पटनाः Banyan Tree Bargad ka Ped: सनातन परंपरा में बरगद का वृक्ष महत्वपूर्ण और पूज्यनीय बताया गया है. यह वृक्ष दिव्य है और एक तरह से संस्कृति और प्राचीनता की धरोहर है. बरगद की खासियत होती है कि यह सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहता है और, हरा-भरा होकर छाया और प्राणवायु देता रहता है. 
दीर्घायु, विशालकाय, जटाधारी, घना और हरा-भरा बरगद का वृक्ष कभी गाँव कस्बों में बड़ी आसानी से देखने को मिल जाया करता था. आबादी बढ़ती गयी और बरगद के लिए जगह भी कम होते गए. सनातन धर्म में इस दिव्य वृक्ष का महत्व आज भी है.


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यक्ष से हुई बरगद के पेड़ की उत्पत्ति
बरगद के पेड़ को वट वृक्ष भी कहा जाता है. बरगद की उत्पत्ति को लेकर सनातन धर्म में हमें वामनपुराण का एक श्लोक है. 
यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद, वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा॥


यानी यक्षों के राजा मणिभद्र से वट वृक्ष की उत्पत्ति हुई. यह कथा सृष्टि की उत्पत्ति की है. जब सृष्टि का सृजन हो रहा था तब भगवान विष्णु की नाभि से कमल का पुष्प पैदा हुआ. ऐसे में अन्य देवताओं ने भी अन्य वनस्पतियों का सृजन किया. इनमें से यक्षों के राजा मणिभद्र ने वट वृक्ष का सृजन किया. यही वजह है कि वट वृक्ष अर्थात बरगद को यक्षतरु भी कहते हैं. 


बरगद में है त्रिदेवों की ऊर्जा समाहित
सनातन धर्म में पाँच वट वृक्षों को बेहद पवित्र माना गया है. इनके नाम हैं अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्ध वट. वट वृक्ष सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए कितना पवित्र है इसका अंदाजा हमें इस बात से लग जाता है कि पीपल वृक्ष भगवान विष्णु का रूप है तो बरगद का पेड़ भगवान शिव की प्रतिकृति माना जाता है. 
मान्यता ये भी है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेवों की ऊर्जा समाहित है. इस पेड़ के जड़ में परमपिता ब्रह्मा वास करते हैं, मध्य भाग में भगवान विष्णु और अग्रभाग में स्वयं भगवान महादेव का वास है. मान्यता है कि सृष्टि में प्रलय के वक़्त भगवान कृष्ण ने मार्कन्डेय को अक्षयवट के पत्ते पर ही दर्शन दिये थे. 


हर ग्रंथ में लिखी है वट की महिमा
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण और महाभारत में भी बरगद के वृक्ष का हमें वर्णन मिलता है. इसके अलावा यजुर्वेद, अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महोपनिषद, सुभाषितावली, मनुस्मृति आदि में भी वट वृक्ष का वर्णन आता है. सनातन धर्म में बरगद के पेड़ को काटना पुत्र हत्या के समान माना गया है. इसकी पूजा से जीवन में सुख, दीर्घायु और समृद्धि आती है. मान्यता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही पुनर्जीवित किया था. सावित्री स्वयं बरगद के वृक्ष में वास करती हैं. इसकी दीर्घायु के कारण ही महिलाएं इसकी पूजा करती हैं और वरदान मांगती हैं कि हमारे पति, हमारी संतानें और घर-परिवार का कुशल क्षेम ऐसे ही बना रहे. 


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