बिहार: पूर्वी चंपारण जिले में एक से बढ़कर एक प्राचीन स्मारक हैं. साथ ही, ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत के मामले में समृद्ध इस जिले की ख्याति दुनियाभर में जिस केसरिया बौद्ध स्तूप के कारण है, उसके रख रखाव में कमी के कारण कई सारे सवाल खड़े होने लगे हैं. क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय महत्व के इस बौद्धकालीन पर्यटन स्थल में बिजली की स्थाई व्यवस्था नहीं होने के कारण यह स्तूप रात के अंधेरे में गुम हो जाता है.


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दुनिया के सबसे ऊंचे स्तूप के नाम से जाना जाता है ये बौद्ध स्तूप
साल 1998 में पुरातत्व अन्वेषण विभाग (ASI) द्वारा केसरिया में उत्खनन के बाद दुनिया का सबसे ऊंचा बौद्ध स्तूप मिला था, जिसके बाद बिहार ने अपने अतीत का गौरव फिर से हासिल किया. केसरिया बौद्ध स्तूप की ऊंचाई 104 फीट है और इस वजह से इसे दुनिया के सबसे ऊंचे स्तूप के नाम से जाना जाता है. 


महापरिनिर्वाण से पहले भगवान बुद्ध ने यहीं पर किया था रात्रि विश्राम
इस स्तूप में लगी मौर्य कालिन ईंटें इस बात की गवाह हैं कि इसका निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था. भगवान बुद्ध ने अपने महापरिनिर्वाण के ठीक पहले वैशाली से कुशीनगर जाने के क्रम में यहीं पर रात्रि विश्राम किया था और अपने साथ आये वैशाली के भिक्षुकों को अपना भिक्षा पात्र प्रदान कर कुशीनगर के लिए प्रस्थान कर गए थे.


केसरिया बौद्ध स्तूप को देखने देश-विदेश से आते हैं पर्यटक
केसरिया बौद्ध स्तूप को देखने न सिर्फ देश के पर्यटक यहां आते हैं, बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं. इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानने के लिए इतिहास के प्रति रूचि रखने वाले और पर्यटक साल भर यहां आते रहते हैं.


रात होते ही सिस्टम के अंधेरे में गुम हो जाता है बौद्ध स्तूप
दिन के उजाले में जो बौद्ध स्तूप पर्यटकों से गुलजार रहता है, वहीं केसरिया बौद्ध स्तूप रात होते ही सिस्टम के अंधेरे में गुम हो जाता है. क्योंकि चंपारण और बिहार ही नहीं, बल्कि देश की शान कहे जाने वाले इस वैश्विक पर्यटन स्थल पर अभी तक बिजली की कोई स्थाई कनेक्शन नहीं है. कहने को तो कार्यालय में बिजली की कनेक्शन है पर शाम होते ही सभी लोग ताला लगाकर चले जाते हैं. 


बता दें कि सोलर लाइट के सहारे केसरिया बौद्ध स्तूप परिसर को जगमग करने की कोशिश जरूर हुई पर वो भी सिर्फ दिखावे के लिए. बौद्ध स्तूप की बाउंड्री पर कहने को तो कई स्ट्रीट लाइटें लगी हैं. लेकिन रात के वक्त लाइट नहीं जलती है, क्योंकि यहां का इन्वर्टर पिछले चार महीने से खराब पड़ा है. यहां की व्यवस्था देख रहे लोगों का कहा है कि इन्वर्टर और स्टेबलाइजर बनने के लिए पटना गया हुआ है जो करीब चार महीने बाद भी बनकर नहीं लौटा है. लिहाजा बौद्ध स्तूप रात होते ही अंधेरे की आगोश में गुम हो जाता है. इस महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रख रखाव और लाइटिंग की व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है, जिससे कि यहां आने वाले दुनियाभर के पर्यटकों के मन में चंपारण को लेकर अच्छी छवि का निर्माण हो सके.


(इनपुट-पंकज कुमार)