पटनाः बिहार में खेलों की स्थिति बेहद ही खराब है. स्टेडियम है तो कोच नहीं हैं, स्टेडियम और कोच दोनों हैं तो फिर दूसरी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. एक तरफ पंजाब,राजस्थान,हरियाणा जैसे राज्य हैं जहां खेल और खिलाड़ी पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ बिहार में खेल विभाग को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया गया है. 


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38 में से 17 जिलों में खेल पदाधिकारी
बिहार में खेल की दुर्दशा इस बात से समझी जा सकती है की राज्य के सिर्फ 17 जिलों में ही जिला खेल पदाधिकारी हैं और वो भी ये वो खेल पदाधिकारी हैं जो जिलों में कभी कोच का भी काम करते हैं. एक तरफ जिलों में जिला खेल पदाधिकारी की कमी है. दूसरी तरफ खिलाड़ियों को अब बिहार सरकार और विभाग से ज्यादा उम्मीद नहीं है. डीएसओ की कमी की बात बिहार राज्य खेल प्राधिकरण भी स्वीकार करती है.


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बिहार राज्य खेल प्राधिकरण का दावा साल भर में हो जाएगी सारी नियुक्तियां
बिहार राज्य खेल प्राधिकरण का दावा है कि साल भर के अंदर जिला खेल पदाधिकारियों की बहाली हो जाएगी. बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के एडीजी रवींद्र शंकरण ने माना है कि बिहार के 38 में से सिर्फ 17 जिलों में ही जिला खेल पदाधिकारी हैं. बाकी जिलों का काम प्रभार के भरोसे चलता है.


रवींद्र शंकरण के मुताबिक अभी अस्थायी व्यवस्था के जरिए ही जिला खेल पदाधिकारियों का काम हो रहा है लेकिन बिहार राज्य खेल प्राधिकरण जल्द ही कोच और जरूरत के मुताबिक जिला खेल पदाधिकारी के पदों की संख्या विभाग को भेजेगा. 


कई जिलों में डिप्टी कलेक्टर को ही जिला खेल पदाधिकारी की जिम्मेदारी
वहीं विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वरीय उप समाहर्ता यानी डिप्टी कलेक्टर को ही जिला खेल पदाधिकारी की जिम्मेदारी दी गई है. राज्य में जिला खेल पदाधिकारी किस तरह से काम करते हैं उसकी मिसाल पटना से ही मिल जाती है. पटना के जिला खेल पदाधिकारी संजय कुमार आरा के भी जिला खेल पदाधिकारी का काम देखते हैं. समझिए अगर किसी जिले में जिला शिक्षा पदाधिकारी न हो तो फिर शिक्षा का काम कैसे चलेगा. कुछ इस तरह की बात खेल पर भी लागू होती है. 


बिहार में खेलों के लिए न तो सरकार की तरफ से कुछ खास बजट है और न ही बिहार सरकार का ध्यान खेल पर है, इसलिए जो भी बेहतर खिलाड़ी हैं वो दूसरे राज्यों की तरफ रूख कर रहे हैं. अगर जिला खेल पदाधिकारी ही किसी जिले में नहीं होंगे तो फिर कौन खिलाड़ियों की सुध लेगा.