पटना: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है. हर दिन चुनाव से पहले कई निर्णायक मोड़ आ रहे हैं. ये सियासी समीकरण सिर्फ बिहार नहीं बल्कि पूरे देश के लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है. बिहार में एनडीए (NDA) और महागठबंधन (Mahagathbandhan) में सीधी जंग है लेकिन चिराग पासवान (Chirag Paswan) के एक फैसले की वजह से अहम मोड़ गया है. 


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बिहार चुनाव और चिराग की रणनीति
2015 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी को 2 सीट मिले थे. लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने फ्रंटफुट पर बैटिंग करने के लिए तैयार हैं. वो जेडीयू और नीतीश कुमार पर लंबे समय से आक्रामक रहे हैं. चिराग पासवान लगातार अपने 'बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट' की नीति को लगातार प्रमोट कर रहे हैं. वहीं, नीतीश कुमार की योजनाओं की आलोचना करते रहे. वहीं, रविवार को चिराग पासवान ने साफ कर दिया कि वो बिहार में 143 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और बीजेपी के खिलाफ एलजेपी अपनी उम्मीदवार नहीं उतारेगी. यानी, एलजेपी बीजेपी के साथ तो गठबंधन में है लेकिन जेडीयू की कट्टर विरोधी है और उन सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी जिस पर जेडीयू के उम्मीदवार मैदान में होंगे. 



क्या असल लड़ाई बीजेपी-जेडीयू के बीच
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार में नीतीश कुमार से बड़ा राजनीतिक चेहरा कोई और नहीं है. नीतीश कुमार के टक्कर में बीजेपी के पास भी कोई चेहरा नहीं है. वहीं, सबसे बड़ी बात है कि जेडीयू हमेशा बिहार में बीजेपी के मुकाबले ड्राइविंग सीट पर रही है. हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जेडीयू के बराबर सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे. गाहे बगाहे बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के बीच भी बड़ा भाई और छोटे भाई को लेकर विवाद चलते रहा है. अभी भी एक बीजेपी और जेडीयू कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी यह फैसला नहीं हुआ है. ऐसे में एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि सही संख्या में सीट आने की स्थिति में बीजेपी सरकार एलजेपी के साथ भी बना सकती है. 



सेफ जोन में बीजेपी, डेंजर जोन में है जेडीयू
बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी हर कदम फूंक फूंक कर रख रही है. बीजेपी इस चुनाव में कोशिश कर रही है कि जिन सीटों पर उनके उम्मीदवार हो, उस पर अधिक कांटे की टक्कर ना हो. मतलब साफ है कि बीजेपी जिन सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, उनपर एलजेपी अपने कम से कम उम्मीदवार उतारेगी. ऐसे में बीजेपी से अधिक डेंजर जोन में कहीं ना कहीं जेडीयू है. ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव की तर्ज पर ही दोनों पार्टियां बराबर सीटों पर उम्मीदवार उतारती है तो भी बीजेपी को अधिक सीट मिलने की संभावना नजर आ रही है. ऐसे में अधिक सीट आने पर बीजेपी निर्णायक स्थिति में होगी और चिराग पासवान किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं या सीधे तौर पर बीजेपी-एलजेपी सरकार बना सकती है क्योंकि चिराग पासवान ने साफ-साफ कहा है कि एलजेपी के जीते हुए प्रत्याशी बीजेपी को सपोर्ट करेंगे.


क्यों चिराग पासवान को पसंद नहीं हैं नीतीश कुमार
दरअसल, इस चुनाव में चेहरे बदल गए हैं लेकिन असल सच्चाई ये ही कि नीतीश कुमार और रामविलास पासवान एक ही गठबंधन में जरूर रहे हैं लेकिन दोनों के संबंध कभी मधुर नहीं रहे. एक समय था जब रामविलास पासवान भी जेडीयू का हिस्सा थे लेकिन बाद में दोनों ही नेताओं में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मच गई. दलितों को खुश करने के लिए नीतीश कुमार ने महादलित एक अलग कैटेगरी बनाई जिसमें पासवान जाति को नहीं रखा गया. हालांकि, बाद में इन्हें भी महादलित का दर्जा दिया गया. लेकिन इसके बाद नीतीश-रामविलास में और फासले और बढ़ गए. अब संभावना जताई जा रही है कि इसी खाई का फायदा उठाकर बीजेपी बिहार में अपना सीएम बनाना चाहती है और फ्रंट फुट पर आना चाहती है. 


क्या है असल लड़ाई
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि बिहार में असल लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच है या एनडीए में ड्राइविंग सीट पर बैठने की लड़ाई है. नीतीश कुमार 15 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने लालू यादव जैसे दिग्गज की कुर्सी ली है. नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार आगे क्या करेंगे इस पर भी सबकी निगाहें बनी रहेगी. बहरहाल, इन सब बातों से एक बात तो तय है कि हमेशा की तरह इस बार भी बिहार विधानसभा चुनाव रोमांच और सस्पेंस से भरपूर होने वाला है.