Darbhanga: दरभंगा शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर एक ऐसा इलाका है, जहां तीन नदियों की मनमानी चलती है और यहां के निवासियों को ये नदियां पूरे 6 से 8 महीने तक अपनी कैद में रखती हैं. कोसी, कमला और करेह (Koshi, Kamla, Kareh River) नदियों से घिरा कुशेश्वर स्थान (Kusheshwarsthan) यूं तो मिथिला (Mithila) के प्रमुख धार्मिक जगहों में शुमार है और भगवान भोलेनाथ के प्रसिद्ध मंदिर के कारण यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन बाढ़ के दिनों में यहां के हालात बद से बदतर हो जाते हैं.


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यहां पानी के बीच मंदिर और घरों को देख कर आप कहेंगे कि ये नदियों का ही घर है, क्योंकि बिहार के बाकी इलाके में बाढ़ आती और चली जाती है. लोग सुख-दुख भूल कर अपने जीवन में लग जाते हैं लेकिन यहां बाढ़ आती है और नदियां स्थायी रूप से बस जाती हैं और फिर करीब 6 से 8 महीनों तक वो किसी की कुछ नहीं सुनती. इन दिनों में कुशेश्वर स्थान प्रखंड के लोगों की जीवन शैली कोसी, करेह और कमला की मनमर्जी पर चलती है. नदियों के पाट को पार कर लोग न सिर्फ अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं बल्की नाव के सहारे ही अपने शुभ-अशुभ सभी कर्मों लोग अंजाम देते हैं.


अपनी हैसियत के मुताबिक नाव रखते हैं लोग 
जब नदियां आपको चारों ओर से घेर लेंगी तो आपकी हर एक गतिविधि नदियों के हिसाब से ही तय होंगी, लिहाजा कुशेश्वरस्थान इलाके के दर्जनों गांव के लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए बड़ी-बड़ी गाड़ियों की जगह नाव खरीदते हैं. यही वजह है कि यहां नाव बनाने की बड़ी-बड़ी दुकानें हैं और उन दुकानों में पूरे सालभर कारिगर काम करते हैं. वहीं, हर साल करीब एक हजार नाव की बिक्री हो जाती है.


12 फीट के नाव की कीमत15-20 हजार रुपए
शहरों में लोग जहां बड़ी-बड़ी गाड़ियों में निवेश करते हैं और अपनी शान के अनुसार गाड़ियों की सवारी और शौक पूरी करते हैं. वहीं, कुशेश्वरस्थान के लोग नाव को ही शान की सवारी मानते हैं और फिर इलाके के लोग अपनी हैसियत और जरूरत के हिसाब से नाव की खरीद करते हैं. यहां काम करने वाले कारीगर और दुकानदार लंबाई के मुताबिक नाव तैयार करते हैं. दुकानदार बताते हैं कि 12 फीट के नाव की कीमत15-20 हजार रुपए है तो वहीं बढ़ती लंबाई के साथ नाव की कीमत भी बढ़ती जाती है और मोटर लगी नाव दो लाख रुपए तक में आती है.


चोर और डकैत भी वारदात करके नाव से ही भागते हैं
यहां के दर्जनों गांव के लोगों के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है और यही वजह है कि किसी के बीमार पड़ने पर नाव एंबुलेंस बन जाती है तो बेटे की शादी और बेटी की विदाई के वक्त पालकी भी नाव ही होती है. पुलिस पेट्रोलिंग के लिए नाव का उपयोग करते हैं तो चोर और डकैत भी वारदात करके नाव से ही भागते हैं. 


नाव पर ही अंतिम संस्कार तक की नौबत आती है
बिरौल अनुमंडल के एसडीपीओ दिलीप कुमार झा ने बताया कि चुनाव के दौरान नाव के सहारे ही इस इलाके में शांतिपूर्ण मतदान कराया गया और नाव के जरिए ही पुलिस इलाके की शांति बनाए रखने के लिए गश्ती करती है. केवल मांगलिक काम और पुलिस पेट्रोलिंग ही नहीं बल्की विपरित परिस्थिति में नाव पर ही अंतिम संस्कार तक की नौबत भी आ जाती है और बाढ़ के दिनों में किसी की मौत होने और दाह संस्कार के लिए जमीन सूखी नहीं होने की सूरत में लोग नाव के सहारे ही अंतिम संस्कार  करते हैं. 


3 नदी, 22 गांव और 1 हजार नाव
करीब 50 साल से नाव के सहारे कुशेश्वर स्थान के दोनों प्रखंड के लोगों की जिंदगी की गाड़ी चल रही है और लोग इसके इतने आदि हो गए हैं कि अब उन्होनें इसे अपने जीवन का हिस्सा मान लिया है. यहां बाढ़ की विभिषिका किस कदर हावी है ये इससे ही समझा जा सकता है कि कुशेश्वरस्थान के दोनों प्रखण्डों कुशेश्वरस्थान पूर्वी और कुशेश्वरस्थान पश्चमी के 24 में से 22 पंचायत बाढ़ प्रभावित हैं. 


बाढ़ के बीच सिसकती जिंदगी 
बहरहाल, कुशेश्वरस्थान के लोगों को इस समस्या से निकालने को लेकर बिहार सरकार अपने स्तर से प्रयास शुरू कर दी है. हाल ही में जल संसाधन मंत्री संजय झा, दरभंगा के डीएम डॉ0 त्यागराजन समेत एक टेक्निकल टीम ने विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर इसके उपाय को ढूंढना शुरू कर दिया है.


सर्वे के बाद निकलेगा समाधान-डॉ त्याग राजन, डीएम दरभंगा 
दशकों से जलजमाव और नदियों का कहर झेल रहे लोगों को इससे मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासन प्रयासरत दिख रहा है. दरभंगा के डीएम डॉ त्याग राजन ने माना कि यहां के गांवों के चारो तरफ जलजमाव है, जिसको लेकर टेक्निकल टीम सर्वे कर रही है. जहां तक होगी इनके समस्या के समाधान का प्रयत्न किया जाएगा. जल संसाधन विभाग के मंत्री के दौरे और जिले के डीएम के आश्वासन के बाद इलाके के लोगों को भरोसा है कि जलजमाव से मुक्ति के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे और लोगों को नदियों की कैद से मुक्ति मिलेगी.