Bhojpuri Cinema News: भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और गोरखपुर से बीजेपी सांसद रविकिशन की जब मनोज भावुक से मुलाकात हुई तो यादों का सुनहरा पिटारा खुल गया. मनोज भावुक ने इसे सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है. उन्होंने लिखा कि मोहल्ले में टकरा गए रवि जी. मैं झोरा लेकर तरकारी खरीदने जा रहा था. रात के साढ़े नौ बजे थे. मैं अपनी सोसाइटी महागुन मायवुड के सत्रह नंबर टॉवर से और रवि जी सोलह नंबर टॉवर से निकल रहे थे, लॉबी में टकरा गए. उन्होंने ही आवाज दी- ''मनोज भावुक जी... ये देखिये भोजपुरी के समर्पित योद्धा... लंदन में इंजीनियर थे, अपने आपको भोजपुरी को सौंप दिया... बहुत काम किया है इन्होंने... वगैरह-वगैरह...'' सांसद-अभिनेता रवि किशन जी के साथ 10-15 लोगों का काफिला था, स्थानीय पुलिस भी थी और सोसाइटी के कुछ नेता टाइप लोग भी.


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उनमें से कुछ हमें थोड़ा-बहुत पहचानते भी थे, लेकिन सब चकित थे कि यह फक्कड़ टाइप का आदमी कौन है? जिसे रोककर, रुककर सांसद जी परिचय करा रहे हैं. तारीफ पर तारीफ किए जा रहे हैं. मैं थोड़ा असहज हो गया था और सोच रहा था की रवि जी यहां कैसे? दरअसल, रवि जी गोरखपुर के उद्योगपति और अपने मित्र मनीष सिंह के गृह प्रवेश में आये थे. परिचय कराते हुए उन्होंने बताया कि मनीष जी ने इसी टॉवर (16) में फ्लैट खरीदा है. ''तूहूँ एही में रहेलs का?...घर खरीद लेले हउअ? ...अच्छा, सब खेला एही जी से करेलs... '' हाथ पकड़कर बतियाते हुए क्लब की ओर बढ़ गए रवि जी.


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क्लब-1 में पार्टी थी. मनीष जी के मित्रों व रिश्तेदारों से हॉल खचाखच भरा था.  फ़ोटो-सोटो, स्नैक्स के साथ-साथ साहित्य आज तक, लापता लेडीज और भोजपुरी सिनेमा हाल-फिलहाल पर बात चलती रही. ...भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर मेरी किताब इसी माह आने वाली है, जानकर उन्होंने बधाई भी दी. यह सच है कि रवि किशन जी की पहचान भोजपुरी से है, भोजपुरी सिनेमा से है लेकिन भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री उनका श्रेष्ठ निकाल नहीं पाया. हिंदी फिल्मों में वह ज्यादा खुलकर और खिलकर सामने आए. मणिरत्नम के ' रावण ' में रवि किशन के किरदार को मैं आज भी उनके अभिनय के लिए याद करता हूं.


धीरे-धीरे रवि जी को बच्चों ने घेर लिया था. लापता लेडीज से बच्चों में क्रेज बढ़ा है. मेरा छोटा बेटा भी पहुँच गया- पापा आपका मोबाइल. घर पर ही छोड़ आये थे. ''अच्छा, तो बेटा है आपका. आओ हीरो. क्या नाम है?'' शिवांशु. ''शिवांशु सिंह या शिवांशु भावुक?'' आधे घंटे की अतृप्त बातचीत के बाद रवि जी निकल गए. सुबह पार्लियामेंट भी जाना था. सब्जी-मंडी उड़स गया होगा, तो मैं भी घर की ओर निकला यह सोचते हुए कि हम भोजपुरी वाले फॉर्मल हो ही नहीं पाते. मिलते हैं तो धधा कर, दिल से. भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में साथ काम करते हुए पारिवारिक रिश्ता बन जाता है. वहां सर और बॉस नहीं होता. भइया-बबुआ होता है.


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रवि जी से हमारी पहली मुलाकात वर्ष 2002 में फ़िल्म सिटी, मुम्बई में हुई थी, फ़िल्म सइयां से कर द मिलनवा हे राम के सेट पर, जहाँ मैंने उनका पहला इंटरव्यू किया था. पांक में लेटे हुए थे रवि किशन. गाना चल रहा था - कागज प कबो, कबो धरती पर हम उनकर नाम लिखत बानी. निर्माता मोहन जी प्रसाद की फ़िल्म थी. मोहन जी ही अपनी गाड़ी से मुझे ले गए थे वहां. तब से आज तक अनगिनत मुलाकातें हुईं. सारेगामापा, फिल्मफेयर-फेमिना इवेंट ...कई मंच/आयोजन में हम साथ रहे पर यह मुलाकात तो सरप्राइजिंग था. आनंद आया.


(मनोज भावुक के फेसबुक वॉल से)


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