Bokaro: वेब सीरीज 'ग्रहण' (Grahan Web series) के जरिए बोकारो एक बार फिर सुर्खियों में है. 1984 के सिख दंगा (Sikh riots) पीड़ित का फिल्मांकन इस ग्रहण फिल्म के जरिए किया गया है जहां बोकारो का भी जिक्र है. देश और दुनिया के लोग बोकारो को जानना चाहते हैं.


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बोकारो स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant) एशिया के दूसरे सबसे बड़े स्टील प्लांट के तौर पर जाना जाता है लेकिन इस वेब सीरीज के आने के बाद अब लोग इस शहर को भी जानना चाहते हैं.


1984 में सिख दंगे के समय करीब 89 सिख परिवार इस दंगे की चपेट में आए थे. जिसके बाद कई आयोग बनाए गए हैं. जिन लोगों ने इस दंगे में अपनी जान गवाईं उनके परिवार वालों को सरकार की ओर से नौकरी भी मिली और मुआवजा भी मिला. लेकिन कई ऐसे परिवार आज भी मौजूद है जिन्हें नौकरी और मुआवजा नहीं मिला है. जिनके परिवार को जान की कोई क्षति नहीं हुई थी लेकिन उनके घर लूट लिए गए थे, सामान लूट लिए गए थे. आज भी वो परिवार उस दिन को याद करते हैं तो आंसू निकल पड़ते हैं.


कुछ परिवार आज भी दूंदी बाग के सरदार कॉलोनी में रहते हैं जिन्हें कभी भी उजड़ने का डर सताता रहता है. उनकी मांगें रही है कि उन्हें भी मुआवजा और उनके परिवार को आश्रय के लिए कोई ठिकाना मिले. पीड़ितों की मानें तो कई बार आयोग बने, कई बार जांच हुई, कई बार लोग जांच करने पहुंचे लेकिन कुछ को मुआवजा और नौकरी दी गई और कई ऐसे परिवार आज भी वंचित हैं जो मुआवजे के इंतजार में हैं. 


एक बुजुर्ग का कहना है कि 'उस दिन को याद करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आज मुआवजे के इंतजार में कई लोग इस दुनिया से चले गए हैं और कई लोग जाने के इंतजार में हैं लेकिन बाकी बचे लोगों तो कब मुआवजा मिलेगा पता नहीं.'


अब लोगों की आस है कि चाहे फिल्म ग्रहण के जरिए ही सही बोकारो इन दिनों चर्चा में है और इस वेब सीरीज के कारण ही शायद सरकार फिर से एक बार उनकी सुध ले और उनपर मेहरबान होकर बाकी बचे लोगों को मुआवजा और पुनर्वास मिल सके. पीड़ितों की माने तो इनके परिजन बोकारो स्टील प्लांट सहित एचएससीएल प्लांट में काम करते थे.


(इनपुट- मृत्युंजय मिश्रा)