Patna: 5 जून यानी संपूर्ण क्रांति दिवस भारतीय इतिहास के उन सुनहरे पन्नों में दर्ज है, जिसने भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया था. इसी दिन 1974 में जयप्रकाश नारायण की एक हुंकार पर युवाओं का हुजूम सड़कों पर उमड़ पड़ा था और देश की राजनीति की दशा और दिशा बदल गयी थी. इस आंदोलन में बिहार की राजनीति के आज के दिग्गज और तब के नौजवान लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद भी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा बनकर आंदोलन की राह पर उतर गए थे. अब सियासी संग्राम के इस बड़े दिन के सहारे बिहार की आज की युवा राजनीति के अगुआ तेजस्वी यादव सूबे की राजनीति को बदलने के लिए करना चाहते हैं. इसका संकेत उन्होंने दे भी दिया है.


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कांग्रेस को किया किनारा, विपक्षी एकता तार-तार


बिहार की राजनीति के लिए इस बार का 5 जून भी बेहद खास होने जा रहा है. कहने को तो ये महागठबंधन प्रतिनिधि सम्मेलन है, लेकिन सच यही है कि इस आयोजन पर पूरी तरह से आरजेडी का कब्जा है. महाठबंधन तो नाम भर है क्योंकि हम और आप जिस महागठबंधन को जानते हैं, उसमें तो कांग्रेस भी शामिल थी. उससे विपरीत महागठबंधन के इस सम्मेलन में कांग्रेस का कहीं नाम-ओ-निशान भी नहीं है. इस आयोजन के लिए पटना में जो पोस्टर लगाए गए, उसमें आरजेडी और कम्युनिस्ट नेताओं के चेहरे तो दिख रहे हैं. कांग्रेस के किसी नेता की तस्वीर तलाशने से भी नहीं दिख रही. कांग्रेस विधायक दल के नेता अजित शर्मा का कहना है कि पार्टी को सम्मेलन के आयोजन की जानकारी देने की बात तो दूर, उन्हें निमंत्रण तक भी नहीं दिया गया है. कहा जा सकता है कि अब तक को महागठबंधन के टूटने भर की बात की जाती थी, लेकिन अब तो उस पर से भी पर्दा उठ गया है और विपक्षी एकता तार-तार हो गयी है. संपूर्ण क्रांति दिवस पर तेजस्वी के क्रांतिकारी सियासी दांव ने कांग्रेस को महागठबंधन की राजनीति से निपटा दिया है.


अब नीतीश सरकार पर प्रहार की रणनीति


तेजस्वी की सियासी चाल से कांग्रेस सियासी बियावान में जाती हुई दिख रही है. अब तेजस्वी की तैयारी संपूर्ण क्रांति आंदोलन में अपने पिता के साथी नीतीश कुमार की सरकार को कमजोर करने की है. इस आयोजन के जरिए नीतीश कुमार की वर्तमान सरकार के डेढ़ साल के कामकाज पर प्रहार करने की रणनीति बनाई गयी है. आरजेडी और वामदल सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश करने जा रहे हैं. जिसका मकसद सरकार की कमियों को आमलोगों के सामने लाकर उजागर करने की है. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरजेडी के इस दांव से उसी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि उनकी सरकार ने क्या किया यह सभी जानते हैं. नीतीश कुमार तो लालू-राबड़ी सरकार के दिनों की याद दिलाते हुए आरजेडी को ही निशाने पर ले लेते हैं. 


कांग्रेस में नहीं दम, अब जेडीयू होगी बेदम


कहा जाए तो महागठबंधन प्रतिनिधि सम्मेलन से कांग्रेस को अलग करने की आरजेडी की चाल सोची-समझी है. उसे पता है कि जनाधार खो चुकी कांग्रेस के सहारे उसे अब कुछ हासिल होने वाला नहीं है बल्कि उसके सहारे कांग्रेस ही लाभ उठाएगी और उसे ही आंख दिखाएगी. ऐसी हालत में उसे किनारा करना ही बेहतर है. दूसरी तरफ बीजेपी और जेडीयू के रिश्ते भी इनदिनों सामान्य नहीं है. तेजस्वी को पता है कि जेडीयू अगर बीजेपी से नाता तोड़ ले तो सरकार बनाने की उनकी हसरत पूरी हो सकती है. ऐसे में रिपोर्ट कार्ड जैसे छिपे हथियार के जरिए आरजेडी जैसे यह बताना चाहती है कि उसके साथ आ जाए तो उसकी भलाई है, नहीं तो ऐसे सियासी हथियार के जरिए उस पर यूं ही हमले होते रहेंगे. ये अलग बात है कि महागठबंधन प्रतिनिधि सम्मेलन का आरजेडी को कितना सियासी फायदा होगा, इसको जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.