पटनाः बिहार में 15 अगस्त से नई पुलिसिंग की शुरुआत होने जा रही है. जिसको लेकर कवायद अंतिम चरण में पहुंच चुकी है. दागी छवि के 176 थानेदार अब तक बदले जा चुके हैं. साथ ही 15 अगस्त से लॉ एण्ड आर्डर और अपराध अनुसंधान के विंग भी सभी थानों में अलग किए जाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है.


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बीते दो दिनों में बिहार पुलिस का बर्बर चेहरा सामने देखने को मिला है. लेकिन राज्य सरकार अब पुलिस की ऐसी ही निगेटिव छवि को बदलने की कवायद में जुट गई है. 15 अगस्त से बिहार में नई पुलिसिंग की व्यवस्था होने जा रही है. थानाध्यक्ष के पद पर साफ सुथरी छवि के थानेदारों को बैठाने की कवायद शुरु हो चुकी है. जो न केवल लॉ एण्ड आर्डर की व्यवस्था को धार देंगे बल्कि थाने की खराब व्यवस्था को भी दुरुस्त करेंगे. 


पूरे बिहार में 40 पुलिस थाने जिले हैं. जिनमें 1050 थाना है. पुलिस मुख्यालय ने लगभग 400 ऐसे थानों के  थानेदारों (इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टरों) की सूची इक्ट्ठा की है. जिन पर किसी न किसी तरह के आरोप थे. जैसे न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध होना, किसी कांड में अभियुक्त होना, विभागीय कार्रवाई होना या फिर जिनपर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हों. 8 तारीख तक पुलिस मुख्यालय को 18 जिलों से 176 दागी थानेदारों को हटाये जाने की सूचना मिल चुकी है. बांकी बचे दागी थानेदारों को 15 अगस्त से पहले बदल दिया जाएगा. 



दरअसल, बिहार सरकार ने कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद शुरु की है. जिसके मद्देनजर दागी स्तर के पुलिस इंस्पेक्टर को थानेदारी से दूर रखने का फैसला लिया गया है. इसके साथ ही हर थाने में लॉ एण्ड आर्डर और अपराध अनुसंधान के लिए अलग-अलग विंग बनाए जाने की कवायद शुरु हो चुकी है. हर थाने में थानाध्यक्ष के अंदर इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी भी रहेंगे जो अपराध अनुसंधान की टीम को लीड करेंगे. इसके अलावा हरेक थाने में पीआरओ और थाना मैनेजर की नियुक्ति पहले से ही की जा चुकी है. सूत्रों की माने तो थानेदारी से हटाये जाने वाले दारोगा रैंक के पुलिसकर्मियों से अपराध अनुसंधान का काम लिया जाएगा.    


एडीजी मुख्यालय जितेंद्र कुमार ने कहा है कि जो पुलिसकर्मी मापदंडों पर खड़े नही उतर रहे उन्हें हटाया जा रहा है. 15 अगस्त से राज्य में नई पुलिस व्यवस्था लागू होने जा रही है. लॉ एंड आर्डर और अनुसंधान विंग को अलग कर बेहतर पुलिसिंग की तैयारी की जा रही है.


पुलिसिंग में हुए बदलाव को लेकर पूर्व डीजीपी डीएन गौतम की अलग ही राय है. पूर्व डीजीपी की माने तो काम बेहतर है. लेकिन इसके लिए तैयारी पूरी हुई है या नही सवाल इस बात को लेकर है. पूर्व डीजीपी के कहा कि व्यवहारिक तौर पर भी ग्रामीण और शहरी इलाकों में अनुसंधान और लॉ एंड आर्डर के काम को अलग अलग रखने में परेशानी है. इतना ही नही अनुसंधान के लिए पुलिसकर्मियों को सही संसाधन मिले हैं या नही सवाल इसको भी लेकर है.


इतना ही नही दागी छवि के पुलिसकर्मियों को थानेदारी से अलग रखने के फैसले पर भी पूर्व डीजीपी ने सवाल खड़े किए हैं. डीएन गौतम ने कहा कि एसपी ही थानेदारों के दागी होने का सर्टिफिकेट लिखते हैं. मुझे खुद का अनुभव है की एक ईमानदार थानेदार को इसलिए ससपेंड कर दिया गया क्योंकि वो ईमानदार था. वो अपने उच्चस्थ अधिकारी को चढ़ावा नही चढ़ाता था. ऐसे में पुलिस मुख्यालय के सामने साफ सुथरी और दागदार छवि के इंस्पेक्टर में विभेद करना काफी चुनौती पूर्ण काम है.