नीतीश ने किया था जिस बस अड्डे का उद्घाटन, पांच साल बाद भी नहीं हुआ निर्माण पूरा
यात्रियों की सुविधाओं और बस अड्डे को नया लुक देने के हिसाब से इसके निर्माण पर बेहिसाब रूपए खर्च किए जा रहे हैं. 2016 में बस अड्डे की आधारशिला रखी गई और पांच साल बीत जाने के बाद भी अब तक बस स्टैंड पर 70 फीसदी काम ही हो सका है.
Patna: राजधानी पटना में भीड़ और ट्रैफिक को कम करने के मकसद से एक नया बस अड्डा बनाया गया जिसे नाम दिया गया है पाटलिपुत्र अंतरराज्यीय बस अड्डा (ISBT). पटना-गया रोड स्थित बैरिया में 25 एकड़ जमीन पर इसके निर्माण की आधारशिला साल 2016 में रखी गई लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजदू ये बनकर तैयार नहीं हुआ. हालांकि जिस अवधारणा के साथ इस बस अड्डे को बनाया जा रहा है वो अपने आप में अनूठा है.
बुडको के पास है तैयार करने की जिम्मेदारी
आईएसबीटी को तैयार कराने की जिम्मेदारी बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (BUIDCO) की है. बुडको बिहार सरकार की एक एजेंसी है जिसका काम शहर में आधारभूत ढ़ांचा को मजबूत करना है. आईएसबीटी को बुडको ने चार ब्लॉक में बांटा है इसे नाम दिया गया है ए,बी,सी और डी. वहीं, डी ब्लॉक में काम की रफ्तार काफी तेज है. डी ब्लॉक को पूरी तरह से कारोबार के लिहाज से तैयार किया जा रहा है.
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आधुनिक सुविधाओं से लैस
डी ब्लॉक में ही शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्स, ऑफिस और बड़ी कंपनियों के शोरूम होंगे. एक फ्लोर पर शानदार होटल भी बनाया जाएगा. डी ब्लॉक 8 मंजिली बिल्डिंग से बनकर तैयार होगा. यात्रियों की सुविधाओं के लिए लिफ्ट के साथ एसक्लेटर यानि स्वचालित सीढ़ियां भी दी गई है. डी ब्लॉक के बाद हमने 'ए' और 'बी' ब्लॉक का भी जायजा लिया. 'ए' ब्लॉक में यात्रियों के लिए टिकट काउंटर, एटीएम, कंट्रोल रूम की सुविधा यात्रियों को मिलेगी.
'ए' ब्लॉक में ग्राउंड के साथ पहला फ्लोर बनकर तैयार हो चुका है लेकिन दूसरे से लेकर 8 मंजिल तक में काफी काम बाकी है. इसी तरह 'सी' ब्लॉक में भी यात्री सुविधाओं को प्राथमिकता दी गई है. 'सी' ब्लॉक में वेटिंग लॉन्ज, वीआईपी लॉन्ज और रेस्टोरेन्ट भी बनाया गया है. एक नजर बिहार के सबसे आधुनिक बस अड्डे की खासियत पर-:
पटना-गया रोड पर बैरिया में इंटरस्टेट बस टर्मिनल तैयार किया जा रहा है.
25 एकड़ में आईएसबीटी को तैयार किया जा रहा है.
पूरा आईएसबीटी सेंट्रलाइज्ड एसी से लैस होगा और इसके लिए काम चल रहा है.
पूरे बिहार के सभी 38 जिलों के साथ-साथ झारखंड, उत्तरप्रदेश, ओडिशा के लिए यहां से बस खुल रह रही हैं.
जब पूरी तरह ये बस टर्मिनल तैयार होगा तब यहां से रोजाना 1 लाख 50 हजार यात्री आ जा सकेंगे.
इसी लिहाज से यहां चार ब्लॉक तैयार किए गए हैं और शोरूम और मल्टीप्लेक्स तैयार किया जा रहा है.
बसों के परिचालन के लिए 2 किलोमीटर की आंतरिक सड़क है, इसकी चौड़ाई 15 मीटर है.
आगमन स्थल पर 68 बसें और प्रस्थान स्थल पर 72 बसों के ठहराव के इंतजाम हैं.
विधानसभा चुनाव के समय हुआ था उद्घाटन
हालांकि ये बिहार सरकार, नगर विकास विभाग और बुडको के दावे हैं लेकिन जमीन पर हालत बेहद ही बदतर हैं. शुरुआत में चार जिलों की बसें यहां से शुरू हुई लेकिन अब यहां से सभी जिलों के लिए बसों का आना-जाना होता है. पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha) से पहले आईएसबीटी का उद्घाटन तो कर दिया गया लेकिन आधे अधूरे मन के साथ यहां से बस सेवा की शुरुआत हुई. सबसे बड़ी दिक्कत तो पटना शहर से आईएसबीटी तक पहुंचने की है और दूसरी दिक्कत बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव.
समस्याओं का अंबार!
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस आईएसबीटी के निर्माण पर करोड़ों खर्च हुए हैं वहां पानी की भी व्यवस्था नहीं है. शौचालय के इंतजाम नहीं है. एक हेल्प डेस्क जरूर है लेकिन इससे यात्रियों को कोई हेल्प नहीं मिलती है. जिस रैंम्प के जरिए यात्री मल्टीलेवल पार्किंग तक पहुंचेंगे उसी के नीचे अस्थायी तौर से टिकट काउंटर बनाया गया है. यहां से पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, कोलकाता और हरियाणा के लिए बसें खुलती हैं. लेकिन यात्री यहां पहुंचे तो पहुंचे कैसे?
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कागजी दावे पर हकीकत कुछ और
टिकट काउंटर पर काम करने वाले लोग बताते हैं कि बिना किसी तैयारी के मीठापुर से यहां बसों को शिफ्ट कर दिया गया. टिकट काउंटर पर काम करने वाले लोग बताते हैं कि महीने दो महीने में जिला अधिकारी या बुडको के लोग आते हैं और व्यवस्था बेहतर होने का दावा करके चले जाते हैं.
'सरकार ने मुंह मोड़ा'
सबसे ज्यादा समस्या रात में पहुंचने वाले यात्रियों को है. क्योंकि शहर से काफी दूर पर मौजूद है. दिन में भी किसी तरह पाटलिपुत्र बस अड्डे पहुंच पाते हैं. यात्रियों की सुविधा और आईएसबीटी निर्माण से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए कोई अधिकारी तैयार नहीं है. पाटलिपुत्र बस टर्मिनल में टिकट का काम देखने वाले राज कुमार सिंह बताते हैं कि कमाई पहले से काफी कम हो गई है और सरकार ने इस तरफ ध्यान देना भी छोड़ दिया है.