Patna: बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) में एनडीए की ओर से उपनेता नवल किशोर यादव (Naval Kishore Yadav) ने बिहार बोर्ड से पास छात्र-छात्राओं के एडमिशन का मुद्दा उठाया है. इसको लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र में कहा, 'बिहार बोर्ड से पास छात्र-छात्राओं का एडमिशन राज्य के प्रतिष्ठित संस्थानों में नहीं हो रहा है. इसकी वजह है बिहार बोर्ड से कम नंबर मिलना है, जबकि CBSE और ICSE बोर्ड से पास होने वाले छात्रों को ज्यादा नंबर मिलते हैं, जिससे उनका एडमिशन आसानी से प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में हो रहा है.'


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'बिहार बोर्ड के छात्रों को मिले तवज्जो'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लिखे पत्र में नवल किशोर यादव ने कहा, 'सरकार को एडमिशन प्रक्रिया पर रोक लगाकर सुधार करना चाहिए. पहले जिस तरह से प्रीमियर संस्थानों में बिहार बोर्ड से पास 80 फीसदी छात्रों को आरक्षण मिलता था, वैसे ही अब करना चाहिए, ताकि बिहार बोर्ड से पास छात्रों के साथ न्याय हो सके.' भाजपा एमएलसी ने कहा कि इस मुद्दे को सदन में सबसे पहले हमने उठाया था, जिसके बाद बिहार बोर्ड से पास छात्रों का 80 फीसदी एडमिशन होने लगा था.


'नंबर के आधार पर एडमिशन मिलने पर ऐतराज'
उन्होंने अपने पत्र में आगे लिखा कि 2012 में जब दाखिले के लिए टेस्ट होने लगा, तो 60 फीसदी से ज्यादा बिहार बोर्ड (Bihar Board) से पास छात्रों का एडमिशन होने लगा था. टेस्ट में बिहार बोर्ड से पास छात्र ज्यादा सफल होते थे, लेकिन इस साल कोविड की वजह से टेस्ट की जगह नंबर के आधार पर एडमिशन हो रहा है, जिसमें बिहार बोर्ड के लाखों छात्र पिछड़ रहे हैं. उन्हें राज्य के बड़े शिक्षण संस्थानों में एडमिशन नहीं मिल रहा है. 


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'PU में बिहार बोर्ड के कम छात्रों का एडमिशन दुर्भाग्यपूर्ण'
एमएलसी ने कहा कि हमने पहले दो दिन के एडमिशन को लेकर अध्ययन किया है, जिसमें पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) में बिहार बोर्ड से पास केवल 16 से 18 फीसदी छात्र-छात्राओं को एडमिशन मिला है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है.


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नीतीश कुमार से MLC को उम्मीद
उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मामले में संज्ञान लेंगे और सुधार करेंगे, जिससे वंचित छात्रों को बड़े संस्थानों में एडमिशन मिल सकेगा. उन्होंने कहा कि राज्य में 38 हजार करोड़ रुपये शिक्षा पर खर्च किये जा रहे हैं. अगर बिहार बोर्ड से पास 38 फीसदी छात्रों का एडमिशन बड़े संस्थानों में नहीं होगा, तो इसका क्या मतलब रह जाएगा?