सारणः बिहार सरकार स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए तमाम उपाय कर रही है लेकिन ये कोशिश हकीकत की जमीन पर उतरने के मुकाबले आसमानी ज्यादा दिखाई देती है. अगर ऐसा नहीं होता तो सारण के सतुआं स्कूल की ये हालत नहीं होती. हालांकि एक दशक पहले इस स्कूल की किस्मत बदल गयी और प्राथमिक विद्यालय सतुआं को उत्क्रमित मध्य विद्यालय का दर्जा मिल गया. इतना ही नहीं अब से दो साल पहले इस स्कूल को माध्यमिक तक का दर्जा दे दिया गया. इसका परिणाम ये रहा कि इस स्कूल में छात्र और शिक्षकों की संख्या तो लगातार बढ़ती गयी लेकिन उस अनुपात में क्लास रूम की संख्या नहीं बढ़ी. साथ ही न तो संसाधन में सुधार हुआ, न ही चारदीवारी बनी और न ही पीने के पानी की कमी को दूर किया गया. 


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उम्र के हिसाब से क्लास की सुविधा
बनियापुर प्रखंड के इस स्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या कुल मिलाकर नौ सौ के आसपास है लेकिन इनकी पढ़ाई के लिए क्लास रूम के नाम पर सिर्फ 6 कमरे हैं. इनमें से भी एक कमरे में स्टोर और प्रिसिंपल का ऑफिस है. यानी क्लास के लिए कुल जमा पांच कमरे ही बचे. कमरों की कमी का असर ये है कि यहां वर्ग के हिसाब से छात्रों की पढ़ाई का इंतजाम किया गया है. यानी कम उम्र के पहली से पांचवीं क्लास तक के करीब तीन सौ छात्रों की पढ़ाई स्कूल कैंपस में पीपल के पेड़ के नीचे होती है. इसके बाद नंबर आता है छठी से आठवीं क्लास के लगभग तीन सौ छात्रों का. ये छात्र बेहद किस्मत वाले हैं कि इनको पढ़ाई के लिए क्लास रूम मिल जाता है. इसके बाद बारी आती है सीनियर छात्रों यानी 9 वीं और दसवीं के विद्यार्थियों की, इन छात्रों की संख्या भी करीब तीन सौ के आसपास है. इन छात्रों को कमरों की कमी के चलते रोल नंबर के हिसाब से क्लास के लिए बुलाया जाता है और ऑड ईवन रोल नंबर के आधार पर क्लास में शिक्षा दी जाती है. 


मौसम की मार से छात्र परेशान
अब आप समझ सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों वाले इस स्कूल में कमरों की कमी के चलते पढ़ाई का आलम क्या होगा. मौसम की मार का यहां बेहद खराब असर देखा जाता है. चाहे बारिश का मौसम हो या गर्मी का, हर मौसम में छात्र अपने आपको मौसम की मार से बचाने की जुगत में रहते हैं तो भला गंभीरता से पढ़ाई कहां से होगी. समय के साथ स्कूल तो अपग्रेड हो गया लेकिन सुविधाओं के हिसाब से इसकी किस्मत नहीं बदली. सतुआं का ये स्कूल सरकारी दावों और हकीकत के पर बड़ा सवाल है. 
(इनपुट- राकेश कुमार सिंह)