पटना: एकजुट विपक्ष की तरफ नीतीश कुमार ने एक कदम और बढ़ाया लेकिन मंजिल तक पहुंचने के लिए जितनी दूरी नापने की जरूरत है उससे कोसों दूर नजर आ रहे हैं. हरियाणा के फतेहाबाद में मंच पर जो तस्वीर दिखी वो यही सियासी पिक्चर दिखाती है. 


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इस रैली में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के साथ इंडियन नेशनल लोक दल के नेता ओपी चौटाला, एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar), अकाली दल नेता सुखबीर सिंह बादल, सीताराम येचुरी जैसे नेता नजर आए. मौका पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के 109वें जन्मदिन समारोह का था. 


नीतीश ने की एकजुटता की अपील
मंच से तेजस्वी और नीतीश ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला. नीतीश ने एक बार फिर विपक्ष से अपील की कि 2024 के लिए सभी दल एकजुट हो जाएं. शरद पवार ने भी हुंकार भरी कि 2024 में केंद्र की सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से बदल देंगे. 


रैली से ममता-केजरीवाल रहे नदारद
लेकिन रैली के बाद बीजेपी नेता सुशील मोदी ने एकजुट विपक्ष की कोशिशों के तहत इस मंच की समस्याओं के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि ये समारोह ऐसी पार्टी ने आयोजित किया था, जिसका हरियाणा में एक ही विधायक है. इसमें शिवसेना से नेता नहीं आए, इसमें बगल की दिल्ली से केजरीवाल नहीं आए. इसमें कांग्रेस से कोई नहीं आया. 


क्या एकजुट हो पाएगा विपक्ष?
सुशील मोदी की बात इस मायने में गलत है कि आज नीतीश ने एकजुट विपक्ष का आह्वान किया और अगले दिन ये हो जाएगा, ऐसा नहीं होने वाला, लेकिन मोदी की बात इस मायने में सही है कि इस मंच पर विपक्षी पार्टियों की कम संख्या दिखी. असल में इस मंच की तस्वीरें सांकेतिक भी हैं. बताती हैं कि विपक्षी एकजुटता की कोशिशों में क्या समस्याएं हैं.


बंगाल में चुनाव जीतने के बाद कई बार ममता ने एकजुट विपक्ष की बात कही लेकिन फिर इस फतेहाबाद के मौके को कैसे चूक गईं? याद रखिएगा कि ये वही ममता हैं जिन्होंने हाल में कहा कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई की कार्रवाई के लिए पीएम मोदी जिम्मेदार नहीं हैं. 


ममता-केजरीवाल के मन में क्या है प्लान?
इससे पहले टीएमसी अपने कटु आलोचक पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ की उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का समर्थन कर चुकी है. इसी तरह जो केजरीवाल बीजेपी के खिलाफ गुजरात में हाइपर एक्टिव हैं, उन्होंने फतेहाबाद में विपक्ष के साथ खड़े होना जरूरी क्यों नहीं समझा.


कांग्रेस में कलह!
कांग्रेस भी फतेहाबाद से नदारद थी. जब विपक्षी एकता दिखाने वाली ये बैठक चल रही थी तो राजस्थान में कांग्रेस पार्टी रणभूमि बनी थी. जिस गहलोत (Ashok Gehlot) को पार्टी अपना अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ाना चाहती है उनके समर्थक नहीं चाहते कि वो सीएम पद छोड़ें. वो नहीं चाहते कि जो सचिन पायलट (Sachin Pilot) कुछ महीने पहले बीजेपी से मिलकर कांग्रेस की सरकार गिराना चाहते थे उन्हें सीएम बनाया जाए.


बिना कांग्रेस कैसी बनेगी विपक्षी एकता?
तो दिक्कत ये है कि जो कांग्रेस अपना ही घर नहीं संभाल पा रही वो नीतीश के अरमानों का महल कहां से संवारेगी? ये भी सच है कि बिना कांग्रेस को साथ लिए बीजेपी को चुनौती देने लायक एकजुट विपक्ष खड़ा करना नामुमकिन है. जिन पार्टियों की हमने ऊपर बात उनमें सिर्फ कांग्रेस ही है जिसकी पैन इंडिया मौजूदगी है. 


नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती
नीतीश कुमार और लालू यादव ने एकजुट विपक्ष को लेकर सोनिया गांधी से मुलाकात की है लेकिन सोचिए कि चुनौतियां कितनी हैं. एक तो कांग्रेस को इतने दलों के साथ लाना कठिन काम है ऊपर से कांग्रेस के अंदर ही चीजें शांत नहीं होती हैं तो वो इस विपक्ष के ज्वाइंट वेंचर में कितनी और कैसी भूमिका निभाएगी.


फेल रहा फतेहाबाद?
फतेहाबाद के मंच पर कम विपक्षी नेताओं को देखकर नीतीश की कोशिशों को दरनिकार नहीं किया जा सकता. विपक्ष के कई बड़े नेता इस मंच पर जमा न हो पाए तो जरूरी नहीं कि वो विपक्षी एकजुटता के आइडिया से सहमत न हों. और भी वजहें हो सकती हैं. लेकिन भारतीय राजनीति में जो दिखता है वो बिकता है, उस लिहाज से फतेहाबाद फेल रहा.