Prithviraj Chauhan: जानिए क्या है पृथ्वीराज की कहानी, जिसने उन्हें युगों-युगों तक के लिए अमर कर दिया
Prithviraj Chauhan: बचपन से ही सम्राट पृथ्वीराज बेहद साहसी और युद्ध से जुड़े गुणों की जानकारी रखते थे, दिल्ली के तत्कालीन शासक और पृथ्वीराज के दादा अंगम ने जब अपने पोते की प्रतिभा और युद्ध विद्या के बारे में जाना तो बेहद खुश हुए, जिसके बाद उन्होने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान कर दिया.
पटनाः Prithviraj Chauhan: चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज एक महान क्षत्रिय राजा थे, इनका जन्म साल 1166 में अजमेर के राजा सोमेश्वप चौहान के यहां हुआ था, लेकिन कैसे उनके ससुर ही उनके सबसे बड़े दुश्मन बन गए और कैसे बिना आंखों के ही सम्राट पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को मार गिराया, पढ़िए उनकी कहानी विस्तार से.
अजमेर के राजा था पिता
शुक्रवार को सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जीवनगाथा पर आधारित अक्षय कुमार की फिल्म 'पृथ्वीराज' रिलीज हो गई, फिल्म पर मिला-जुला रिस्पॉन्स मिल रहा है. अक्षय कुमार की इस मोस्ट अवेटेड फिल्म में हिंदू सम्राट पृथ्वीराज के जीवन से जुड़ी वीर गाथाएं दिखाने की कोशिश की गई हैं. चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज एक महान क्षत्रिय राजा थे, इनका जन्म साल 1166 में अजमेर के राजा सोमेश्वप चौहान के यहां हुआ था, गुजरात में जन्मे सम्राट पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही प्रतिभाशाली थे, पिता सोमेश्वप चौहान की मृत्यु के बाद 13 साल की उम्र में ही उन्होंने अजमेर के राजगढ़ की गद्दी संभाल ली.
बचपन से ही थे साहसी
बचपन से ही सम्राट पृथ्वीराज बेहद साहसी और युद्ध से जुड़े गुणों की जानकारी रखते थे, दिल्ली के तत्कालीन शासक और पृथ्वीराज के दादा अंगम ने जब अपने पोते की प्रतिभा और युद्ध विद्या के बारे में जाना तो बेहद खुश हुए, जिसके बाद उन्होने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान कर दिया. पृथ्वीराज चौहान छह भाषाएं जानते थे, यही नहीं उन्हे गणित, पुराण, इतिहास, चिकित्सा शास्त्र और सैन्य विज्ञान का भी ज्ञान था. इतिहासकारों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान की सेना में करीब 300 हाथी व 3,00,000 सैनिक शामिल थे, सम्राट चौहान का राज्य राजस्थान और हरियाणा तक फैला हुआ था, युद्ध कला में निपुण और साहसी पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही तीर कमान और तलवारबाजी पसंद करते थे.
कन्नौज की राजकुमारी से हुआ प्रेम
आगे चलकर पृथ्वीराज चौहान को कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम हो जाता है और हठ के कारण पृथ्वीराज संयोगिता को स्वयंवर से ही अपने साथ ले गए और उनके साथ गन्धर्व विवाह किया था, हालांकि संयोगिता के पिता राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान की आपस में नहीं बनती थी। शादी के लिए जयचंद बिल्कुल राजी नहीं थे और बेटी को इस तरह स्वंयबर से ले जाने के बाद राजा जयचंद ने तो सम्राट पृथ्वीराज को अपना दुश्मन ही मान लिया था
मोहम्मद गौरी को 17 बार हराया
सन् 1175-1189 तक मुस्लिम शासक सुल्तान मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को कई बार हराने की कोशिश की, लेकिन सफल न हो सका, इतिहास में उल्लेख है कि सम्राट पृथ्वीराज ने गौरी को करीब 17 बार युद्ध में हराया था लेकिन अपने कुछ उसूल और दरियादिली के चलते उन्होने हर बार मोहम्मद गौरी की जान बख्श दी लेकिन गौरी ने 18वीं बार फिरसे 1192 में सम्राट पृथ्वीराज पर हमला किया. इस बार उसने किसी और की नहीं बल्कि पृथ्वीराज के ससुर यानी संयोगिता के पिता राजा जयचंद की मदद ली, परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज युद्ध हार गए, लेकिन गौरी ने पृथ्वीराज को नहीं बख्शा, मोहम्मद ग़ौरी ने पृथ्वीराज को बंदी बना लिया और सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आखों को गर्म सलाखों से फोड़वा दिया
ऐसे किया गौरी का अंत
इस क्रूर सजा के दौरान मोहम्मद ग़ौरी के साथ-साथ पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई भी वहीं मौजूद थे, गौरी ने उनसे कहा कि वे अपने मित्र पृथ्वीराज की अंतिम इच्छा पूछें, पृथ्वीराज ने अपनी कला का प्रदर्शन करने की इच्छा जताई. जिसके बाद पृथ्वीराज ने हांथ में धनुष-बाण उठा लिया, पृथ्वीराज के मित्र चंदबरदाई उस ज़माने के जाने-माने कवि थे. उन्होने वहीं खड़े ग़ौरी को देखते हुए एक दोहा कहा, 'चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान'
कहानी का दुखभरा अंत
फिर क्या था शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर पृथ्वीराज ने तुरंत धनुष चलाया और वहां बैठे मोहम्मद ग़ौरी को मार गिराया, हालांकि इतिहासकारों के मुताबिक इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने दुर्गति और यातना से बचने के लिए एक दूसरे को भी मार दिया था, जिसकी ख़बर सुनकर सम्राट की धर्मपत्नी संयोगिता ने भी जान दे दी थी.
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