में बिहार में 40 में से 39 सीटों पर अपना कब्जा जमाया. वैशाली लोकसभा सीट से सामाजिक न्याय के इतनी बड़ी हस्ती भी उस बवंडर में घिर गई. रघुवंश बाबू को एलजेपी की वीणा देवी ने मात दी और यह उनके जीवन की सबसे बड़ी हार में तब्दील हो गई. चीजें वही से बिगड़नी भी शुरू हो गई.


धुर-विरोधी रामा सिंह और रघुवंश बाबू के बीच जंग


राजनीति में आने के बाद से ही रामा सिंह आरजेडी नेता रघुवंश बाबू के धुर-विरोधी बन गए. असली कारण क्या है, इसका अंदाजा अब भी सबको पूरी तरह से नहीं. लेकिन किसने जाना था कि अपने अंतिम समय में रघुवंश बाबू अपने चिर-प्रतिद्वंदी से हार जाएंगे. रामा सिंह अब आरजेडी के होने वाले हैं. इसी हलचल के बीच रघुवंश बाबू न सिर्फ पार्टी छोड़ गए, बल्कि दुनिया को भी अलविदा कह गए.



कहते हैं कि सैद्धांतिक लोगों के लिए उनका कमिटमेंट ही उनके लिए अहम होता है. रघुवंश बाबू के लिए पार्टी ही दुनिया थी. उन्होंने पार्टी क्या छोड़ी, दुनिया ही छोड़ गए.