पटना: संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर इस्लाम और वामपंथ के बारे में क्या सोचते थे. उनके क्या विचार थे, दोनों विचारधाराओं के माननेवाले लोगों को लेकर. इसको लेकर एक किताब बजार में आयी है, जिसकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. किताब का नाम है- अंबेडकर- इस्लाम और वामपंथ और इसके लेखक हैं मिथिलेश कुमार सिंह, जिन्होंने नये परिपेक्ष में अंबेडकर की दृष्टि को पेश किया है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बात 1937 की है, लेखक मिथिलेश ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मैसूर में डॉ अंबेडकर के नेतृत्व में दलित वर्ग की जिला परिषद की बैठक हुई थी, जिसमें डॉ अंबेडकर ने साफ तौर पर कहा था कि मेरी वामपंथियों से जाकर मिलने की तनिक भी संभावना नहीं है. अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करनेवाले वामपंथियों का मैं खुद को कट्टर शत्रु मानता हूं. वहीं, जब देश आजाद हुआ और 1952 में पहले आम चुनाव हुये, तो वामपंथियों ने डॉ अंबेडकर को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. 


पुस्तक में लेखक के हवाले से लिखा गया है, 'मार्च 1952 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने डॉ अंबेडकर के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें उन्हें साम्राज्यवाद समर्थक और अवसरवादी नेता बताया गया था. साथ ही शोषितों और वंचितों को बरगलानेवाला भी बताया गया था. ये दो विरोधाभासी सवालों के बाद भी 1990 के दशक में जब वामपंथ पूरी दुनिया से खत्म होने लगा और मार्क व लेनिन आम लोगों की नजरों में अछूत बन गये, तो वामपंथियों को लगा कि अब उन्हें किसी भारतीय को ही अपना नायक चुनना पड़ेगा, ऐसे में उन्हें डॉ अंबेडकर सबसे उपयुक्त व्यक्ति लगे.'


मिथिलेश कहते हैं कि ये सिर्फ वामपंथियों ने राजनीतिक स्वार्थ सिद्धी के लिए किया, ऐसा नहीं था कि उनकी डॉ अंबेडकर में आस्था जाग गयी थी. वो बिल्कुल राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए ऐसा करने लगे.


पुस्तक में लेखक मिथिलेश ने मीम- भीम के गठजोड़ पर तार्किक प्रहार किया है. मीम का अर्थ मुसलमान और भीम का अर्थ डॉ अंबेडकर है. इसका मतलब मुस्लिम-दलित एकता से है. 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद जय भीम, जय मीम गठजोड़ में अचानक से बहुत तेजी दिखाई देने लगा. लेखक मिथिलेश ने अपनी पुस्तक में इसी नाजायज गठजोड़ पर तार्किक प्रहार किया है. 


मिथिलेश की पीड़ा है कि पूरे देशवासियों की एकता क्यों नहीं, केवल दलित मुस्लिम एकता ही क्यों? इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि इस प्रयास के पीछे सामाजिक एकता की बात नहीं की जा रही है. बल्कि, हिंदू समाज को खंडित कर अपने-अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने का प्रयास किया जा रहा है.


यह जय भीम, जय मीम का  नैक्सस देश को दूसरे विभाजन की ओर ले जा रहा है. इतिहास अपने को दुहरा रहा है. आजादी के पहले मुस्लिम लीग ने भी, दलित-मुस्लिम एकता की बात की थी. तत्कालीन बड़े दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल उनकी बातों में आ गये थे. इस मुद्दे पर जिन्ना का समर्थन किया था. जिन्ना इस जुमले का प्रयोग कर कुछ भारतीय क्षेत्र को दलित समर्थन की बदौलत पाकिस्तान में शामिल करवाने में सफल रहें. बाद में पाकिस्तान में दलितों के साथ जो हुआ, वह इतिहास के पन्नों में दिल दहला देने वाले मंजर की तरह दर्ज है.


जब बंगलादेश में दलित हिंदुओं का सामूहिक नरसंहार और बलात्कार होने लगा, तो हिंदू वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल की शरण में आयें. जोगेंद्र नाथ मंडल की बात का वहां का एक साधारण सिपाही तक तवज्जो नहीं देता था. जोगेंद्र मंडल के आंखों के सामने दलित- हिंदू लुटते और मरते रहे. वे कुछ न कर सके.


मिथिलेश की पुस्तक जब प्रकाशित हुई, तो देखते ही देखते बेस्ट सेलर में शामिल हो गयी. मिथिलेश लेखक के साथ वर्तमान में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय में सहायक रजिस्टार के पद पे कार्यरत हैं.