क्या तेजप्रताप के `अर्जुन` का निशाना अचूक है?
क्या तेजप्रताप के अर्जुन का निशाना अचूक है? इस वाक्य में अर्जुन से तात्पर्य है बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का, जिन्हें ये नाम उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने दिया है. 9 नवंबर को तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का जन्मदिन होता है, आज वे 32 साल के हो गए.
Patna: क्या तेजप्रताप के अर्जुन का निशाना अचूक है? इस वाक्य में अर्जुन से तात्पर्य है बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का, जिन्हें ये नाम उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने दिया है. 9 नवंबर को तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का जन्मदिन होता है, आज वे 32 साल के हो गए. इस मौके पर तेजप्रताप यादव ने सोशल मीडिया में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को अपने अंदाज़ में बधाई दी. तेजप्रताप ने पिता लालू प्रसाद के साथ दोनों भाइयों की फोटो लगाकर लिखा, 'अपने पराक्रम से तमाम मनुवादियों को अकेला पटखनी देने वाले मेरे अर्जुन को जन्मदिन की हार्दिक बधाई.'
लालू परिवार और RJD दोनों के लिए तेजप्रताप का ये स्नेह भरा ट्वीट राहत देने वाला है. क्योंकि पिछले दिनों लालू प्रसाद के पटना आगमन और उपचुनाव के दौरान दोनों भाईयों के बीच सियासी दूरी देखने को मिली थी. तब ये लग रहा था कि ये दूरी आगे और बढ़ सकती है, लेकिन फिलहाल सुलह के लक्षण नज़र आ रहे हैं.
अब आते हैं उस सवाल पर जिससे बात शुरू हुई थी, यानी क्या तेजप्रताप के 'अर्जुन' का निशाना अचूक है? सबसे पहले तो सियासत में कोई भी निशाना अचूक नहीं होता और कोई भी निशाना खाली नहीं होता. इसको ऐसे समझिए कि सियासत में किसी भी 2+2 का मतलब 4 नहीं होता और कोई भी 2-2 का मतलब शून्य नहीं होता. यानी सियासत में हर जीत के लिए कुछ खोना पड़ता है और हर हार में किसी बड़ी सफलता की कुंजी छिपी होती है.
इसे समझने के लिए सबसे पहले हम ये समझते हैं कि तेजप्रताप के अर्जुन यानी तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अबतक कहां-कहां निशाना लगाया है. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने औपचारिक तौर पर अपनी सियासी पारी की शुरुआत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से की. इस इलेक्शन में तेजस्वी खुद चुनाव लड़े साथ ही विधायक बनने के बाद नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री भी बने. यानी कि पहला निशाना सटीक लगा. चुनाव के बाद एक धारणा ये भी बनी कि 2015 के चुनाव में RJD का सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आना कहीं ना कहीं नीतीश कुमार के सुशासन का नतीजा है. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में पूरी बाजी ही पलट गई. लालू प्रसाद जेल के अंदर थे और चुनाव कैंपेन की पूरी कमान संभाली थी तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने. इस चुनाव में तेजस्वी सरकार बनाने से तो 4 कदम दूर रह गए लेकिन बिहार की सियासत में अपनी अमिट मोहर लगा दी. 2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) लालू की छाया से बाहर निकल गए. विधानसभा चुनाव के बाद RJD ना केवल एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आई, बल्कि JDU से क़रीब-क़रीब दोगुणी सीटें हासिल हुई. लिहाजा यहां भी निशाना सटीक बैठा.
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लेकिन लोकसभा के चुनाव में जहां चुनाव की कमान तेजस्वी ही संभाल रहे थे, बिहार में पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया. ये विफलता भी तेजस्वी के ही हिस्से आई. कहते हैं कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना, ये कुछ अलग-अलग सियासी निशाने थे जिनका हमने जिक्र किया लेकिन तेजस्वी का निशाना कहीं भी हो उनकी निगाहें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हैं. और तेजस्वी का ये निशाना जबतक सटीक नहीं लगता तब तक तेजप्रताप के अर्जुन का सारा निशाना चूका हुआ ही माना जाएगा. वैसे भी सियासत में निशाने से ज्यादा संधान का महत्व है. और मशहूर शायर राहत इनदौरी कहकर गए हैं
'निशाने चूक गए सब निशान बाकी है
शिकारगाह में खाली मचान बाकी है'