Koderma:कोडरमा के डोमचांच की प्रसिद्ध क्रेशर मंडी में इन दिनों वीरानी छाई हुई है. इस इलाके को इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने के बाद अब इस क्रेशर मंडी को हटाया जा रहा है. पत्थर के व्यवसाय से जुड़े लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. 


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डोमचांच में क्रेशर उद्योग जब चरम पर था तो इस इलाके से गुजरने वाले लोग मशीनों के शोर के कारण एक-दूसरे से बात भी नहीं कर पाते थे, लेकिन आज यहां सन्नाटा पसरा है. और मशीन बंद होने के कारण कोई चहल पहल भी नहीं है.


कबाड़ी के भाव बेची जा रही हैं क्रेशर मशीन 


डोमचांच प्रखंड के नीरू पहाड़ी के आसपास के इलाके को सरकार ने पहले ही इको सेंसेटिव जोन घोषित कर रखा था. इसी के चलते यहां लगे तकरीबन 60 से 65 क्रेशर यूनिट तोड़े जा चुके हैं जिसके कारण क्रेशर मंडी के मालिक से लेकर यहां काम करने वाले मजदूरों की स्थिति भी खराब हो गई है. यहां जो मशीन रोजगार देती थी और इस इलाके के लोग जिस मशीन की बदौलत समृद्ध थे उसी मशीन को अब लोग कबाड़ी के भाव बेच रहे हैं. 


क्रेशर यूनिट के टूटने से बढ़ी बेरोजगारी


डोमचांच में जब क्रेशर यूनिटों का संचालन हुआ करता था, तो हर क्रेशर यूनिट में कम से कम 10 मजदूर, मुंशी, मेठ और दर्जनों लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हुए थे, लेकिन क्रेशर यूनिट के बंद होने के बाद से ना सिर्फ इससे जुड़े मजदूर बेरोजगार हुए हैं, बल्की स्टोन की ढुलाई करने वाले ट्रक मालिकों की स्थिति भी खराब हो गई है. और इस पूरे क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ गई है.


दुकानदार और अन्य कारोबारी भी प्रभावित


डोमचांच के क्रेशर मंडी के उजड़ने से इन क्रेशर यूनिट के आसपास के सैकड़ों होटल, दुकान और अन्य कारोबार भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. बेहतरीन और उच्च क्वालिटी के स्टोन चिप्स के लिए दूर-दूर से व्यापारी यहां आते थे, जाहिर वो यहां के होटल में भोजन करते थे और दुकानों में जरुरी के सामान खरीदते थे. लेकिन डोमचांच के क्रेशर मंडी में ताला लगने के बाद बाहरी लोगों का यहां आना बंद हो गया है. 


 'जंगली जानवरों का संरक्षण भी है जरूरी'


क्रेशर यूनिट के बंद होने से बढ़ रही बेरोजगारी को लेकर इलाके की जिला परिषद की प्रधान शालिनी गुप्ता ने सरकार और प्रशासन से लचीला रुख अख्तियार करने की मांग की है, वहीं इस पूरे मामले पर उपायुक्त आदित्य रंजन का कहना है कि पहले से ही यह क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन के रूप में घोषित है और पर्यावरण के साथ-साथ जंगली जानवरों की रक्षा करना भी जरूरी है, जिसका ख्याल क्रेशर मालिक नहीं रख रहे थे और पर्यावरण का दोहन कर रहे थे. जाहिर है पर्यावरण संरक्षण की शर्त पर क्रेशर यूनिट का फिर से संचालन मुश्किल है.