पटना : बिहार में एईएस (चमकी बुखार) का लीची से भले ही कोई ताल्लुक न हो, लेकिन अफवाहों का दौर ऐसा चला कि पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक के लीची किसान कांप गये हैं. इस कारोबार से जुड़े व्यापारियों व कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के होश उड़ गये हैं. इसे देखते हुए केंद्र सरकार भी सतर्क हो गई है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों को विशेषकर बागवानी व लीची वैज्ञानिकों को लगा दिया गया है.


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कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि लीची पोषक तत्वों से भरपूर फल है. यह खाने के लिए पूरी तरह सुरक्षित है. दरअसल, लीची के सबसे ज्यादा बागान बिहार के पांच-छह जिलों में फैले हुए हैं.


भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के बागवानी के उप महानिदेशक डॉक्टर एके सिंह ने इस बारे में बताया कि लीची की सबसे ज्यादा खेती बिहार में होती है. यहां की लीची जून के पहले सप्ताह में पक कर तैयार हो जाती है. जबकि पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और थोड़ी बहुत देहरादून में खेती होती है.


बिहार के बाद अब जून के आखिरी सप्ताह में देश के दूसरे लीची उत्पादक राज्यों में लीची की फसल आनी शुरू हो जाएगी. इसे लेकर वहां के किसानों व व्यापारियों के साथ उपभोक्ताओं में घबराहट और उहापोह की स्थिति है. इस पर काबू पाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं.


वैज्ञानिकों के जरिए यह बताने की कोशिश की जा रही है कि लीची किसी भी तरह से नुकसानदेय नहीं है. इस संबंध में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने पहले ही विस्तृत बयान जारी कर इसके सुरक्षित होने का दावा किया है. खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक कर इसके बारे में रिपोर्ट मांग ली है.